शब्द-संसार भी बहुत विचित्र व जटिल है

मानव-संसार की तरह शब्द-संसार भी अति विशाल व विराट तो है ही, परम विचित्र व जटिल भी है। यह अगाध सागर और असीम जंगल जैसा है। सागर में व्हेल, घड़ियाल और सर्प जैसे विविध प्रकार के घातक जीव होते हैं, तो हीरा, मोती, ज्वाहरात जैसे बेशकीमती रत्न भी होते हैं। इसीलिए समुद्र को 'रत्नाकर' भी कहा जाता है। इसी तरह जिस जंगल में शरीर को नोचने-फाड़ने वाली जटिल व कंटीली झाड़ियाँ तथा आँखों को अच्छे न लगने वाले टेढ़े-मेढ़े, मोटे-पतले एवं गूमड़ व गांठों वाले पेड़ भी होते हैं, उसी वन में धूप, चंदन और देवदार जैसे देव वृक्ष एवं विविध प्रकार के फल व फूल वाले नयनाभिराम पादप व लताएँ होती हैं। ऐसे ही शब्दों की लीला एवं माया भी बड़ी विचित्र और जटिल है। 'राम' भी शब्द है और 'रावण' भी शब्द है, पर 'राम' के श्रवण से जहाँ हृदय श्रद्धा से भर जाता है, वहीं 'रावण' का उच्चारण मन में घृणा पैदा करता है। एक बात और आज के आविष्कार और सूचना-प्रौधोगिकी व विद्वता के अत्याधुनिक (ultra mod- erm) युग में भी निश्चितता से नहीं कहा जा सकता है कि भाषा पहले आई या मानव? यह प्रश्न जितना गूढ एवं अनुतरित है, उतना ही यह प्रश्न भी कि भाषा को व्यक्ति ने बनाया है यह रस को भी महासागर और महावन बनाने वाले भगवान ने ही बनाया है तथा बाद में व्यक्ति ने इसका विकास व विस्तार किया है। यहाँ यथा आवश्यक अँगरेजी के कुछ शब्दों सहित हिन्दी के शब्दों की यत्किचित विचित्रताओं एवं सुखद जटिलताओं का वर्णन प्रस्तुत है :


हिन्दी और अंग्रेजी में ऐसे अनेक शब्द हैं, जिनका उच्चारण भी समान है और अर्थ भी समान है। इस समानता को देख कर एक बारगी यह सोचने को विवश होना पड़ता है कि कदाचित अंग्ररेजी हिन्दी से ही निकली हो और कालान्तर में इसने अपना भिन्न शब्दकोश और व्याकरण बना ली हो। ऐसे कतिपय कुछ शब्दों को देखें - पथ-Path, कवर-Cover, अन्दर-under, अर्ज-urge, कोयला- Coal, अंतरिम-interim, लूट-loot, डकैती-dacoity, पटल-Portal, बैल- bull इत्यादि।


शब्दों के उच्चारण की परम्परा तेजी से बढ़-फूल-फल कर कलान्तर में इतनी रूढ़ हो जाती है कि कभी-कभी अशुद्ध शब्द और शुद्ध शब्द अशुद्ध से प्रतीत होने लगते हैं। ये गलतियाँ उच्चारण, लेखन और मुद्रण तीनों स्तरों पर होती हैं। जैसे : गलती-गल्ती, उलटा-उल्टा, गलत-गल्त, विद्यालय-विध्यालय, त्योहार-त्यौहार, कैलास-कैलाश इत्यादि।


अंग्रेजी में समान उच्चारण व अर्थी शब्दों की दो वर्तनियाँ और एक वर्तनी के असमान उच्चारण व अर्थी शब्द :- अंग्रेजी शब्दकोश की शायद यह सभी भाषाओं से निराली विचित्रता है कि इसमें एक ओर ऐसे शब्द हैं जिनका अर्थ और उच्चारण समान होने के बावजूद उनकी वर्तनी (spelling) में भिन्नता है, तो दूसरी ओर ऐसे शब्द हैं जिनकी वर्तनी तो समान है, पर उच्चारण और अर्थ में भिन्नता है। देखेंसेंटर-केन्द्र-Certre-Center, पिग्मीलघु-pigmy-pygmy इत्यादि।


हिन्दी में द्विरूपीय शुद्धता वाले शब्दहिन्दी में ऐसे शब्दों की काफी संख्या है, जो दोनों ही रूपों में शुद्ध माने जाते हैं। हालाँकि इन दोनों रूपों में अंतर अतिसूक्ष्म होता है। इन शब्दों पर क्षेत्रीय ध्वन्यात्मकता (regional phonehism) का भी काफी असर पड़ता है, उदाहरणार्थ बंगाल के लोग 'व' को भी 'ब' बोलते है, जैसे 'प्रणव' के स्थान पर 'प्रणब' पर्वतवासी 'स' को 'ष' और 'श' बोलते हैं, जैसे 'साहब' के स्थान पर 'साहव' और अवध के लोग 'श' के स्थान पर अधिकांशतः 'स' उच्चारित करते है, जैसे 'शंकर' के स्थान पर 'संकर' इत्यादि। द्विरूपीय शुद्धता वाले कुछ शब्द देखें- वसंत-बसंत, विविधविविधि, विमल-बिमल, छवि-छबि, हिंदी-हिन्दी इत्यादि।


हिन्दी में ऐसे अनेक शब्द हैं, जिनमेंदो वर्गों के इधर से उधर स्थानांतरित होने के कारण शुद्धता नष्ट होने वाले शब्द धड़ल्ले से प्रचलन में हैं। ऐसे कुछ शब्दों को देखें : अह्लाद-आल्हाद, अपराह्नअपरान्ह, मध्याहन-मध्यान्ह इत्यादि।