मानो जन्नत यहीं उतर आई है..

जम्मू काश्मीर राज्य के डोडा जिले में पड़नेवाले भदरवा में बेहिसाब कुदरती खूबसूरती और दिलकश नज़ारे बिखरे हुए हैं। इनका इस तरह अनदेखा रह जाना कोई अच्छी बात नहीं होगीअगर आप जम्मू की ओर से यहाँ पहुँचना चाहते हैं, तो बस या टैक्सी के जरिये दो सौ किमी का सफ़र तय कर यहाँ पहुँच सकते हैं। वहीं हिमाचलप्रदेश की तरफ से आना चाहते हैं तो चम्बा से एक सौ सैंतीस किमी की यात्रा करनी होगी। जबकि डलहौजी से भदरवा की दूरी एक सौ पैंतीस किमी है।



यकीन मानिए, यह सफर आपको बिल्कुल भी नहीं अखरेगा। क्योंकि रास्तेभर बेहद हसीन और बेहतरीन नज़ारे बिखरे हुए हैं जो आपका रोमांच कम नहीं पड़ने देंगे। बतौर शहरी हम साल में कम-से-कम एक बार ऐसी जगह पर जाना चाहते हैं जहाँ खामोशी के साथ दोस्तों या परिवार के साथ वक्त बिता सकें। जहाँ काम की फ़िक्र और रोज़ाना की उबाऊ ज़िन्दगी से अलग, फुर्सत के लम्हें गुजार सकें। भदरवा और इसके इसके आस-पास वे तमाम चीजें हैं जो सालभर मशरूफ़ रहे इंसान को दोबारा तरोताजा कर सकती हैं। हरे घास के मैदान हैं, जिनके खत्म होते ही देवदार के घने जंगल शुरू हो जाते हैं। बर्फ से ढकी ऊँची चोटियाँ हैं, जो दिन में कई दफा सूरज की किरणों की वजह से अपना रंग बदल सकती हैं। उजला और साफ़ पानी साथ लेकर बहती नदियाँ हैं, जिनकी कलकल हमारे कानों से होकर के जेहन से टकराती हुई रूह में घुल जाती है। झरने हैं, जो बताते हैं कि हम भी कहीं-न- कहीं इन आबशारों जैसे ही ऊपर से नीचे गिरते हुए अपनी मंज़िलों की तरफ़ चलते हैं। भदरवा कहने, बताने या लिखने से ज्यादा महसूस करने की जगह है। एहसास कुछ इतना नर्म, इतना ठण्ढकभरा कि जो बरसों की तिशनगी को भी ख़त्म कर सकता है।


भदरवा से करीब ही एक स्थान और है थुबा, जो चिंता घाटी को भदरवा से अलग करता है। चिंता नाला इस घाटी में मौजूद घने जंगलों से होकर गुजरता है और आँखों को लुभानेवाले कई दृश्य बनाता जाता है। 6,500 फीट की ऊँचाई पर मौजूद थुबा यहाँ का सबसे ऊँचा प्वाइंट है। इसी तरह से सिओज के लम्बे और दूर तक फैले घास के मैदान आपको हैरत में डाल देते हैं। सिओज को यहाँ पर भदरवा के मुकुट में जड़ा हीरा कहा जाता है। इसकी तुलना पहलगाम से भी की जाती है। जहाँ तक मैं समझता हूँ कि भदरवा के तमाम दर्शनीय स्थल इतने कमाल के हैं कि ये अपनी स्वतंत्र पहचान बना सकते हैं। इन्हें गुलमर्ग या पहलगाम-जैसे दिखने या होने का सहारा लेने की ज़रूरत नहीं है। खुद भदरवा को भी 'मिनी काश्मीर' कहकर बुलाना मैं ठीक नहीं समझता। सिओज के दक्षिणी हिस्से में कैलास कुण्ड है जहाँ पर हज़ारों की तादाद में श्रद्धालु पहुँचते हैं। बर्फ से ढकी चादरें यहाँ सालभर मौजूद रहती हैं, जिससे पहाड़ चढ़ने में रोमांच तलाशनेवाले पर्यटकों को ये जगह खूब पसंद आएगी। इसके अलावा शहर से करीब 35 किमी दूरी पर जाई घाटी भी है जो सैलानियों के लिए एक बड़ा आकर्षण साबित होती है। करीब 6 किमी के फैलाववाली यह घाटी न केवल आँखों को सुकून देती है, बल्कि यहाँ की ताजा और ठण्ढी हवा आपके फेफड़ों में नयी जान भर देती है।


भदरवा से दस किमी दूर देवदार के पेड़ों का एक बेहद घना जंगल है। हांगा नाले के किनारे यह एक देखने लायक जगह है। इसकी खासियत इसलिए भी बढ़ जाती है क्योंकि यहाँ पर अस्सी के दशक की हिट फ़िल्म 'नूरी' की शूटिंग हुई थी। भदरवा में मिलनेवाला हर दूसरा शख्स मुझे यह बात जरूर बताता था कि महान् फ़िल्म निर्देशक यश चोपड़ा ने अपनी मशहूर फ़िल्म 'नूरी' की पी' की शूटिंग यहीं पर की थी। हमारी बस का कंडक्टर तो हमें एक बूढ़े से भी मिलाने को तैयार हो गया था जिसने इस फ़िल्म में काम किया था। वाकई में, भदरवा की प्राकृतिक सुंदरता है ही ऐसी कि सिनेमा में रूमानियत को नयी पहचान देनेवाले मरहूम यश चोपड़ा भी इसके जादू से बच न सके। 'नूरी' जैसी रूहानी प्रेमकथा के लिए इससे बेहतर जगह हो भी क्या सकती थी! अफ़सोस कि यहाँ के लोगों के पास किसी फिल्म की शूटिंग से जुड़ी बस यही एक कहानी है। बड़ी हैरत की बात है कि इतनी मशहूर फिल्म और इतने लोकप्रिय गानों की लोकेशन बननेवाले स्थान भदरवा में बॉलीवुड वापस लौटकर क्यों नहीं आया?