अफीम की भाजी कैसे बनावें

अफीम का उल्लेख बहुधा मादक पदार्थ के रूप में होता है। कहा भी गया है-



अमलतू उणमाढ़ियो, सेणां हन्दा सैण।


तो बिन घड़ियन आवडै, फीका लागे नैण।।


अर्थात्-उन्मत्त कटने वाले अफीम व मित्रों का भी मित्र है। तेरे बिग नयन फीके लगते हैं और एक घड़ी भी तेरे बिना अच्छी नहीं लगती है।


यद्यपि राजस्थान, उत्तर प्रदेश व मध्यप्रदेश अफीम उत्पादन प्रदेश है परन्तु उत्पादन की दृष्टि से म.प्र. का नाम पहली पायदान पर है।


मुगल सम्राटों में बाबर, जहाँगीर, शाहाजहाँ ने इसका दिल खोलकर प्रयोग किया। अमल कसुबा (अफीम घोलकर चाटना) रियाण करना (प्रातः काल अफीम खाना) राजस्थान की लोकप्रिय प्रथाएँ रही हैं। प्राचीन काल से ही सैन्य आशियानो में अफीम सैनिकों को वितरण किया जाता है। उत्तर भारत ही नहीं अपितु दक्षिण भारत के शासक भी अफीम का संग्रह करते थे। सर जदुनाथ सरकार ने शिवाजी महाराज के खजाने में संग्रहित वस्तुओं की लम्बी सूची दी है जिसमें 25 मन अफीम का भी उल्लेख मिलता था।


युद्धों में अफीम के प्रयोग का विवरण 19वीं शताब्दी तक मिलता है। प्रथम स्वातंत्र्य समर के दौरान क्रान्तिकारियों ने मन्दसौर में अफीम के व्यापारियों से रंगदारी बसूल की तो नीमच में क्रान्तिकारी सेना का दमन करने के लिये अंग्रेजों ने निम्बाहेड़ा वे युद्ध में मेवाड़ी सेना को अफीम का वितरण किया। पर, अफीम के इतने उपयोग के बाद भी जन साधारण में अफीम को हिकारत की नजर से ही देखा जाता था


गैले बहता गुड पड्या, ओ लै असली आप।


ले ले करतां लागियो, पेले भव रो पाप।।


अर्थात्- इस दोहे में अफीमची का चित्रण कुछ उस प्रकार किया है- "ये लो अफीमची मार्ग पर चलता-चलता ही लुढ़क कर गिर पड़ा।" नियमित अफीम के सेवन से उसके शरीर में शक्ति न रही। प्रारंभ में मित्रों ने इसे मनुहार कर-कर के अफीम खिलायी। अब पूर्व जन्म का यह पाप रूपी व्यसन इसकी छाती पर चढ़ बैठा है।


अफीम में चाहे अनगिनत बुराइयाँ हो पर इसका पौधा बड़ा उपयोगी होता है। इसका कोई भी भाग कभी भी अनुपयोगी नहीं होता। छोटे-छोटे पौधे (तिजारे) की सीधी सब्जी बनायी जाती है। बड़ी पत्तियों को धूप-छाँह में सुखा लिया जाता है। इन सूखी पत्तियों से ग्रीष्म काल में भाजी का आनन्द लिया जाता है।


अफीम के पौधे पर लगने वाले फल को डोडे कहा जाता है। इस डोडे पर चीरा लगाकर जिस रस को एकत्र किया जाता है वह कच्ची अफीम कहलाती है। डोडा के सूखने पर जो दाने निकलते हैं वह पोसादाना कहलाता है जो सूखे मेवे की तरह प्रयोग किया जाता है। उसका हालुआ पौष्टिक तथा दा दानों को गलाकर ठण्डाई बनायी जाती है। बचे हुए छिलकों को उबालकर मादक पेय बनाया जाता है। बाकी छिलकों को गलाकर सब्जी बनायी जाती है। फसल के अन्त में अपरिपक्व डोडियों की भी सब्जी बनाकर खायी जाती है। सूखे पौधे का डण्ठल की टाटियाँ बनायी जाती हैं ताकि वर्षाकाल में उन्हें पानी से बचने के लिये इस्तेमाल किया जा सके। शीतकाल में इनको जलाकर तापा जाता है। इस पौधे की जड़े दस्त लगने पर पीस कर पी जाती हैं। बेचारे पौधे का कुछ भी भाग नहीं बचता फिर भी यह अगर किसी कप में अवैधानिक तरीके से किसी के पास से मिल जाता है तो आदमी पकड़ा जाता है।


डर तो बहुत है पर घबराइये मत। नवम्बर, दिसम्बर, जनवरी में इसकी पत्ती की सब्जी मिलना प्रारंभ हो जाती है। कोई जमाना था जब सरकार किसानों को 40-50 आटी के पट्टे देती थी तब किसान इसकी सब्जी का ढ़ेर खेत की मेड पर लगा देते और कोई उठाने वाला नहीं मिलता। जैसे-जैसे पट्टे कम आटी के होते गये वैसे-वैसे इसकी भाजी की कीमत बढ़ती गई। इस बार पहली बार 6 आटी के पट्टे भी दिये गये हैं। भविष्यवाणी यह है कि अफीम की भाजी का भाव 60-80 रु. किलो तक रहता है।


भाजी मिले तो रेसेपी पढ़के बना लेना न मिले तो रेसेपी पढ़के ही आनन्द ले लेना। बाजार से भाजी को बड़े प्यार से खरीदकर लाना। इसकों मादकता होती है। रविवार के दिन साफ करके उबालना पानी ठण्डा होवे तो निकालकर फिर ठीक तरह से मसल लेना। प्याज, लहसन का तेज मसाला बनाकर मटर के दाने या लीलवे (हरेचने) के साथ बघारकर सब्जी को धीरे-धीरे चलाना। लगभग 10 मिनट बाद सीझ जाने पर सब्जी को तैयार समझना।


सब्जी खाकर घर में ही रहना। बाजार जाना, वाहन चलाना, घूमना-फिरना आदि का व्रत रखना।