भारतीय भोजन एवं सेहत

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि पौधों पर आधारित प्रोटिन और माँस के संयमित उपभोग पर आधारित हमारा पारंपरिक भोजन प्रोत्साहित करना होगा। भारत मे दलहन आधारित प्रोटीन स्त्रोतों की उपलब्धता, संरक्षण, प्रसंस्करण, आपूर्ति तथा खपत में सुधार पर भी ध्यान केंद्रित करना चाहिये,भारतीय पारंपरिक भोजन दुनिया के सर्वश्रेष्ठ आहार के रूप में उभरा है।



बदलती जीवन शैली के साथ-साथ खान-पान के तौर-तरीके भी बदल रहे हैं, और डिब्बाबंद खाद्य उत्पादों और पेय का उपयोग लगातार बढ़ रहा है। लेकिन एक नये वैश्विक सर्वेक्षण में भारतीय डिब्बा बंद खाद्य उत्पाद और पेय सेहत के लिहाज से सबसे निचले पायदान पर पाए गये हैं।



दुनिया के 12 देशों में चार लाख से अधिक खाद्य एवं पेय उत्पादों का विश्लेषण करने के बाद द जार्ज इंस्टीट्यूट ऑफ ग्लोबल हेल्थ के शोधकर्ता इस नतीजे पर पहुँचे हैं। भारतीय डिब्बाबंद खाद्य एवं पेय उत्पादों में उर्जा का औसत स्तर सबसे अधिक 1515 किलो जूल प्रति ग्राम और दक्षिणी अफ्रीकी खाद्य उत्पादों में सबसे कम 1044 किलोजूल प्रतिग्राम दर्ज किया गया है। इस सर्वेक्षण में ब्रिटेन मे 2.83 सबसे अधिक गुणवत्तापूर्ण और अमेरिका दूसरे नंबर पर 2.82 रेटिंग पर है।


- वैज्ञानिको का कहना है कि खुद को स्वस्थ रखना है, तो आहार के कुछ ऐसे मानक तय करने होंगे, जो अपनी सेहत के साथ पृथ्वी की सेहत के अनुकूल हों, मेडिकल शोध पत्रिका 'लैन्सेट' में प्रकाशित एक वैश्विक अध्ययन में पृथ्वी के अनुकूल एक ऐसे आधार की बात की गई है, जो मानव स्वास्थ्य के साथ-साथ टिकाऊ विकास के लिये भी अच्छा हो।



शोधकताओं के अनुसार वैश्विक स्तर पर यदि उपहार और खाद्य उत्पादन में बदलाव लाया जाय तो वर्ष 2050 से भी आगे के लिये दुनिया के 10 अरब लोगो के लिये पर्याप्त भोजन उपलब्ध हो सकता है। लेन्सेट आयोग द्वारा यह अध्ययन किया गया है, जिसमें 16 देशों के 37 विशेषज्ञ शामिल थे।


इस अध्ययन के अनुसार-स्वास्थ्यप्रद भोजन में सब्जियाँ, फल, साबुत अनाज, दालें, फलियाँ, मेवे, असंतृप्त तेल मुख्य रूप से शामिल होने चाहिये, इसके अलावा भोजन में समुद्री खाद्य पदार्थ, पॉल्ट्री उत्पाद, रेड मीट, प्रसंस्कृत मीट, प्रसंस्कृत चीनी, परिष्कृत अनाज और स्टार्च वाली सब्जियों की कम मात्रा होनी चाहिये।



इस अध्ययन में शामिल एक अन्य एक अन्य शोधकर्ता, सेंटर फॉर सांइस एंड इनवायरमेंट की महानिदेशक सुनिता नारायण ने इंडिया सांइस वायर को बताया कि "सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि पौधों पर आधारित प्रोटिन और माँस के संयमित उपभोग पर आधारित हमारा पारंपरिक भोजन प्रोत्साहित करना होगा। भारत मे दलहन आधारित प्रोटीन स्त्रोतों की उपलब्धता, संरक्षण, प्रसंस्करण, आपूर्ति तथा खपत में सुधार पर भी ध्यान केंद्रित करना चाहिये, भारतीय पारंपरिक भोजन दुनिया के सर्वश्रेष्ठ आहार के रूप में उभरा है।"


प्राचिन काल में तीन प्रकार के आहार बताये गये हैं।


1.सात्विक भोजन (आहार)


सात्विक भोजन वह है जो शरीर को शुद्ध करता है और मन को शांत व स्वस्थ रखता है।


पकाया हुआ भोजन यदि 3-4 घंटे के अंदर सेवन कर लिया जाता है तो इसे सात्विक भोजन माना जाता है।


उदाहरण- ताजे फल, हरी पत्तेदार सब्जियाँ, बादाम, सुखे मेवे अनाज व ताजा दूध। आजकल गाय के दूध को भी जानवर से प्राप्त पदार्थ के रूप में मान्यता मिली है। अतः ऐसे व्यक्ति जो दूध लेते हैं, उन्हें लेक्टो-वेजिटेरियन या दुग्ध- शाकाहारी कहा जाता है।


2.राजसिक- भोजन (आहार)


ये भोजन शरीर और मस्तिष्क को कार्य को कार्य करने के लिये प्रेरित करते हैं। इनका अत्यधिक सेवन शरीर में अतिसक्रियताबैचेनी, क्रोध, चिड़चिड़ापन, अनिद्रा इत्यादी लाते हैं। अति स्वादिष्ट खाद्य पदार्थ राजसिक हैं।


उदाहरण- मसालेदार भोजन, प्याज, लहसुन, चाय, कॉफी और तले हुये खाद्य पदार्थ।


3. तामसिक भोजन (आहार)


तामसिक भोजन वह होते हैं जो शरीर व मन को चुस्त करते हैं इनके अत्यधिक सेवन से शरीर मे जड़ता, भ्रम और भटकाव महसूस होता है।


बासी या पुनः गर्म किया गया भोजन, तेल और कृत्रिम परिक्षकों से युक्त भोजन इस श्रेणी के अंतर्गत आते हैं।


उदाहरण- मांसाहारी आहार, बासी भोजन, वसा का अत्यधिक भोजन और कृत्रिम परिक्षकों से युक्त भोजन इस श्रेणी के अंतर्गत आते हैं।


सिर्फ सही प्रकार का भोजन ही नहीं, बल्कि सही समय पर व उचित मात्रा में भोजन करना भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। अत्यधिक खाने से शरीर में सुस्ती आती है, जबकि कम मात्रा में भोजन करने से शरीर को पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्व नहीं मिलते हैं, अधिकांश समय हम जानते है कि हमारा पेट भरा हुआ है, लेकिन स्वादिष्ट भोजन के कारण हम अपने आपको रोक नहीं पाते। भोजन की सही मात्रा का माप या तोल में निर्धारण नहीं कि जा सकती है, किंतु जब हम अपने शरीर को ध्यान से सुनते है तो हमे अपने भोजन के वक्त कब रूकना है, इसका पता चल जाता है।


हो सकता है कि हम सही मात्रा मे और सही प्रकार से भोजन कर रहे हों, लेकिन अगर समय के साथ अनियमितता है तो शरीर की पूरी प्रणाली को झटका लगता है और शरीर की प्राकृतिक लय बिगड़ जाती है और शरीर की प्राकृतिक लय प्राप्त करने के लिये हमें प्रतिदिन सही समय और नियमित अंतराल पर भोजन करना चाहिये।


भारतीय परंपरा में खानपान का ध्यान विशेष रूप से बनाने वाले के मन का व खाने वाले की मनस्थिति का भी उल्लेख मिलता है, हमारे यहाँ कहावत है कि "जैसा खाओगे अन्न, वैसा होगा मन।"


भोजन बनाने वाले और भोजन खाने वाले की मनस्थिति भी भोजन को प्रभावित करती है। उस भोजन में ऊर्जा जो की किसी गुस्से वाले या दुःखी व्यक्ति के द्वारा बनाया गया हो, निश्चित रूप से प्रेम, संतोष और कृतज्ञता की भावना के साथ बनाये गये भोजन की तुलना में अंतर होगा और वही विचार आपके मन में भी भोजन खाने के पश्चात उत्पन्न होने की संभावना प्रबल हो जायेगी, जो विचार बनाने वाले के मन में थे।


इसी प्रकार एक ही खाद्य पदार्थ हमारे या व्यक्ति विशेष की प्रकृति पर निर्भर करता है एक ही खाद्य पदार्थ किसी के लिये अनुकूल हो सकता है और किसी के लिये हानिकारक हो सकताहै, यह व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है। किस किस्म का भोजन हमारे लिये निरापद है? और किस प्रकार के भोजन से हमें बचना चाहिये, हमें निश्चित रूप से हमारे आहार पर ध्यान देना चाहिये और संतुलित आहार लेना चाहिये।


संतुलित आहार का अर्थ- जो मनुष्य की शारीरिक अवस्था व आवश्यकता के अनुसार सभी पोषक तत्वों को उचित मात्रा में प्रदान करता है। लिंग, जलवायु, कार्य प्रकृति, किशोरावस्था तथा गर्भावस्था आदि विशेष स्थिति और रोग की अवस्था में एक मनुष्य के लिये आवश्यक पोषक तत्व दूसरे मनुष्यों के लिये आवश्यक पोषक तत्वों से मात्रा में भिन्न होते हैं। इस स्वस्थ अवस्था में भिन्न आयु वाले मनुष्य, स्त्रीयों, बालकों, युवा तथा पुरूषों के लिये भोजन दिये जाने वाले पोषक तत्व की अनुमोदित मात्रा ही संतुलित आहार है।


सभी व्यक्तियो को अपने आहार में पर्याप्त मात्रा में सभी तत्वों को लेना चाहिये। क्योंकि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है, परिश्रमी व्यक्ति के लिये 2400 कैलोरी उर्जा की आवश्यकता होती है, जो संतुलित आहार द्वारा ही संभव है।


शरीर में कार्य-शक्ति और गर्मी उत्पन्न करना, शारीरिकमानसिक वृद्धि करना, रोगों से शरीर की रक्षा करना तथा शरीर की जैविक क्रियाओं का समुचित नियमन करना होता है, इससे शरीर का पूर्ण स्फूर्ति से भरा होता है। अपने व अपनों की देखभाल में पौष्टिक तत्वों से भरपूर भोजन का आयोजन करना व उसकी जानकारी अति आवश्यक है।


एक सामान्य व्यक्ति के संतुलित भोजन में 100 ग्राम प्रोटीन 100 ग्राम वसा, 500 ग्राम काबोर्हाईड्रेट्स होना चाहिये।


संतुलित आहार का नमुना निम्नवत प्रस्तुत किया गया है-



उपर्युक्त मात्रा में श्रम, शरीर-आकार, लिंग-भेद, जलवायु तथा ऋतु आदि को ध्यान में रखकर आवश्यक परिवर्तन किये जा सकते हैं, अधिक मानसिक श्रम करने वाले को प्रोटीन युक्त भोजन अधिक मात्रा में लेना चाहिये तथा शारीरिक श्रम करने वालों को काबोर्हाइड्रेट्स अधिक लेना चाहिये। लड़कियों की अपेक्षा लड़कों को अधिक पोष्टिक भोजन की आवश्यकता होती है। बालको को प्रोटीन व वसा की पर्याप्त आवश्यकता होती है। बालको को दूध प्रचुर मात्रा में दिया जाना चाहिये।


प्राचीन पारंपरिक भारतीय भोजन चाहे वह किसी भी राज्य का हो, अनाज, ताजी सब्जीयाँ, फलों, दूध और दूध से बने पदार्थों से बनाया जाता है, ये सभी चीजें सेहत के लिये अच्छी हैं।