अन्य अन्तर्राष्ट्रीय स्पद्धाओं में मुकाम तलाशते भारतीय एथलीट

1938 के सिडनी खेलों में भारतीय एथलीटों ने भाग नहीं लिया जबकि 1950 के आकलैण्ड खेलों में भारत ने अपना दल ही नहीं भेजा। 1954 में वेनकुवर से चार एथलीटों का दल भी खाली हाथ वापस आया120 गज तथा 440 गज बाधा दौड़ में क्रमशः सरवन सिंह और जोगिंदर सिंह हीट मुकाबले में ही बाहर हो गए।



पारम्परिक खेलों मसलन ओलिम्पिक, राष्ट्रकुल और एशचाइ तथा विश्व व एशयन चैम्पियनशिप के अतिरिक्त विश्व में अनेक एथलेटिक स्पर्धाएँ आयोजित होती रहती हैं जिनमें भारतीय एथलीट भाग लेते हैं और कुछ में सफलता का ध्वज फहरा कर देश का नाम रोशन करते हैं। नीचे कुछ ऐसी ही स्पद्धाओं में भारतीय एथलीटों के प्रदर्शन की हम चर्चा करेंगे -



एफ्रो-एशियन गेम्स


 2003 में हैदराबाद में पहले एफ्रो एशियन खेलों का आयोजन हुआ था। तब इनको नियमित रूप से आयोजित किए जाने की घोषणा की गई थी लेकिन पहले आयोजन के बाद दोबारा ये खेल आयोजित नहीं हो सके।


पहले खेलों में भारतीय एथलीटों ने 5 स्वर्ण, 6 रजत और 6 कांस्य पदक जीते थे। स्वर्णिम सफलताएं पाने वाले एथलीट थे - शक्ति सिंह (शाटपट), अनिल कुमार (डिस्कस थ्रो), अंजू बॉबी जॉर्ज (लम्बी कूद), नीलम जसवंत सिंह (डिस्कस थ्रो) एवं जेजे शोभा (हेप्टाथलन)।



एशियन मैराथन चैम्पियनशिप


एशियन मैराथन चैम्पियनशिप की शुरूआत 1988 में नगोया, जापान में हुई थे। प्रत्येक दो वर्ष के अंतराल से आयोजित होने वाली इस स्पर्धा में भारतीय धावक भाग लेने उतरते रहे हैं लेकिन उनके नाम छिटपुट कामयाबियाँ ही इस स्पर्धा में दर्ज हैं। 2010 में पुणे में भारत ने भी इस स्पर्धा का आयोजन किया था। अब तक सम्पन्न मैराथन मुकाबलों में भारत के खाते में 2 स्वर्ण, 1 रजत तथा 3 काँस्य पदक आ चुके हैं।



भारत के लिए पहली उल्लेखनीय सफलता 1992 में बाडुंग, इंडोनेशिया में आयोजित मुकाबलों में महिला वर्ग में सुनीता गोदरा ने अर्जित की जब उन्होंने 2घ. 53मि. 12से. में दौड़ पूरी कर स्वर्ण पदक अपने नाम किया था। इसके बाद 1998 में अयुत्थाया, थाइलैण्ड में सम्पन्न स्पर्धा में भारत को महती सफलता मिली। इस स्पर्धा में विजय सिंह ने पुरुष वर्ग में काँस्य तथा दो महिला धाविकाओं - व्ही. सत्यभामा एवं इंदिरेश धीरज ने क्रमशः रजत व काँस्य पदक जीत कर धमाका किया था। तत्पश्चात 2010 में पुणे में घरेलू दर्शकों के बीच दीपचंद काँस्य पदक जीतने में सफल रहे। पुरुष वर्ग में पहली स्वर्णिम सफलता गत स्पर्धा में, जो 2017 में डोंगुआन, चीन में हुई थी, मिली। यह करिश्मा गोपी थोनाकल ने 2घ. 15मि. 48से. में दौड़ पूरी कर किया था।


एशियन पदचालन स्पर्धा


पैदल चलने की एशियन चैम्पियनशिप का श्रीगणेश 2006 में इशिकावा, जापान में हुआ था। इस चैम्पियनशिप में पुरुषों के लिए 20 कि.मी. और 50 कि.मी. तथा महिलाओं के लिए 20 कि.मी. पदचालन की स्पद्धाओं का आयोजन होता है। भारत को अब तक इस स्पर्धा में 1 स्वर्ण, 2 रजत और 4 काँस्य पदक प्राप्त हुए हैं। भारत के लिए एकमात्र स्वर्ण पदक जीतने का सम्मान गुरमीत सिंह को हासिल है। उन्होंने 2016 में 20 कि.मी. स्पर्धा में 1 घ. 20 मि. 29 से. का समय निकाल कर यह सफलता हासिल की थीइससे पूर्व गुरमीत सिंह 2012 में रजत तथा 2013 एवं 2014 में कांस्य पदक जीतने में सफल रहे थे। 2017 में इरफान कोडी ने तीसरा स्थान अर्जित किया था। महिला वर्ग में पहला पदक खुशबीर कौर ने 2014 में जीता। उन्होंने 20 कि.मी. पदचालन में काँस्य पदक प्राप्त किया था। 2018 में रवीना इसी स्पर्धा में रजत पदक जीतने में सफल रहीं। 50 कि.मी. पदचालन में अब तक कोई भी भारतीय एथलीट पदक नहीं जीत सका है।


आई.ए.ए.एफ.डायमंड लीग


आई.ए.ए.एफ. डायमंड लीग की स्थापना 2010 में की गई। इससे पूर्व गोल्डन लीग का आयोजन किया जाता था जिसमें केवल यूरोपीय देशों के एथलीट ही भाग ले सकते थे जबकि डायमंड लीग में समूचे विश्व के एथलीट भाग लेते हैं। इस श्रृंखला के अंतर्गत 14 एक दिवसीय एथलेटिक मुकाबले आयोजित किए जाते हैं। पहली डायमंड लीग श्रृंखला के मुकाबले 14 मई से प्रारंभ होकर 27 अगस्त के बीच सम्पन्न हुए थे। एक स्पर्धा में महिला एवं पुरुष एथलीटों के लिए 16-16 मुकाबले होते हैं तथा प्रत्येक जीतने वाले एथलीट को नगद इनामी राशि दी जाती है सीजन के अंत में हर स्पर्धा में सर्वाधिक अंक पाने वाले आठ खिलाड़ी डायमंड लीग फायनल के लिए क्वालिफाय करते हैं।


विश्व स्तरीय खिलाड़ियों के बीच भारतीय एथलीट डायमंड लीग में अधिक कुछ भले ही न कर पाए हों लेकिन कुछ अवसरों पर उन्होंने अपने प्रदर्शन से सबको चौंकाया जरूर है। नीचे इस लीग में भारतीय एथलीटों के करिश्माई प्रदर्शन का विवरण दिया गया है -


. 2014 में दोहा लीग चरण में विकास गौड़ा ने डिस्कस थ्रो में रजत पदक जीत कर गोल्डन लीग में सफलता पाने वाले पहले भारतीय एथलीट होने का गौरव हासिल किया। उन्होंने 63.23 मी. की दूरी तक चक्का फेंका जबकि विजेता पोलैण्ड के पिओत्र मालाचोवस्की 66.72 मी. तक चक्का फेंकने में सफल रहे। इस वर्ष उन्होंने पाँच लीग मुकाबलों में भाग लिया और समग्र रूप से चौथे स्थान पर रहे।


. 2015 में एक बार फिर विकास गौडा ने शंघाई डायमंड लीग में डिस्कस थ्रो में काँस्य पदक जीत कर सुर्खियाँ बटोरी। इस मर्तबा उन्होंने यह सफलता 63.90 मी. की दूरी तक डिस्कस थ्रो कर पाई थी।


. 2018 में नीरज चोपड़ा जेवलिन थ्रो स्पर्धा में लीग-फायनल मुकाबले में स्थान पाने में सफल रहे, जहाँ उन्हें चौथा स्थान प्राप्त हुआ। दोहा में आयोजित श्रृंखला की पहली लीग स्पर्धा में भी वह 87.43 मी. के साथ चौथे स्थान पर रहे थे। यजीन में उन्हें छठवाँ तथा मोनाको में सातवाँ स्थान मिला था।


विश्व कप/कॉन्टिनेंटल कप स्पर्धा


जैसा कि नाम से विदित है इस स्पर्धा में महाद्वीपों (कॉन्टिनेंट्स) की टीमें भाग लेती हैं। पहले यह स्पर्द्धा एथलेटिक्स विश्व कप कहलाती थी जिसमें अमेरिका एवं यूरोपियन स्पर्द्धा के चैम्पियन देश की टीमों के साथ पाँचों कॉन्टिनेंट्स की संयुक्त टीमें भाग लेती थी। कॉन्टिनेंट की टीमों में उस कॉन्टिनेंट के देशों के शीर्षस्थ एथलीट चुने जाते थे। विश्व कप की शुरूआत 1977 में डुसेलडर्फ, जर्मनी में हुई थी शुरू में हर दो वर्ष में विश्व कप का आयोजन होता था बाद में यह अवधि चार वर्ष कर दी गई। 2010 में विश्व कप का नाम बदल कर कॉन्टिनेंटल कप एथलेटिक्स स्पर्धा कर दिया गया तथा केवल चार कॉन्टिनेंटल टीमों - यूरोप, अमेरिका, अफ्रीका तथा एशिया-पैसीफिक की टीमों को भाग लेने की पात्रता दी गई।


एशिया और एशिया-पैसीफिक टीमों में शुरू से ही अनेक भारतीय एथलीट स्थान पाते रहे हैं लेकिन पहली बार पदक जीतने का सम्मान 2018 में ओस्ट्रावा, चेक रिपब्लिक में ही मिल सका इस स्पर्धा के त्रिकूद मुकाबलों में अपिंदर सिंह ने काँस्य पदक जीत कर यह सम्मान हासिल किया था। एशियाई खेलों के स्वर्ण पदक विजेता इस खिलाड़ी ने अत्यंत कड़ी स्पर्धा में 16.59 मी. की छलांग लगाई और वह कर दिखाया जो कोई भारतीय नहीं कर सका था। उल्लेखनीय है कि इस स्पर्धा के लिए सात भारतीय एथलीट एशिया-पैसीफिक टीम में चुने गए थे। ये एथलीट थे - मोहम्मद अनास, जिन्सन जॉनसना, नीरज चोपड़ा, अपिंदर सिंह, हिमा दास, पीयू चित्रा तथा सुधा सिंह। हिमा दास कुछ कारणों से भाग नहीं ले सकी।


मैराथन में भारतीय उपल्ब्धियाँ


मैराथन न केवल दौड़ने की सबसे लम्बी दूरी की दौड़ स्पर्धा है अपितु एथलेटिक कौशल और दमखम की निराली स्पर्धा है। 1951 में पहले एशियाई खेलों में ही छोटा सिंह ने स्वर्ण पदक जीत कर अंतर्राष्ट्रीय स्पद्धाओं में भारत के लिए पहली सफलता अर्जित की थी। एशियाई चैम्पियनशिप में अब तक भारतीय धावक तीन स्वर्ण, एक रजत और तीन काँस्य पदक जीत चुके हैं। महिला एथलीटों ने भी एशियाई चैम्पियनशिप सहित कुछ अंतर्राष्ट्रीय मुकाबलों में सफलताएँ अपने नाम लिखी हैं। नीचे अंतर्राष्ट्रीय मैराथन मुकाबलों में भारतीय सफलताओं का विवरण दिया जा रहा है -


एशियाई चैम्पियनशिप में भारतीय एथलीट




अंतर्राष्ट्रीय मुकाबले और सफलता


. 1934 में भारत ने वेस्टर्न एशियाटिक खेलों में भाग लेते हुए एथलेटिक्स मुकाबलों में 13 स्वर्ण पदक जीते थे। इन खेलों में भारत, अफगानिस्तान, श्री लंका तथा पेलेस्टाइन ने भाग लिया था। स्वर्णिम सफलता पाने वाले खिलाड़ी थे - आर ए वर्नीक्स (100 मी.), ई एस व्हाइटसाइड (200 मी.), जीपी भल्ला (800 मी.), किशन सिंह (5000 मी.), गुज्जर सिंह (10000 मी.), मो असगर (400 मी. बाधा), अब्दुल शफी (पोलवाल्ट), निरंजन सिंह (लम्बी कूद), आर फ्रांसिस (ऊंची कूद), चांद मेहर (त्रिकूद), ई व्हिटर (डिस्कस व जेवलिन), मोहम्मद इशाक (हैमर थ्रो)।


. 1985 में ओल्मेक, चेकोस्लोवाकिया में आयोजित विश्व रेलवे खेलों में पीटी ऊषा एवं विनोद पोखरियाल ने स्वर्णिम सफलताएँ प्राप्त की। पीटी ऊषा ने इन खेलों में दो स्वर्ण और दो रजत पदक जीते। उन्हें स्पर्धा की सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी भी घोषित किया गया।


. 2007 के विश्व मिलिट्री खेलों में, जो हैदराबाद में आयोजित हुए थे, दो भारतीय एथलीटों ने पहली बार काँस्य पदक जातकर महत्वपूर्ण सफलता पाई थी। ये सफलता चाथोली हमजा को 1500 मी. दौड़ और जीतेंद्र सिंह को 400 मी. बाधा दौड़ में मिली थी। अगले खेलों (रिओ डि'जानीरो, ब्राजील, 2011) में भारतीय 4x400मी. रिले टीम ने एक और काँस्य पदक भारत के नाम लिखो 2015 में मुनगियोंग, दक्षिण कोरिया में आयोजित खेलों में राजीव अरोकिया ने 400 मी. दौड़ में पहली बार रजत पदक जीतने का सम्मान हासिल किया। हाल ही में वुहान, चीन में सम्पन्न खेलों (2019) में भारत को पहली स्वर्णिम सफलता मिली। इस सफलता को दिलाने का श्रेय जेवलिन थ्रो में शिवपाल सिंह ने अर्जित किया। इन्हीं खेलों में दिव्यांग भारतीय एथलीट आनंदन गुणाशेखरन ने 100 मी. एवं 400 मी. दौड़ में स्वर्ण पदक जीत कर इतिहास रचा। पहले विश्व मिलिट्री गेम्स 1995 में रोम, इटली में आयोजित किए गए थे।


हिमा दास का धमाका


2019 में स्प्रिंटर हिमा दास ने यूरोपीय सर्किट में एक के बाद एक लगातार पाँच स्वर्ण पदक जीतने का करिश्मा किया। 2 जुलाई को पोजनान, पोलेण्ड ग्रांडप्रिक्स स्पर्धा में 200 मी. दौड़ का स्वर्ण पदक (23.65 से.) जीतकर उन्होंने इस करिश्मे की शुरूआत की। इसके बाद उन्होंने 7 जुलाई को कुंटो एथलेटिक मीट (23.97 से.), 13 जुलाई को क्लांडो एथलेटिक मीट (23.43 से.) एवं 17 जुलाई को टेबोर एथलेटिक मीट (23.25 से.) में 200 मी. दौड़ में अपनी धाक कायम रखी। 20 जुलाई को नोव मेस्टो में वह 52.09 से. के समय के साथ 400 मी. दौड़ में अव्वल रहीं।