राष्ट्रमण्डल खेल : परिदृष्य पर स्थापित हो रहे भारतीय एथलीट

1938 के सिडनी खेलों में भारतीय एथलीटों ने भाग नहीं लिया जबकि 1950 के आकलैण्ड खेलों में भारत ने अपना दल ही नहीं भेजा। 1954 में वेनकुवर से चार एथलीटों का दल भी खाली हाथ वापस आया। 120 गज तथा 440 गज बाधा दौड़ में क्रमशः सरवन सिंह और जोगिंदर सिंह हीट मुकाबले में ही बाहर हो गए।



इंग्लैण्ड और आस्ट्रेलिया के साथ ही अफ्रीकी और कैरेबियाई देशों के एथलीटों की उपस्थिति के फलस्वरूप राष्ट्रमण्डल खेलों के एथलेटिक्स मुकाबले सदा ही दिलचस्प और कड़ी प्रतिस्पर्धा वाले रहे हैं। 1930 में हमिल्टन, न्यूजीलैण्ड से शुरू हुए इन खेलों में भारतीय एथलीटों ने पहली बार 1934 में लंदन में हुए खेलों में भाग लिया था। 4x110 गज की रिले स्पर्धा में रोनाल्ड वेर्निएक्स, जहांगीर खान, ज्ञान प्रकाश भल्ला एवं निरंजन सिंह की चौकड़ी ने छठवां स्थान प्राप्त किया था। व्यक्तिगत स्पद्धाओं में वेनिएक्स 100 एवं 220 गज की बाधा दौड़ों में हीट मुकाबलों में ही बाहर हो गए थे। इसी तरह निरंजन सिंह लम्बी कूद व अब्दुल सफी खान जेवलिन थ्रो में कुछ उल्लेखनीय नहीं कर सके।


1938 के सिडनी खेलों में भारतीय एथलीटों ने भाग नहीं लिया जबकि 1950 के आकलैण्ड खेलों में भारत ने अपना दल ही नहीं भेजा। 1954 में वेनकुवर से चार एथलीटों का दल भी खाली हाथ वापस आया। 120 गज तथा 440 गज बाधा दौड़ में क्रमशः सरवन सिंह और जोगिंदर सिंह हीट मुकाबले में ही बाहर हो गए। अजीत सिंह 1.83 मी की ऊंचाई नाप कर ग्यारहवें स्थान पर रहे जबकि प्रदुमन सिंह बरार डिस्कस थ्रो में दसवें (41.37मी.) तथा शाटपट में सातवें (13.88मी.) रहे।


1958 में कार्डिफ खेलों में पहली बार एथलेटिक्स स्पद्धाओं में भारत का सूखा खत्म हुआ। उड़नसिख के नाम से मशहूर मिल्खा सिंह ने 440 गज की दौड़ स्पर्धा में 46.6 से. का नया कीर्तिमान बनाते हुए स्वर्ण पदक जीता। 4x440 गज रिले मुकाबले में भारतीय टीम 3 मि. 15.3 से. के साथ पांचवे स्थान पर रही। इस टीम के सदस्य थे अलेक्स सिल्वेरा, दलजीत सिंह, मिल्खा सिंह एवं वहीद उस्मानी। अन्य मुकाबलों में भारतीय एथलीट एक बार फिर फिसड्डी सिद्ध हुए। 440 गज बाधा दौड़ में वहीद उस्मानी सेमी फायनल तक पहुंचे जबकि जगदेव सिंह इसी स्पर्धा में प्रारंभिक-दौर में ही बाहर हो गए। डिस्कस थ्रो में बलकार सिंह (10वें) व प्रदुमन सिंह (12वें), लम्बी कूद में राम मेहर (12वें), ऊंची कूद में सरनजीत सिंह (20वें), त्रिकूद में मोहिंदर सिंह (11वें) तथा शाटपट में प्रदुमन सिंह (10वें) असफल रहे। पहली बार दो महिला एथलीट भी भारतीय दल का हिस्सा थी। एलिजाबेथ डेवनपोर्ट जेवलिन थ्रो में 40.53 मी. की दूरी तक भाला फेंक कर सातवें स्थान पर रहीं जबकि स्टेफी डिसूजा 110 व 220 गज की फरार्टा दौड़ों की प्रारंभिक हीट में ही बाहर हो गई।


1962 में पर्थ खेलों में भारत कछ कारणों से शिरकत नहीं कर सका। भारत को दूसरा पदक 1966 में किंगस्टन खेलों में प्रवीण कुमार ने हैमर थ्रो स्पर्धा में दिलाया। उन्होंने हैमर को 60.13 मी. तक प्रक्षेपित कर इन खेलों में रजत पदक प्राप्त किया। डिस्कस थ्रो में उनको आठवां स्थान मिला। 120 गज बाधा दौड़ में गुरबचन सिंह रंधावा तथा ऊंची कूद में भीम सिंह सातवें स्थान पर रहे। शेष एथलीटों-केनेथ पावेल (100 एवं 220 गज), अजमेर सिंह (440 गज) व एडवर्ड सीक्वेरा (1 मील) प्रारंभिक चक्र से ही आगे नहीं बढ़ सके। अगले खेलों (1970 एडिनबर्ग) में नौ सदस्यीय भारतीय टीम मैदान में उतरी लेकिन केवल मोहिंदर सिंह गिल ही त्रिकूद स्पर्धा में तीसरे नम्बर पर रह कर पदक जीत सके। उन्होंने 15.90 मी. की कूद लगाकर यह सफलता पाई। इसी स्पर्धा में लाभ सिंह ने छठवां स्थान (15.70 मी.) प्राप्त किया। प्रवीण कुमार इस बार पिछली बार से अधिक दूरी तक (60.34 मी.) हैमर प्रक्षेपित करने के बावजूद पांचवां स्थान ही हासिल कर सके। ऊंची कूद में भीम सिंह 2.06 मी. के साथ चौथे स्थान पर रहे। 20 मील पदचालन स्पर्धा में बचन सिंह अयोग्य घोषित हो गए और डिकेथलन में विजयसिंह चौहान पांच स्पद्धाओं के बाद मैदान से ही हट गए।


चार साल बाद क्राइस्ट चर्च खेलों में भी मोहिंदर सिंह गिल एक बार पुनः भारत के लिए एकमात्र मेडल जीत कर लाए। इस बार उन्होंने 16.44 मी. की छलांग लगाकर रजत पदक जीता। इन खेलों की एथलेटिक्स स्पद्धाओं में भाग लेने वाले वह एकमात्र भारतीय खिलाड़ी थे। 1978 में एडमंटन खेलों से सात सदस्यीय भारतीय टीम मात्र एक कांस्य पदक लेकर लौटी जिसे जीतने का श्रेय लम्बी कूद में सुरेश बाबू ने प्राप्त किया था। शाटपट में तीन भारतीय पटर-बहादुर सिंह, जगराज सिंह एवं गुरदीप सिंह क्रमशः सातवें, आठवें व नौवें स्थान पर रहे। हैमर थ्रो में प्रवीण कुमार दसवां स्थान ही हासिल कर सके। 100 मी. दौड़ में रामास्वामी ज्ञानशेखरन, 110 मी. बाधा दौड़ में सतबीर सिंह और मैराथन में शिवनाथ सिंह कोई कमाल नहीं दिखा सके। 1982 में राष्ट्रमंडल खेल ब्रिस्बेन में आयोजित हुए थे। उसी वर्ष नवम्बर में नई दिल्ली में एशियाई खेल भी आयोजित होने वाले थे अतएव इन खेलों में भारत ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया था। तीन सदस्यों वाले एथलेटिक दल ने भारी निराश किया और सभी खाली हाथ वापस लौटे। 10000 मी. में राजकुमार दसवें स्थान पर रहे। अलापुरकल मैथ्यूज महिलाओं की लम्बी कूद के फाईनल तक जरूर पहुंची लेकिन चोट लगने के कारण शिरकत नहीं कर सकीं। 20 किमी पद चालन में चांदराम स्पर्धा के बीच में ही हट गए।


24 वर्ष के अंतराल के पश्चात 2002 मानचेस्टर खेलों में भारतीय एथलीट एक रजत और एक कांस्य पदक जीतने में सफल रहे। ये सफलता इसलिए भी महत्वपूर्ण रही कि ये दोनों पदक पहली बार महिला एथलीटों ने जीते। रजत पदक नीलम जे सिंह ने 58.49 मी. तक डिस्कस प्रक्षेपित कर अर्जित किया जबकि कांस्य पदक लम्बी कूद में अंजू बॉबी जॉर्ज ने 6.49 मी. की लम्बी छलांग के साथ जीता। 2006 में मेल्बोर्न में हुए खेलों में भारत की सफलता का ग्राफ थोड़ा और ऊपर गया जब भारतीय एथलीट 2 रजत और 1 कांस्य पदक के साथ स्वदेश लौटे। दोनों रजत पदक महिला एथलीटों ने जीते। सीमा एंतिल ने 60.56 मी. की दूरी तक डिस्कस फेंक कर यह सफलता अर्जित की जबकि 4x400 मी. रिले में राजविंदर कौरए चित्रा सोमन, मंजीत कौर व पिंकी प्रमाणिक की चौकड़ी ने 3 मि. 29.57 से. का समय निकाल कर दूसरा रजत पदक दिलाया। कांस्य पदक पैरा एथलीट रंजीत कुमार जयशीलन ने डिस्कस थ्रो में जीता। महिलाओं की डिस्कस थ्रो स्पर्धा में कृष्णा पूनिया पांचवें तथा हरवंत कौर सातवें स्थान पर रहीं। पुरुषों एवं महिलाओं की 20 किमी पैदल चलने की स्पर्धा में पीएस जालान तथा दीपमाला देवी को क्रमशः पांचवां एवं छठवां स्थान मिला। 400 मी. में मंजीत कौर सातवें, हेप्टाथलन में सीमा विश्वास आठवें तथा लम्बी कूद में अंजू बॉबी जॉर्ज छठवें स्थान पर रहीं। विकास गौड़ा डिस्कस थ्रो में छठवें तथा शाटपट में पांचवें नम्बर पर रहे।


अपनी सरजमी पर 2010 में नई दिल्ली में आयोजित खेलों में भारतीय एथलीटों ने करिश्माई प्रदर्शन किया और रिकार्ड तोड़ 2 स्वर्ण, 3 रजत तथा 7 कांस्य पदक जीते। महिलाओं ने दोनों स्वर्ण पदक जीतने के साथ ही दो रजत और तीन कांस्य पदक जीतकर करामाती प्रदर्शन किया। डिस्कस थ्रो स्पर्धा के तीनों पदक भारतीय महिलाओं ने अपने नाम कर भारतीय खेल इतिहास में अभूतपूर्व कारनामा दर्ज किया। इस स्पर्धा का स्वर्ण पदक कृष्णा पूनिया ने 61.51 मी. डिस्कस प्रक्षेपित कर जीता जबकि रजत पदक 60.16 मी. दूरी के साथ हरवंत कौर के नाम रहा। कांस्य पदक सीमा एंतिल के खाते में गया। भारत के लिए दूसरी स्वर्णिम सफलता मंजीत कौर, सिनी जोस, अश्विनी अकुनजी व मनदीप कौर की चौकड़ी 4x400 रिले दौड़ में लेकर आई। उन्होंने 3 मि. 27.77 से. का समय निकाला और इंग्लैण्ड की टीम को दूसरे स्थान पर धकेल दिया। महिला वर्ग में अन्य पदक विजेता खिलाड़ी थीं-एम प्रजूशा (रजत, लम्बी कूद), कविता राउत (कांस्य, 10000 मी.) एवं 4x100 मी. रिले टीम (कांस्य)। पुरुषों के समूह में विकास गौड़ा का प्रदर्शन सबसे बेहतर रहा। उन्होंने डिस्कस थ्रो मुकाबले में रजत पदक जीता। कांस्य पदक जीतने वालों में हरमिंदर सिंह (20 किमी पदचालन), काशीनाथ नाइक (जेवलिन), रंजीत माहेश्वरी (त्रिकूद) तथा 4x100 मी. रिले टीम शामिल थी।


2014 में ग्लास्गो में सम्पन्न खेलों में भारतीय एथलीट गत खेलों जैसी सफलता तो नहीं पा सके लेकिन एक स्वर्ण, एक रजत और एक कांस्य पदक जीत कर उन्होंने निराश भी नहीं होने दिया। इन खेलों में स्वर्णिम सफलता डिस्कस थ्रो में गत खेलों के रजत पदक विजेता विकास गौड़ा को मिली। उन्होंने 63.64 मी. की दूरी नाप कर यह कामयाबी पाई। रजत पदक महिलाओं की डिस्कस थ्रो स्पर्धा में सीमा एंतिल ने हासिल कियाइसी मुकाबले में गत स्वर्ण पदक विजेता कृष्णा पूनिया पांचवें नम्बर पर रहीं। राष्ट्रमंडल खेलों में सीमा का यह लगातार तीसरा पदक था। कांस्य पदक त्रिकूद मुकाबले में अर्पितंदर सिंह के खाते में गया। अन्य एथलीटों में ओम प्रकाश सिंह शाटपट में छठवें, चंद्रदय सिंह हैमर थ्रो में आठवें व रविंदर सिंह जेवलिन थ्रो में ग्यारहवें स्थान पर रहे। महिला वर्ग में ऊंची कूद में सहाना गोब्बरगुम्पी व जेवलिन थ्रो में अन्नु रानी आठवें नम्बर पर रहीं। 2018 में राष्ट्रमंडल खेलों का आयोजन आस्ट्रेलियाई नगर गोल्डकोस्ट में हुआ जहां एक बार फिर भारतीय एथलीट ग्लास्गो खेलों का प्रदर्शन दोहराने में सफल रहे। इस मर्तबा स्वर्ण पदक जेवलिन थ्रो में नीरज चोपड़ा ने हासिल किया। उन्होंने 86.47 मी. तक भाला फेंक कर यह जीत सुनिश्चित की। रजत पदक जीतने वाले आस्ट्रेलियाई खिलाड़ी के मुकाबले उनका थ्रो 3.88 मी. अधिक था। सीमा एंतिल ने डिस्कस थ्रो में अपना चौथा पदक जीता। इस बार भी उन्हें रजत पदक से ही संतुष्ट होना पड़ा। नवजीत ढिल्लो ने इसी स्पर्धा का कांस्य पदक अर्जित किया। इन खेलों में भारत की ओर से 14 पुरुष व 12 महिला एथलीटों ने भाग लिया था। पदक विजेताओं के अलावा मुहम्मद अनास और जिनसन जॉनसन का प्रदर्शन उल्लेखनीय रहा। अनास ने 400 मी में 45.31 से. का नया राष्ट्रीय कीर्तिमान रचते हुए चौथा स्थान पाया वहीं जॉनसन 1500 मी दौड़ में 3 मि 37.86 से. के ने कीर्तिमान के साथ पांचवें स्थान पर रहे।


अब तक सम्पादित 21 राष्ट्रमंडल खेलों में से भारत ने 18 बार शिरकत की है और एथलेटिक्स मुकाबलों में कुल मिलाकर 5 स्वर्ण, 10 रजत और 13 कांस्य पदकों सहित 28 पदक जीते हैं। सीमा एंतिल के नाम चार लगातार राष्ट्रमंडल खेलों में पदक जीतने का अप्रतिम कीर्तिमान अंकित है। उन्होंने तीन रजत और एक कांस्य पदक जीत कर यह सम्मान अर्जित किया है।


राष्ट्रमंडल युवा खेल


राष्ट्रमंडल खेलों की तर्ज पर ही वर्ष 2000 में राष्ट्रमंडल युवा खेलों की नींव रखी गई, जिनमें १७ वर्ष तक की आयु वर्ग के खिलाड़ी भाग ले सकते हैं। पहले खेलों का आयोजन 10 से 14 अगस्त के मध्य एडिनबर्ग, स्काटलैण्ड में किया गया। भारत ने इन खेलों में भाग नहीं लिया। तीसरे खेलों की मेजबानी 2008 में भारत ने की। उस समय ये खेल 14 से 16 अक्टूबर के मध्य पुणे में आयोजित हुए थे।


युवा खेलों में भारतीय एथलीटों का प्रदर्शन उत्साहवर्द्धक रहा है। नीचे तालिका में भारतीय एथलीटों द्वारा जीते गए पदकों का विवरण दिया गया है


तालिका