हजरतबल

हजरतबल भारत के श्रीनगर में स्थित एक प्रसिद्ध दरगाह और मस्जिद है। मान्यता है कि इसमें इस्लाम के नबी, पैगंबर मुहम्मद, की दाढ़ी का एक बाल रखा हुआ है, जिससे लाखों लोगों की आस्थाएँ जुड़ी हुई हैं। काश्मीरी भाषा में 'बल' का अर्थ 'जगह' होता है, और हजरतबल का अर्थ है 'हजरत (मुहम्मद) की जगह । हजरतबल डल झील की पश्चिमी ओर स्थित है और इसे काश्मीर का सबसे पवित्र मुस्लिम तीर्थ माना जाता है। फ़ारसी भाषा में 'बाल' को 'मू' या 'मो' कहा जाता है, इसलिए हजरतबल में सुरक्षित बाल को 'मो-ए- मुकद्दस' या 'मो-ए-मुबारक' (पवित्र बाल) भी कहा जाता है। इस बाल को आम जनता के लिए कुछ खास मौकों पर ही खोला जाता है और दीदार करवाया जाता है।



हजरतबल मस्जिद का निर्माण 17वीं शती में किया गया था जिसकी झलक स्पष्ट रूप से मस्जिद की वास्तुकला में दिखती है। इसकी वास्तुकला मुगल और काश्मीरी स्थापत्य शैली का सही मिश्रण है। इस मस्जिद को कई नामों से जाना जाता है, जैसे- मदिनात-अस्-सनी, असर-ए-शरीफ़ और दरगाह शरीफ़। मस्जिद सफ़ेद संगमरमर से बनी हुई है और देखने में हिमालय पर्वत की श्रृंखला की पृष्ठभूमि के समान लगती है।


हजरतबल को लेकर यह मान्यता है कि पैगम्बर मुहम्मद के वंशज सय्यद अब्दुल्लाह सन् 1635 में मदीना से चलकर भारत आये और आधुनिक कर्नाटक राज्य के बीजापुर क्षेत्र में आ बसे। अपने साथ वह इस पवित्र केश को भी लेकर आये। जब सय्यद अब्दुल्लाह का स्वर्गवास हुआ तो उनके पुत्र, सय्यद हामिद, को यह पवित्र केश विरासत में मिला। उसी काल में मुगल साम्राज्य का उस क्षेत्र पर कब्जा हो गया और सय्यद हामिद की जमीन-सम्पत्ति छीन ली गई। मजबूर होकर उन्हें यह पवित्र वस्तु एक धनवान् कश्मीरी व्यापारी, ख्वाजा नूरुद्दीन एशाई को बेचनी पड़ी। व्यापारी द्वारा इस लेन-देन के पूरा होते ही इसकी भनक मुगल-सम्राट् औरंगजेब तक पहुँच गई, जिसपर यह बाल नूरुद्दीन एशाई से छीनकर अजमेर शरीफ में मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर भेज दिया गया और व्यापारी को बंदी बना लिया गया। कुछ अरसे बाद औरंगजेब का मन बदल गया और उसने बाल नूरुद्दीन एशाई को वापस करवाया और उसे काश्मीर ले जाने की अनुमति दे दी। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी और नूरुद्दीन एशाई ने कारावास में ही दम तोड़ दिया था। पवित्र बाल उनके शव के साथ सन् 1700 में कश्मीर ले जाया गया जहाँ उनकी पुत्री, इनायत बेगम ने पवित्र वस्तु के लिये दरगाह बनवाई। इनायत बेगम का विवाह श्रीनगर की बान्डे परिवार में हुआ था इसलिये तब से इसी बान्डे परिवार के वंशज इस पवित्र केश की निगरानी के लिये ज़िम्मेदार हो गये।