विदेशों में भी पताका फहरा रही है हिन्दी

कबीर की निर्गुण भक्ति एवम् भक्ति काल के सूफी-संतों ने हिन्दी को काफी समृद्ध किया। कालांतर में मलिक मुहम्मद जायसी ने पद्मावत और गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस की अवधी में रचना कर हिन्दी को और भी जनप्रिय बनाया। अमीर खुसरो ने इसे 'हिंदवी' गाया तो हैदराबाद के मुस्लिम शासक कुली कुतुबशाह ने इसे 'जबाने हिन्दी' बताया। स्वतंत्रता तक हिन्दी ने कई पड़ावों को पार किया व दिनों-बदिन और भी समृद्ध होती गई। आज संसार भर में लगभग 5000 से अधिक भाषाएँ और बोलियाँ बोली जाती हैं। उनमें से लगभग 1652 भाषाएँ व बोलियाँ भारत में सूचीबद्ध की गई हैं जिनमें 63 भाषाएँ अभारतीय है। '


किसी भी राष्ट्र की उन्नति का 1 सीधा सम्बन्ध उसकी भाषा से होता है। भाषा ही वह तत्व है जो एक राष्ट्र को अन्य से अलग करते हुए उसे एक विशिष्ट पहचान देती है। तभी तो कहा गया कि निज भाषा उन्नति अहै, सब भाषन को मूल। आधुनिक भारतीय भाषाओं में सर्वाधिक लोकप्रिय हिन्दी भाषा हुई। साहित्य का सम्बन्ध सदैव संस्कृति से रहा है और हिन्दी भारतीय संस्कृति की अस्मिता की पहचान है। संस्कृत वांग्डमय का पूरा सांस्कृतिक वैभव हिन्दी के माध्यम से ही आम जन तक पहुँचा है। हिन्दी का विस्तार क्षेत्र काफी व्यापक रहा है, यहाँ तक कि उसमें संस्कृत साहित्य की परंपरा और लोक भाषाओं की वाचिक परम्परा की संस्कृति भी समाविष्ट रही है। स्वतंत्रता संग्राम में भी हिन्दी और उसकी लोकभाषाओं ने घर-घर स्वाधीनता की जो लौ जलायी वह मात्र राजनैतिक स्वतंत्रता के लिए ही नहीं थी, वरन सांस्कृतिक अस्मिता की रक्षा के लिए भी थी। भारत में साहित्य, संस्कृति और हिन्दी एक दूसरे के दर्पण रहे हैं ऐसा कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा।


कबीर की निर्गुण भक्ति एवम् भक्ति काल के सूफी-संतों ने हिन्दी को काफी समृद्ध किया। कालांतर में मलिक मुहम्मद जायसी ने पद्मावत और गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस की अवधी में रचना कर हिन्दी को और भी जनप्रिय बनाया। अमीर खुसरो ने इसे 'हिंदवी' गाया तो हैदराबाद के मुस्लिम शासक कुली कुतुबशाह ने इसे 'जबाने हिन्दी' बताया। स्वतंत्रता तक हिन्दी ने कई पड़ावों को पार किया व दिनों-ब-दिन और भी समृद्ध होती गईआज संसार भर में लगभग 5000 से अधिक भाषाएँ और बोलियाँ बोली जाती ' हैं। उनमें से लगभग 1652 भाषाएँ व बोलियाँ भारत में सूचीबद्ध की गई हैं जिनमें 63 भाषाएँ अभारतीय हैं। चूँकि इन 1652 भाषाओं को बोलने वाले समान अनुपात में नहीं हैं अतः संविधान की आठवीं अनुसूची में 18 भाषाओं को शामिल किया गया जिन्हें देश की कुल जनसंख्या के 91 प्रतिशत लोग प्रयोग करते हैं। इनमें भी सर्वाधिक 46 प्रतिशत लोग हिन्दी का प्रयोग करते हैं अतः हिन्दी को राजभाषा को रूप में वरीयता दी गयी।


भारत में हिन्दी की अपेक्षा अंग्रेजी को वरीयता देने का एक फैशन सा चल पड़ा है। पर तमाम शोधों ने सिद्ध कर दिया है कि स्वंय ब्रिटेन तक में हिन्दी की शुरूआत प्रिंटिंग प्रेस क्रान्ति के साथ ही सोलहवीं शताब्दी के आरम्भ में ही हो गयी जबकि उस समय भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की नींव पड़नी अभी आरम्भ ही हुई थी। सन् 1560 में ब्रिटेन में देवनागरी में छपाई का कार्य आरम्भ हो चुका था जबकि तब तक वह भारत में हाथ से ही लिखी जा रही थी। कालान्तर में जे. विल्किंसन व जार्ज फॉस्टर ने क्रमशः श्रीमद्भागवत गीता व अभिज्ञान शाकुन्तलम से प्रभावित होकर हिन्दी सीखी और उनका अंग्रेजी में अनुवाद किया। सन् 1800 के दौरान स्कॉटलैण्ड के जॉन बोथनिक गिलक्रास्ट ने देवनागरी और उसके व्याकरण पर तमाम पुस्तकें लिखीं तो डॉ. एल. एफ. रूनाल्ड ने 1873 से 1877 तक भारत प्रवास के दौरान हिन्दी व्याकरण पर काफी कार्य किया और लंदन से इस विषय पर एक पुस्तक भी प्रकाशित करायी। सन् 1865 में एक राजाज्ञा के तहत लंदन की रॉयल एशियाटिक सोसायटी में हिन्दी सहित भारत में मुद्रित सभी भाषाओं के अखबार, पत्रिकायें व पुस्तकें आने लगीं। 1935 में बेल्जियम के नागरिक डॉ. कामिल बुल्के इसाई धर्म प्रचार के लिए भारत आए पर फ्रेंच, अंग्रेजी, फ्लेमिश, आयरिश भाषाओं पर अधिकार होने के बाद भी हिन्दी को ही अभिव्यक्ति का माध्यम चुना। अपने हिन्दी ज्ञान में वृद्धि हेतु उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम.ए. किया और तुलसी दास को अपने प्रिय कवि के रूप में चुनकर 'रामकथा उद्भव और विकास' पर डी. फिल की उपाधि भी प्राप्त की। स्पष्ट है कि हिन्दी एक लम्बे समय से विदेशियों को भी आकर्षित करती रही है।


देश में नई पीढ़ी पर भले ही अंग्रेजी का भूत चढ रहा हो विदेशों में हिंदी की महत्ता पिछले सालों में काफी बढ़ी हैं। आज हिन्दी भारत ही नहीं बल्कि पाकिस्तान, नेपाल बांग्लादेश, इराक, इंडोनेशिया, इजरायल, ओमान, फिजी, इक्वाडोर, जर्मनी, अमेरिका, फ्रांस, ग्रीस, ग्वाटेमाला, सउदी अरब, पेरू, रूस, कतर, म्यंमार, त्रिनिदाद-टोबैगो, यमन इत्यादि देशों में जहाँ लाखों अनिवासी भारतीय व हिन्दी- भाषी हैं, में भी बोली जाती है। मॉरीशस, त्रिनिदाद-टोबैगो, सूरीनाम, गुयाना, फीजी, द. अफ्रीका जैसे देशों में 'गिरमिटिया' के रूप में गए भारतीय अपनी संस्कृति व हिन्दी को सहेजना चाह रहे हैं। विदेशी विश्वविद्यालयों ने इसे एक महत्वपूर्ण विषय के रूप में अपनाया है। आज 150 से अधिक विश्वविद्यालयों में हिन्दी पढ़ाई जा रही है।


अमेरिका में भाषा आधारित गणना की एक रिपोर्ट के अनुसार वहाँ 65 लाख लोग हिन्दी बोलते हैं, जबकि 8 लाख से ज्यादा लोग भारत की अन्य क्षेत्रीय भाषाएँ बोलते है। गौरतलब है कि अमेरिका में 32 विश्वविद्यालयों ओर शिक्षण संस्थानों में हिंदी की पढ़ाई होती है। अमेरिका में टेक्सास के स्कूलों में पहली बार 'नमस्ते जी' नामक हिन्दी की पाठ्यपुस्तक को हाईस्कूल के छात्रों के लिए पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है। 480 पेज की इस पुस्तक को भारतवंशी शिक्षक अरूण प्रकाश ने आठ सालों की मेहनत से तैयार की है। अरूण प्रकाश 80 के दशक में पढ़ाई और व्यापार के लिए अमेरिका गए थे। 1989 में जब पहली बार उन्होंने टेक्सास के एक स्कूल में हिंदी पढ़ाना शुरू किया तो उनकी कक्षा में केवल आठ छात्र पहुँचे। इनमें से सात भारतीय मूल के थे। तभी से उन्होंने इस संबंध में प्रयास शुरू कर दिये।


ब्रिटेन के लंदन विश्वविद्यालय, केम्ब्रिज और यॉर्क विश्वविद्यालय में भी हिंदी का अध्ययन होता है। जर्मनी के 15 शिक्षण संस्थानों ने हिन्दी भाषा तथा साहित्य के अध्ययन को अपनाया है। यहाँ कई संगठन हिंदी के प्रचार का काम करते हैं। हॉलैण्ड में 1930 से हिंदी का अध्ययन हो रहा है। आज यहाँ के चार विश्वविद्यालयों ने इसे प्रमुख विषय के रूप में अपना रखा है। चीन की बात करें तो यहाँ 1942 में हिंदी को अध्ययन का एक प्रमुख विषय मानने की शुरूआत हुई। चीन में पहली बार हिंदी रचनाओं का अनुवाद कार्य 1957 में शुरू हुआ और इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए बीजिंग विश्वविद्यालय के प्रोफेसर विड हान ने तुलसीदास कृत रामचरित मानस का चीनी भाषा में अनुवाद किया। इटली के लोग भी भारत की संस्कृति से रूबरू होने के लिए हिंदी सीखने की इच्छा रखते हैं। रूस में बड़े स्तर पर हिंदी रचनाओं और ग्रंथों का रूसी भाषा में अनुवाद कार्य होता है। यहाँ के लोगों में हिन्दी सीखने की अत्यधिक ललक है। रूसी लोग हिंदी फिल्मों और हिंदी गीतों के दीवाने हैं। फ्रांस के पेरिस विश्वविद्यालय की बात करें तो वहाँ हर साल 60-70 विद्यार्थी हिंदी अध्ययन के लिए प्रवेश लेते हैं। ऑस्ट्रेलिया के कैनबरा और मेलबर्न विश्वविद्यालय में भी हिंदी पढ़ाई जाती है। विएना विश्वविद्यालय और बेल्जियम के तीन विश्वविद्यालयों में भी हिंदी का महत्वपूर्ण स्थान है। जापान में भी हिंदी का अहम स्थान है। जापान रेडियो से पहला हिंदी कार्यक्रम 1950 में प्रसारित हुआ था। फिजी में व्यापार, बाजार, कारखानों जैसे सभी क्षेत्रों में हिन्दी का दबदबा है। मारीशस में भी हिंदी बहुत लोकप्रिय है। यहाँ के 260 प्राथमिक स्कूलों में नियमित तौर पर हिंदी की पढ़ाई होती है।


ऑस्ट्रेलिया के स्कूलों-कॉलेजों में भी हिंदी की पढ़ाई शामिल की जा रही है और दक्ष प्रवासी भारतीयों की इसमें मदद ली जा रही है। मेलबर्न के 'ऑस्ट्रेलिया इंडिया इंस्टीट्यूट' (एआइआइ) ने सरकार को सौंपी अपनी रिपोर्ट में तर्क दिया है कि स्कूलों के पाठ्यक्रम में हिंदी को शमिल किया जाए और ऑस्ट्रेलिया की एशिया नीति का यह अनिवार्य हिस्सा होना चाहिए। ऑस्ट्रेलिया के जाने-माने पत्रकार हमिश मैकडोनल्ड की रिपोर्ट में सरकार द्वारा वर्ष 2012 में पेश किये गए एशिया श्वेतपत्र में हिंदी को चार प्राथमिक भाषाओं (चाइनीज, जापानी, इंडोनेशियाई) के रूप में माना गया था।


भूमण्डलीकरण एवं सूचना क्रांति के इस दौर में जहाँ एक ओर 'सभ्यताओं का संघर्ष' बढ़ा है, वहीं बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की नीतियों ने भी विकासशील व अविकसित राष्ट्रों की संस्कृतियों पर प्रहार करने की कोशिश की है। सूचना क्रांति व उदारीकरण द्वारा सारे विश्व के सिमट कर एक वैश्विक गाँव में तब्दील होने की अवधारणा में अपनी संस्कृति, भाषा, मान्यताओं, विविधताओं व संस्कारों को बचाकर रखना सबसे बड़ी जरूरत है। एक तरफ बहुराष्ट्रीय कम्पनियां जहाँ हमारी प्राचीन सम्पदाओं का पेटेंट कराने में जुटी हैं वहीं इनके ब्राण्ड-विज्ञापनों ने बच्चों व युवाओं की मनोस्थिति पर भी बहुत गहरा प्रभाव डाला है, निश्चिततः इन सबसे बचने हेतु हमें अपनी भाषा की तरफ उन्मुख होना होगा। यदि भारतीय फिल्में विदेशों में अच्छा व्यवसाय कर रही हैं तो विदेशों में बसे भारतीयों का प्रमुख योगदान है। यह वर्ग ऐसा है जो रोजगार की खोज में विदेशों में भले ही जा बसा, पर मातृभूमि से लगाव जस का तस है। उनकी रोजी- रोटी की भाषा भले ही दूसरी हो, पर उनका मन हिन्दी में ही रमता है। हम इस तथ्य को नक्कार नहीं सकते कि हाल ही में प्रकाशित ऑक्सफोर्ड अंग्रेजी शब्दकोष में हिन्दी के तमाम प्रचलित शब्दों, मसलन- आलू, अच्छा, अरे, देसी, फिल्मी, गोरा, चड्डी, यार, जंगली, धरना, गुण्डा, बदमाश, बिंदास, लहंगा, मसाला इत्यादि को स्थान दिया गया है।


अमरीकी राष्ट्रपति जार्ज बुश ने राष्ट्रीय सुरक्षा भाषा कार्यक्रम के तहत अपने देशवासियों से हिन्दी, फारसी, अरबी, चीनी व रूसी भाषायें सीखने को कहा। अमेरिकी राष्ट्रपति ने स्पष्टतया घोषणा की कि-"हिन्दी ऐसी विदेशी भाषा है, जिसे 21वीं सदी में राष्ट्रीय सुरक्षा और समृद्धि के लिए अमेरिका के नागरिकों को सीखनी चाहिए।" इसी क्रम में अमरीकी राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा ने अपने चुनावी घोषणा पत्र की प्रतियाँ अंग्रेजी के साथ- साथ हिन्दी और मलयालम में भी छपवाकर वितरित की। ओबामा के राष्ट्रपति चुनने के बाद सरकार की कार्यकारी शाखा में राजनैतिक पदों को भरने के लिए जो आवेदन पत्र तैयार किया गया उसमें 101 भाषाओं में भारत की 20 क्षेत्रीय भाषाओं को भी जगह दी गई। इनमें अवधी, भोजपुरी, छत्तीसगढ़ी, हरियाणवी, माघी व मराठी जैसी भाषायें भी शामिल हैं, जिन्हें अभी तक भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में स्थान तक नहीं मिल पाया है। इसी प्रकार जब दुनियाँ भर में अंग्रेजी का डंका बज रहा हो, तब अंग्रेजी के गढ़ लंदन में बर्मिघम स्थित मिडलैंड्स वर्ल्ड ट्रेड फोरम के अध्यक्ष पीटर मैथ्यूज ने ब्रिटिश उद्यमियों, कर्मचारियों और छात्रों को हिंदी समेत कई अन्य भाषाएं सीखने की नसीहत दी है।



आज की हिन्दी वो नहीं रही..... बदलती परिस्थितियों में उसने अपने को परिवर्तित किया है। विज्ञान-प्रौद्योगिकी से लेकर तमाम विषयों पर हिन्दी की किताबें अब उपलब्ध हैं, क्षेत्रीय अखबारों का प्रचलन बढ़ा है, इण्टरनेट पर हिन्दी की बेबसाइटों में बढ़ोत्तरी हो रही है, सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र की कई कम्पनियों ने हिन्दी भाषा में परियोजनाएं आरम्भ की हैं। सूचना क्रांति के दौर में कम्प्यूटर पर हिन्दी में कार्य संस्कृति को बढ़ावा देने हेतु सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के प्रतिष्ठान सी-डैक ने निःशुल्क हिन्दी साफ्टवेयर जारी किया है, जिसमें अनेक सुविधाएं उपलब्ध हैं। गूगल द्वारा कई भाषाओं में अनुवाद की सुविधा प्रदान करने से अंग्रेजी न जानने वाले भी इण्टरनेट के माध्यम से अपना काम आसानी से कर सकते हैं। इंटरनेट के इस दौर में महत्वपूर्ण हिन्दी किताबों के ई प्रकाशन के साथ-साथ तमाम हिन्दी पत्रपत्रिकाएं भी अपना ई-संस्करण जारी कर रही हैं, जिससे वैश्विक स्तर पर। हिन्दी भाषा व साहित्य को नए आयाम मिले हैं। आज हिन्दी के वेब पोर्टल समाचार, व्यापार, साहित्य, ज्योतिषी, सूचना प्रौद्योगिकी एवं तमाम जानकारियाँ सुलभ करा रहे हैं। निश्चिततः इससे हिन्दी भाषा को वैश्विक स्तर पर एक नवीन प्रतिष्ठा मिली है। यह अनायास ही नहीं है कि 51 करोड़ लोगों तक पहुँच के साथ अंग्रेजी यदि दुनियाँ की सबसे बड़ी संपर्क-भाषा है तो 49 करोड़ के साथ हिन्दी दूसरी संपर्कभाषा है। कभी ब्रिटेन ने हम पर राज किया था पर जब वहीं के एक प्रोफेसर रूपर्ट स्नेल हिन्दी के पक्ष में बोलते हैं, तो गर्व होना लाजिमी भी है- 'हिन्दी जिंदगी का हिस्सा है। हिन्दी जिंदा है। हिन्दी किसी एक वर्ण या जाति या धर्म या मजहब या मार्ग या देश या संस्कृति की नहीं है। हिन्दी भारत की है, मारीशस की है, इंग्लैंड की है, सारी दुनियाँ की है। हिन्दी आपकी है, हिन्दी मेरी है।'