खशबू हिन्दी भाषा हिन्दी की

मानव सदैव परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ कृति के रूप में जाना - जाता है क्योंकि केवल वही अपने मनोभावों को व्यक्त करने के लिये भाषा का प्रयोग करने में सक्षम हैं। अलगअलग देशों की अपनी भाषाएँ हैं जिनकी संख्या लगभग 6809 है। इन्हीं भाषाओं के परिवार की सदस्या हमारी हिन्दी भी है जो कि विश्व में दूसरी सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है। हिन्दी का व्यक्तित्व इतना विराट एवं समर्थ है कि शब्दों के उचित चयन से हम अपने मनोभावों को बड़ी सहजता से जैसे का तैसा प्रकट कर सकते हैं। निसन्देह हिन्दी की अपनी एक खुशबू है, लालित्य है जो कि इसे अन्य भाषाओं से लोकप्रिय बनाता है। मेरा तो मानना है कि भाषा के उद्यान में हिन्दी एक ऐसा पुष्प है जिसमें माधुर्य, सुगन्ध एवं सौन्दर्य का समावेश है। अपने माधुर्य के कारण हिन्दी में मिठास है, सुगन्ध के कारण यह विशिष्ट है और सौन्दर्य के कारण यह शिष्ट एवं सौम्य है। यह हम सभी हिन्दुस्तानियों का सौभाग्य है कि हिन्दी हमारी मातृभाषा होने के साथ-साथ राजभाषा भी है। 


प्रेमिका का पत्र हो या कवि की कल्पना,


संसद का सत्र हो या ईश्वर की अर्चना।


पन्नों में अंकित हिन्दी जो कह जाती है,


अन्य भाषा बोलो वह बात नहीं आती है।


हिन्दी भाषा का जन्म संस्कृत भाषा से हुआ है। अन्य सभी प्रान्तीय भाषाओं का मूल जन्म भी संस्कृत भाषा से ही हुआ है अर्थात मराठी, कन्नड़, तमिल, तेलगू, बंगाली आदि सभी भाषाएं हिन्दी की ही सहोदरा हैं। हिन्दी की वर्णमाला दनियाँ की सर्वाधिक व्यवस्थित वर्णमाला है जिसमें स्वर एवं व्यंजनों को अलग-अलग व्यवस्थित किया गया है। यह इतनी सामर्थ्यवान भाषा है कि हम जैसा बोलते हैं, हूबहू वैसा ही हिन्दी से अंकित भी किया जा सकता है। हिन्दी का शब्दकोष बहुत विशाल है और समय के साथ-साथ इसमें उत्तरोत्तर वृद्धि ही होती जा रही है। हिन्दी के समृद्ध होने का एक और कारण है कि यह और भाषाओं के शब्दों को भी स्वयं में समाहित कर लेती है। इसमें गूंगे शब्दों का नितान्त अभाव है, यह निर्जीव वस्तुओं के लिए लिंग निर्धारण स्पष्ट रूप से करती है। यह हिन्दी भाषा की विशेषता ही है कि कम्प्यूटर एवं इन्टरनेट पर इसका प्रयोग तेजी से बढ़ रहा है। सबसे बड़े सर्च इन्जन गूगल ने भी हिन्दी को अब अपनी सेवाओं के एक माध्यम के रूप में शामिल कर लिया है। फेसबुक, ट्विटर आदि में भी हिन्दी के पर्याप्त संसाधन और प्रसाधक उपलब्ध हैं। आज जब कि भारत तेजी से विकास की राह पर अग्रसर है और सम्पूर्ण विश्व की निगाहें भारत की ओर लगी हुई हैं तो भारत के विकास के साथ-साथ हिन्दी का महत्व भी बढ़ना निश्चित है। यह अत्यन्त सुखद विषय है कि वर्तमान में विश्व के 150 विश्वविद्यालयों में हिन्दी पढ़ाई जा रही है -


सम्मान है हिन्दी, अभिमान है हिन्दी,


भारत के भाल की बिन्दी है हिन्दी।


भारतीय होने की पहचान है हिन्दी,


हम सबकी आन, बान, शान है हिन्दी। 


हम सबकी आन, बान, शान है हिन्दीयदि भारत की बात करे तो हिन्दी आज भी 70% भारतीयों की भाषा है, यह ग्रामीण क्षेत्र की अमराइयों में महकती है, उनके हृदय में गीत, संगीत एवं लोकगीत बनकर स्पन्दित होती है। यह हिन्दी की विशेषता ही कहेंगे कि वह सभी भाषाओं एवं उपभाषाओं से आत्मीयता रखती है। यही कारण है कि हिन्दी में बनी फिल्में, कहानियां एवं उपन्यास आज भी देश के कोने-कोने में देखे जाते हैं और पढ़े जाते हैं। संक्षेप में कह सकते हैं


हिन्दी में सकून है करार है,


हिन्दी एक प्यारा एहसास है।


हमें तो सारी जुबाने प्यारी हैं,


पर हिन्दी दिल के पास है।


यूं तो सारी भाषाएँ अपनी है,


पर हिन्दी स्वयं में कमाल है।


दुख इस बात का है कि इतनी सब विषेशताओं से परिपूर्ण होते हुए भी हिन्दी वह सम्मान नहीं प्राप्त कर सकी, जिसकी वह हकदार हैहिन्दी आज अपने घर आंगन में ही उपेक्षित है अपमानित है। आज समाज में हिन्दी भाषियों को कमतर आंका जाता है, जिसका कारण है हिन्दी के प्रति हमारे समाज में हीनता बोध के भाव होना। हिन्दी में महिमा एवं गरिमा होने के बावजूद हीनता बोध का आलम यह है कि हिन्दी को गरीबों एवं अनपढ़ की भाषा समझते हैं और इसके उलट अंग्रेजी को कुलीन एवं विद्वानों की भाषा समझते हैं जबकि यह भ्रममात्र है। आज हम आजादी के बावजूद भी मानसिक रूप से गुलामी की जंजीरों में जकड़े हुए हैं।


यूँ तो हिन्दी भाषा का पतन परतंत्रता के साथ ही प्रारम्भ हो गया था। विदेशी भाषाओं ने हिन्दी की संप्रभुता को नष्ट कर स्वयं को जनमानस का स्वामी बना लिया। यही नहीं हिन्दी भाषा दोयम दर्जे की भाषा बन गयी और हिन्दी भाषी दोयम दर्जे के नागरिकों में गिने जाने लगे। अत्यन्त दुख की बात है कि विदेशी भाषाओं ने तो हिन्दी से स्पर्धा मानी थी मगर देश की प्रान्तीय भाषाएं भी हिन्दी की धुर विरोधी होती चली गयी। हिन्दी को नष्ट करने एवं उसे अपमानित करने का कुचक्र रचा जाने लगा। यह भ्रम पाला जाता था कि हिन्दी को तिरस्कृत करने पर ही अन्य भाषाओं का अस्तित्व एवं महत्व बढ़ जाएगा। हिन्दी के पतन की यह प्रक्रिया आज भी बदस्तूर जारी है। आज हम आजाद होते हुए भी मानसिक रूप से गुलामी की जंजीरों से जकड़े हुए है यही कारण है कि हिन्दी की सुबासित सुगन्ध का आत्मसात करने के स्थान पर आग्ल भाषा की बनावटी सुगन्ध पर विश्वास रखते हैं। जो कि अत्यन्त दुखद एवं चिन्ता का विषय है। मैं तो बस इतना कहूंगी 


निज भाषा पर गर्व नहीं है जिसे,


निज देश से प्रेम क्या होगा उसे।


वही वीर, लाडला देश का प्यारा है,


हिन्दी, हिन्दोस्ता जिसका नारा है।


इन सभी विरोधों को झेलते हुए भी हिन्दी अपने सरल, लचीले एवं सुगम व्यवहार के कारण अधिकतर लोगों की प्रथम पसन्द बनी हुई है। वस्तुतः आज आवश्यकता इस बात की है कि अपनी हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार हेतु अन्य विकसित देशों की भाँति अपने देश को भी भाषाई एकता की मणिमाला से सुसज्जित बनाने का प्रयास करें। अर्थात पूरे भारत में हिन्दी एक प्रमुख भाषा के रूप में जानी जाए। भारत में हिन्दी के उत्थान हेतु कई सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थाएं प्रयासरत हैं जो हिन्दी में उत्कृष्ट कार्य करने वाले को प्रोत्साहन हेतु विभिन्न पुरस्कारों से नवाजती हैं। सरकार द्वारा प्रत्येक वर्ष "हिन्दी दिवस' का आयोजन किया जाता है जिसकी शुरूवात 14 सितम्बर 1953 से हुई थी और आज तक बदस्तूर जारी है हिन्दी के प्रचार- प्रसार हेतु “विश्व हिन्दी दिवस" भी आयोजित किया जाता है जो कि 10 जनवरी 1975 को नागपुर में विश्व हिन्दी सम्मेलन के आयोजन के साथ प्रारम्भ हुआ था एवं इसमें विश्व के 30 देशों के 122 प्रतिनिधि शामिल हुए थे। - सरकार द्वारा हिन्दी के उन्नयन हेतु कई कार्यक्रम प्रारम्भ किये गये है जिनमें प्रथम है 'त्रिभाषा सूत्र' अर्थात पूरे भारत में तीन भाषाएं पाठ्यक्रम में शामिल होगी “हिन्दी, अंग्रेजी एवं प्रान्तीय भाषा"। दूसरा कार्यक्रम है 'लीला मोबाइल एप' के जरिये हिन्दी सीखने के आनलाइन सुविधा जनमानस तक उपलब्ध हो सकेगी। (Learn Indian Languages through Artificial Intelligence)


हम सभी का प्रयास होना चाहिए कि सरकार द्वारा प्रदत्त सभी योजनाएं जन सामान्य तक पहुँचाएं, जिससे ये प्रयास मात्र राजनैतिक न होकर हिन्दी सम्मान में चार चांद लगा सके। साथ ही "हिन्दी दिवस" को मात्र एक दिवस न मनाकर सदैव हिन्दी को प्रगति के मार्ग पर बढ़ाते रहें।


आओ मिलकर मातृभाषा को,


मित्र भाषा बनाए,


इसे मात्र भाषा बनाकर,


मृत भाषा न बनाए।


मृत भाषा न बनाए। “हिन्दी है हम वतन है हिन्दुस्तां हमारा' कवि इकबाल द्वारा लिखित यह पंक्ति हर हिन्दुस्तानी को हिन्दी से जोड़ती है हर हिन्दुस्तानी का कर्तव्य है कि वह न केवल इन पंक्तियों को सुने, गुनगनाए, बल्कि आत्मसात भी करे तभी हिन्दी भाषा अपने घर आंगन में सम्मान प्राप्त कर सकेगी। हिन्दी को मात्र कागजी भाषा बनने से रोकें और शपथ ले कि अपने दैनिक जीवन में सभी कार्य हिन्दी में ही करेंगे, जिससे आने वाली पीढ़ी अपनी मातृभाषा की सुगन्ध से अपरिचित न रहे।



अन्त में मैं उन सभी सरस्वती पुत्र/पुत्रियों को नमन करती हूँ जिनके भागीरथ प्रयास से हिन्दी की सुगन्ध न केवल भारत देश में बल्कि विदेशों में भी महक रही है। मैं ईश्वर से यही प्रार्थना करती हूँ कि उनकी लेखनी को धार दे जिससे वे हिन्दी गौरवान्वित कर भाषा एवं देश दोनों के सम्मान में उत्तरोत्तर वृद्धि कर सके। (जय हिन्द, जय भारत)


वक्ताओं की ताकत भाषा,


लेखक का अभिमान है भाषा।


भाषाओं के शीर्ष पर है बैठी,


मेरी प्यारी हिन्दी भाषा।