हाऊसवाइफ के अवमूल्यन का परिणाम

वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन W.H.0. का कहना है कि सन् 2020 तक विश्व में अवसाद सबसे बड़ी समस्या होगी और अवसाद की जड़ में होंगे मिलावटी हानिकारक खाद्य पदार्थ। हार्ट डिसीज, पैरालिसिस, कैंसर आदि रोगों के कारक भी इन्हीं में पाये जाएंगे।



"रोजा लक्जमबर्ग" ने कहा था - " जिस दिन औरतों के श्रम का हिसाब होगा, इतिहास की सबसे बड़ी धोखाधड़ी पकड़ी जाएगी।"...हजारों वर्षों का यह अवैतनिक श्रम जिसका न कोई क्रेडिट मिला न मूल्य। स्त्री का श्रम कहीं दर्ज नहीं होता।


होममेकर या होम मैंनेजर कह देने भर से हाऊस वाइफ के प्रति समाज का दृष्टिकोण बदल नहीं जाता। बेशक मौजूदा दौर में हल्दी मसाले से सने हाथ पल्लू से पोंछती और बाहरी जगत से अनजान महिला का चित्र भले ही न उभरे पर कोई खास सम्मानजनक नजरिया भी सामने नहीं आता।



खानपान से किचन से हाऊस वाइफ का सीधा संबंध रहा है। उसके श्रम को नगण्य करार देने का परिणाम है कि उसने अपने अस्तित्व को दर्शाने तथा हीनताबोध से मुक्त होने के लिये आर्थिक मोर्चे पर स्वयं को स्थापित करने की भरपूर चेष्टा की है।


देश में 23 प्रतिशत महिलाएँ नौकरियाँ कर रही हैं, जो घर के लिये पर्याप्त समय न दे पाने की वजह से डिब्बाबंद खाने को तरजीह देती हैं। पिज्जा, बर्गर, नूडल्स चाइनीज आदि पर अधिकांशतः निर्भर करती हैं। स्विगी जोमेटो जैसे जिन्न हो गये।



एक विशाल वर्ग महिलाओं का वो भी है जो स्वयं को साबित करने के लिए छोटे- मोटे कुटीर उद्योगों या उपक्रमों में बड़ी राशि का निवेश कर लाभ कमाने का दिखावा करता है। यह वर्ग न ढंग से कमा पाता है न परिवार के खानपान को लेकर गंभीर है।


आर्थिक स्वतंत्रता को स्त्री के वजूद का निर्णायक मानने के कारण वे घर में खाद्य पदार्थ बनाने में समय जाया करने के पक्ष में कम नजर आती हैं। ज्यादातर चीजें जैसे बड़ी, पापड़, सिंवई, वेफर्स, पॉपकॉर्न, सूखी सब्जियां, अचार, मुरब्बे भी बाजार से मंगवाने लगी हैं।


स्त्रियां अब केवल खरीददार की भूमिका निभाना पसंद करती हैं। घी, दही, बटर, सॉस, जैम, जेली, शर्बत सब कुछ खरीदा जा रहा है। लंबे समय तक सुरक्षित रखने के लिये इनमें पर्याप्त मात्रा में प्रिजर्वेटिव डाले जाते हैं। जो स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद तो नहीं हो सकते।


सिंवई से देसीपन की बू आती है। मैगी से नहीं। कहने की जरूरत नहीं कि F.D.A. ने मैगी में सीसा, मोनोसोडियम, ग्लूटामेट की ऊंची मात्रा पाई थी। जो काफी नुकसानदेह थी।


सुबह उठकर नाश्ते में उपमा पोहा परांठे आदि बनाना जैसे कस्बाई मानसिकता का परिचय हो गया। अब ब्रेड बटर, ब्रेड जैम, सैंडविच आदि टेबल पर शोभा पाते हैं। आर्ट ऑफ लिविंग के श्री श्री रविशंकर ब्रेड को स्वास्थ्य के लिए किसी भी रूप में बेहतर नहीं मानते। प्रसंगवश कहना होगा भारतीय पाक शास्त्र इतना समृद्ध है कि कुल जमा 2500 शाकाहारी व्यंजन तैयार किये जा सकते हैं।


किचन के हर काम में पर्याप्त निष्ठा, श्रम और समय देना होता है। आधुनिकाएं बिस्तर से उठते ही सर्वप्रथम फेसबुक और व्हाट्सएप्प देवता के दर्शन करती हैं। उसे लाइक्स और कमेंट्स का भोग लगाती हैं। यही कारण है कि बाजार महाबली हो रहा है। उसने किचन में अतिक्रमण कर हाऊस वाइफ को उपभोक्ता बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। किचन गार्डन का रुझान रखती, बगिया सींचती महिलाएँ कम ही पाई जाती हैं।


जी.एम. फसलों के भयावह नुकसान समझ में आते हैं, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। आनन-फानन में आकार बड़ा करने के लिए लौकी कद् आदि को ऑक्सीटोसिन का इन्जेक्शन लगाया जाता है। आम केले को जल्दी पकाने के क्रम में कैल्शियम कार्बाईड का ज्यादा प्रमाण घातक है। पपीता तरबूज आदि में सैक्रीन इंजेक्ट की जाती है। सब्जियों पर कीटनाशकों का छिड़काव होता है। अदरख एसिड से धोया जाता है। 60 प्रतिशत से ज्यादा दूध मिलावटी है। ऐसे में हाऊस वाइफ की भूमिका बेहद चुनौतीपूर्ण हो जाती है।


फैशन की दीवानी महिलाएँ ताजा नीबू अनन्नस या कोकम के शर्बत की जगह कोल्ड ड्रिंक्स का इस्तेमाल करती हैं। मनुष्य के शरीर में चीनी को 'मेटाबोलाइज' करने यानी ग्रहण करने लायक बनाने की सीमित क्षमता है। एक व्यक्ति को एक दिन में 25 ग्राम यानी 6 चम्मच चीनी लेनी चाहिए। कोका कोला के एक केन में 39 ग्राम चीनी होती है।


संतुलित भोजन में रेशेदार कच्चे खाद्य पदार्थ अत्यावश्यक हैं। वे इम्यूनिटी बढ़ाते हैं। फल, सब्जी, अंकुरित अनाज, शहद, दही, फलों के जूस में विटैमिन्स मल अवस्था में रहते हैं। पकाने से एंजाइम्स नष्ट हो जाते हैं। पत्तागोभी शलजम और अंकुरित अन्न से बनने वाले एंजाइम्स लीवर की रक्षा करते हैं। नीबू का रस, भांति-भांति के सलाद भी सकारात्मक स्वास्थ्य के लिये जरूरी हैं।


वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन W.H.O. का कहना है कि सन् 2020 तक विश्व में अवसाद सबसे बड़ी समस्या होगी और अवसाद की जड़ में होंगे मिलावटी हानिकारक खाद्य पदार्थ। हार्ट डिसीज, पैरालिसिस, कैंसर आदि रोगों के कारक भी इन्हीं में पाये जाएंगे।


कहने की जरूरत नहीं कि तनाव अनिद्रा को जन्म देता है। स्ट्रेस हार्मोन रिसता है। चर्बी जमा होती है। मेटाबोलिज्म ठीक रखने, स्वयं को तनावमुक्त रखने का प्रयत्न होना चाहिए जो कि घर में बने खाने से, मिलावट मुक्त ऑर्गेनिक पदार्थों के सेवन से ही संभव है और घर का खाना पूर्णतः गृहिणी के अवदान पर निर्भर है। अतः हाऊस वाइफ के काम की इज्जत करना प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है। मनोवैज्ञानिक 'होडरलोंग' ने कहा भी है "प्रशंसा का सही उपयोग सबसे प्रभावी तरीका हो सकता है किसी की रचनात्मकता बढ़ाने का।"