सब सुखों को देने वाला घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग

सवाई माधोपुर जिले के शिवाड़ नामक स्थान पर पास्थित शिवालय को द्वादश ज्योतिर्लिंगों में एक श्री घुश्मेश्वर द्वादश ज्योतिर्लिंग माना जाता है। शिव महापुराण कोटि रूद्र संहिता के अध्याय 32-33 के अनुसार घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग शिवालय में स्थित है। प्राचीन काल में शिवाड़ का नाम ही शिवालय था। शिवाड़ स्थित घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग अधिकांश समय जलमग्न रहने के कारण अदृश्य ही रहता है। यह मंदिर जयपुर से करीब 100 कि.मी. दूर नेशनल हाइवे संख्या 12 पर बरौनी से 21 कि.मी. दूर स्थित है। घुश्मेश्वर द्वादश ज्योतिर्लिंग का यह पवित्र मंदिर बहुत प्राचीन है। यहाँ वर्षभर लाखों भक्त दर्शन के लिए आते हैं। देवगिरि पर्वत पर बना हुआ घुश्मेश्वर उद्यान श्रवण मास में तो रात के समय लाइटिंग से अद्भुत छटा बिखेरता है। 



घुश्मा के नाम से कहलाए घुश्मेश्वर


श्वेत धवल पाषाण देवगिरि पर्वत के पास सुधर्मा नामक धर्मपरायण भारद्वाज गोत्रीय ब्राह्मण रहता था, उनके सुदेहा नामक पत्नी थी। संतान सुख से वंचित रहने एवं पड़ोसियो के व्यंग्य बाण सुनने से व्यथित होकर, पति का वंश चलाने हेतु सुदेहा ने अपनी छोटी बहिन घुश्मा का विवाह सुधर्मा के साथ करवाया। घुश्मा, भगवान शंकर की अनन्य भक्त थी। वह प्रतिदिन एक सौ एक पार्थिव शिवलिंग बनाकर पूजन अर्चन करती थी एवं उनका विसर्जन समीप के सरोवर में कर देती थी। आशुतोष की कृपा से घुश्मा ने एक पुत्र रत्न को जन्म दिया तो सुदेहा के हर्ष की सीमा नहीं रही, परंतु बहिन घुश्मा के पुत्र के बड़े होने के साथ-साथ उसे लगा कि सुधर्मा का उसके प्रति आकर्षण एंव प्रेम कम होता जा रहा है। पुत्र के विवाह के उपरांत ईर्ष्या के कारण उसने घुश्मा के पुत्र की हत्या कर दी एवं शव को तालाब मे फेंक दिया। प्रातःकाल जब घुश्मा की पुत्रवधू ने अपने पति (घुश्मा के पुत्र) की शय्या को रक्त रंजित पाया तो विलाप करती हुई अपनी दोनों सासों को सूचना दी। विमाता सुदेहा जोर-जोर से चीत्कार कर रोने लगीजबकि घुश्मा जो शिव पूजा में लीन थी, निर्विकार भाव से अपने आराध्य को श्रद्धा सुमन समर्पण करती रही। सुदेहा, सुधर्मा व पुत्रवधू की मार्मिक चीत्कारे, विलाप एंव पुत्र की रक्त रंजित शैय्या भी घुश्मा के भक्तिरत मन में विकार उत्पन्न नहीं कर सकी। घुश्मा ने सदैव की भांति पार्थिव शिवलिंगों का विसर्जन सरोवर में कर आशुतोष (भगवान शंकर) की स्तुति की, तो उसे पीछे से माँ-माँ की आवाज सुनाई दी जो उसके प्रिय पुत्र की थी। जिसे मृत मानकर पूरा परिवार शोक कर रहा था। विस्मित घुश्मा ने उसे शिव इच्छा - शिव लीला मानकर भोले शंकर का स्मरण किया। तब आकाशवाणी हुई की हे घुश्मा तेरी सौत सुदेहा दुष्टा है, उसने तेरे पुत्र को मारा है। मैं उसका अभी विनाश करता हूँ। परन्तु घुश्मा ने स्तुति की 'प्रभु मेरी बहिन को मत मारो ओर उसकी बुद्धि निर्मल कर दो। क्योकि आपके दर्शन मात्र से पातक नहीं ठहरता, इस समय आपका दर्शन करके उसके पाप भस्म हो जाये'। प्रसन्न होकर भगवान भोलेनाथ प्रकट हुए तथा वरदान दिया कि मैं आज से तुम्हारे ही नाम से 'घुश्मेश्वर' रूप में इस स्थान पर वास करूंगा तथा यह सरोवर शिवलिंगों का आलय हो। 


शिवलिंगों


बताया जाता है कि विक्रम संवत 1835 में इस सरोवर की खुदाई राजा ठाकुर शिवसिंह ने करवाई जिसमें उन्हें बहुत सारे शिवलिंग मिले। इन शिवलिंगों को उन्होंने घुश्मेश्वर मंदिर के प्रागंण में दो मंदिर बनवाकर एक-एक जल लहरी में 22-22 शिवलिंग स्थापित करवाए। ये जल लहरियां आज भी यहाँ मौजूद हैं।


पूजा फल


इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से सभी कामनाओं की पूर्ति होती है तथा प्राणी सब पापों से मुक्त होकर भोग और मोक्ष को पाता है।