कला में श्रीलक्ष्मी

गजलक्ष्मी का एक ऐसा मंदिर भी है, जिसमें लक्ष्मी को सफेद हाथी पर सवार हुए बनाया गया है। विश्व में ऐसी प्रतिमा एक ही है। यह मंदिर रुईपेठ (नासिक, महाराष्ट्र) में है और जानकारों के अनुसार लगभग दो हजार वर्ष पुराना विक्रम कालीन है। इनके साथ विष्णु की काले पत्थर की मनोरम मूर्ति है। साथ ही विष्णु के दशावतार की उत्कीर्ण मर्तियाँ भी मनोहारी हैं। इस मंदिर में काँच का बना श्रीयंत्र निर्मित है। नवरात्रि व हाथी (लक्ष्मी) अष्टमी पर इसका विशिष्ट महत्त्व है।


भारतीय कला का समुज्जवल इतिहास विगत छः हजार वर्षों से भी अधिक के विस्तार में परिव्याप्त है। मंदिर एवं मूर्तिकला के विकास का आधार भी मानव मनीषा, सभ्यता एवं संस्कृति का विकास है।



मनुष्य के उदय के साथ ही यहाँ शक्ति की पूजा की जाती रही है। चाहे वह प्राकृतिक शक्ति हो या प्रकृति। मानव-सभ्यता के प्रारंभ से ही मातृदेवी की मूर्त कल्पना को मानवीय व प्रतीकात्मक रूप में मान्यता मिली। प्रकृति हमेशा आश्रयदात्री रही है और उसी के संरक्षण में मानव को नई प्रेरणा मिली। स्त्री रूप को मानव ने अलग रूप में उत्कीर्ण किया। सिन्धु घाटी के अवशेषों से प्राप्त विभिन्न आकार के गोलकार पत्थर, पकाई हुई मूर्ति के ठीकरों पर अंकित आकृतियाँ तथा छोटो-छोटी स्त्री-मूर्तियाँ सभ्यता के आदिकाल में भी पूजा सृष्टि के स्त्री तत्त्व की ओर संकेत करती हैं।


वेदों में स्त्री तत्त्व की कल्पना वाक्, अदिति, ऊषा, सरस्वती, अम्बिका, दुर्गा, कात्यानी, लक्ष्मी आदि देवियों का उल्लेख मिलता है। प्रायः शक्ति को तीनों रूपों में चित्रकला व मूर्तिकला में चित्रित व उत्कीर्ण किया गया है। प्रथम भयानक रूप में उत्कीर्ण है, जिसके अंर्तगत महिषामर्दिनी, चामुण्डा व सप्तमातृका हैं, द्वितीय शांत रूप में उत्कीर्ण है, जिसमें सरस्वती, लक्ष्मी, गजलक्ष्मी, श्रृंगार दुर्गा व पार्वती हैं तथा तीसरा रूप अभयदान का है, जिसमें सरस्वती, लक्ष्मी आदि रूप उत्कीर्ण हैं।


धन व समृद्धि की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी है। 'रूपमण्डन' के अनुसार लक्ष्मी अष्ठदल पद्म पर स्थित सिंहासन पर विनायक के समान आसीन हो, वे समस्त आभूषणों से विभूषित हो और उनके उर्ध्वकरों में पद्म और वामकरों में अमृतघट हो और दक्षिण में मातुलिंग धारण हो। कभी-कभी लक्ष्मी के पीछे करिद्वयम (घटधारी गज युगल) भी उत्कीर्ण हो। जैन साहित्य तथा कला में भी गजलक्ष्मी तथा उनकी प्रतिमाओं का उल्लेख प्राप्त होता है। यहाँ भी श्रीदेवी दीनारमाला (स्वर्ण-सिक्कों की माला) का विवरण है, वह गले में धारित है और जो समृद्धि का प्रतीक है। महावीर स्वामी की माता ने भी स्वप्न में पद्मादेवी को कमल पर आसीन हाथियों द्वारा अभिव्यक्त होते देखा था। श्रीदेवी यक्षिणी की जैन प्रतिमा हिन्दुओं में देव परिवार की श्रीलक्ष्मी की ही सत्य प्रतिलिपि दृष्टिगत होती है। कोटा के राजकीय संग्रहालय में श्रीलक्ष्मी की 9वीं शताब्दी की एक प्रतिमा है। इसका क्रमांक 67/56 है और आकार 25"x 21" है। लक्ष्मी के चतुर्हस्त हैं तथा वे सिंहासनरूढ़ विराजमान हैं। दो हाथ व एक पैर प्रायः खण्डित हो गया है। एक हस्त में गदा है और अन्य हस्त धनवर्षा करता हुआ अंकित है। पाषाण की बनी मूर्ति पर शांत व सौम्य भाव का प्रदर्शन है। लक्ष्मी का मुख गोलाकार है तथा संपूर्ण शरीर सिर से नख तक आभूषणों से सुसज्जित है। मुकूट भी अलंकृत उत्कीर्ण है।


एक अन्य पाषाण प्रतिमा है, जिसका क्रमांक 198/123 है। इसका आकार 37" x 22" है। यह भी 9वीं शती की प्रतिमा है, जिसे अटरू से प्राप्त किया गया है। एक अन्य प्रतिमा नीलकण्ठ महादेव मंदिर में है। यह गजलक्ष्मी की प्रतिमा है। मध्य में लक्ष्मी है और दोनों ओर गज हैं, जो लक्ष्मीजी का जलाभिषेक करते हुए उत्कीर्ण है। प्रतिमा का अधिकांश भाग नष्ट हो गया है।


चित्रकला-क्षेत्र में भी श्रीलक्ष्मी व गजलक्ष्मी को चित्रित किया गया है। कोटा गढ़ पैलेस में भी भित्ति में बने आलों में लक्ष्मी का एक सुंदर चित्र है, जिसकी पृष्ठभूमि में आकाश गहरे नीले रंग व सफेद मिश्रित हल्के नीले रंग से बनाया गया है। मध्यभूमि में पेड़पौधे हरे रंग की विभिन्न तान द्वारा बनाए हैं और अग्रभूमि में नीले व सफेद रंग में जल चित्रित है। जल में श्रीलक्ष्मी की चतुर्हस्त मूरत कमल पर खड़ी अवस्था में चित्रित है। उनके बाई और एक श्वेत हाथी है, जो जल श्रीलक्ष्मी पर डालते हुए है। लक्ष्मीजी अपने आयुध व प्रतीकों द्वारा लाल व गहरे पीले रंग के वस्त्र धारण किये हुए हैं। संपूर्ण शरीर पर धारित आभूषण तथा सिर का मुकूट स्वर्ण द्वारा बनाया गया है। यह चित्र भी प्रायः नष्ट होता जा रहा है। संपूर्ण चित्र व भाव बहुत ही आकर्षक व भावों के साथ चित्रित किये गये हैं।


एक अन्य चित्र है, जिसमें लक्ष्मीजी अपने केश को हाथों से निचोड़ते हुए हैं और सफेद हाथी उनका जलाभिषेक करते हुए है। क्षितिज में हल्का-सा आकाश बनाया है। अग्रभूमि में कमल सरोवर और मध्य में लक्ष्मी के साथ आठ सफेद हाथियों को विभिन्न मुद्रा में चित्रित किया है।


इस प्रकार लक्ष्मी को श्रीलक्ष्मी, गजलक्ष्मी तथा विष्णु के साथ विष्णुप्रिया तथा विष्णु अवतार राम के साथ सीता, कृष्ण के साथ राधा व रुक्मिणी तथा विष्णु के वामन अवतार में लक्ष्मी को कमल रूप में चित्रित किया गया है।


लक्ष्मी को यूनानी देवकथा की एफ्रोडाइड़ की ही तरह माना जाता है, जिन्हें आदि सागर से सागर-मंथन के समय निकाला गया था।


विष्णु की संगिनी (शक्ति) के रूप में लक्ष्मी है, जो सौंदर्य और संपदा की देवी है। इनके चतुर्हस्त हिन्दू धर्म के चार कर्मों (धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष) को दर्शाते हैं। जैन धर्म, तिब्बत व नेपाल में देवी वसुंधरा व उनके गुण लक्ष्मी से ही साम्य रखते हैं।


गजलक्ष्मी का एक ऐसा मंदिर भी है. जिसमें लक्ष्मी को सफेद हाथी पर सवार हुए बनाया गया है। विश्व में ऐसी प्रतिमा एक ही है। यह मंदिर रुईपेठ (नासिक, महाराष्ट्र) में है और जानकारों के अनुसार लगभग दो हजार वर्ष पुराना विक्रम कालीन है। इनके साथ विष्णु की काले पत्थर की मनोरम मूर्ति है। साथ ही विष्णु के दशावतार की उत्कीर्ण मूर्तियाँ भी मनोहारी हैं। इस मंदिर में काँच का बना श्रीयंत्र निर्मित है। नवरात्रि व हाथी (लक्ष्मी) अष्टमी पर इसका विशिष्ट महत्त्व है।


अतः साहित्य हो, कला (चित्रकला व मूर्तिकला) हो या मंदिर हो, आज ही नहीं वरन् सदियों पूर्व से ही श्रीलक्ष्मी की विभिन्न रूपों में मान्यता है तथा इनके विभिन्न रूपों को चित्रित व उत्कीर्ण किया गया है।