मांसाहार नहीं यह नाशाहार है

यक्ष ने युधिष्ठिर से पूछा था "कि अमृत?' धर्मराज का उत्तर था “गवाडमृत।," (याने गाय का दुग्ध ही अमृत है) गाय के दूध से अधिक गुणकारी दूसरे किसी प्राणी का दूध नहीं होता। (गाय का भक्षण करने वाले भी इसीलिए अपने नवजात शिशुओं की रक्षार्थ उन्हें गो दुग्ध ही पिलाते हैं।) इसलिए ‘मातरः सर्व भताना गायः सर्व सुख प्रदा' कहा गया है। माता एक-दो साल तक ही दूध पिलाती है, पर चावल, तेल,भूसा निकाल कर आदमी छिलका, भूसी खली, भूसा आदि जो बेकार की चीजें फेंक देता है


गगत कुछ माह से देश में मांसाहार l विशेष चर्चा में रहा हैतथाकथित धर्मनिरपेक्षों, साम्यवादियों तथा अल्पसंख्य नेताओं व मजहबी लोगों ने तो मांसाहार का पक्ष लिया ही, कुछ तथाकथित बुद्धिवादियों (वास्तव में बादीबुद्धियों) ने स्वयं को प्रगतिशील और विचारक की श्रेणी में गिने जाने के लालच में सोशलमीडिया में भी पोस्ट किया कि वे मांस खाते हैं। और तो और 'दैनिक हिन्दुस्तान' जैसा अखबार समय-समय पर संपादकीय में मांसाहार को महिमामडित करता रहता है। (भले ही यह कार्य यह अपनी टी.आर.पी. बढ़ाकर अपनी बिक्री बढ़ाने के लिए दिल से न करके दिमाग से कर रहा हो) आहार 2 प्रकार का होता है-एक शाकाहार अर्थात् निरामिष, जिसे 'खाना' कहते हैं। जहाँ भोजन विविध पकवानों (पक्व+अन्नों) तथा व्यंजनों की वैष्णवी सुगंध से संपृक्त होता है, वहीं खाना मांस की दुर्गन्ध से युक्त होता है। हिन्दुओं के प्रातःकालीन अल्पाहार (नाश्ता) को भी कलेवा या 'बाल भोग' कहा जाता है। बाल भोग तेजस, ओजस औस वर्चस की वृद्धि करता है, जबकि नाश्ता शरीर का नाश तो करता है ही, विवेक को भी खा जाता है, क्योंकि इसमें अधिकतर अभक्ष्य चीजें होती है। प्रसंग वश यहाँ मुझे डॉ. पुष्पेशपंत याद आ रहे हैं। अगस्त, 2015 में बी.बी.सी. ने उन्हें प्याज की मंहगाई पर वार्ता हेतु आमंत्रित कर उनसे पूछा था कि 'भारत के सामान्य भोजन का आइटम प्याज इतना मंहगा क्यों है?' इस पर डॉ. पंत का कथन था, प्याज भारत के सामान्य भोजन में कभी नहीं रहा। यहाँ शाकाहारी और वैष्णव स्वभावी लोगों ने इसे कभी पसंद नहीं किया। प्याज को एक वर्ग विशेष ने साजिश करके आम खाना में शामिल कर दिया (हालांकि बी.बी.सी. के प्रतिनिधि प्रश्नकर्ता, रेहान फजल को डॉ. पंत से ऐसे उत्तर की अपेक्षा नहीं थी)


यदि अल्ट्राहैल्थ याने संपूर्ण और आत्यंतिक स्वास्थ्य की दृष्टि से सोचे, तो मांसाहार किसी भी प्रकार से आहार न होकर सब प्रकार से नाशाहार है। यह भगवान द्वारा जारी किया गया टाइम बाउंड डेथ वारंट है। जो मांसाहारी समय रहते नहीं चेतता, सीमित समय के बाद महाकाल का कोतवाल उसे बाँधकर यमलोग ले ही जाता है। कैंसर टीबी, दमा हैजा, बदहजमी, मोटापा, त्वचारोग मंदबुद्धिता आदि अनेक बीमारियों की जड़ मांसाहार ही रहा है। बर्डफ्लू तथा एनीमल फ्लू की महामारी से सैकड़ों की एक साथ मरने की खबरे अक्सर छपती रहती है। हिन्दू (विशेषत वैष्णव, सिख, जैन, जय गुरुदेवी एवं गायत्री परिजन) मांसाहार का विरोध यूँ ही थोड़ा करते रहते हैं। इसके पीछे उनकी दूरदृष्टि संपन्न विज्ञान सम्मत स्वस्थ विचारधारा है। समय-समय पर मांसाहार पर होने वाले डॉक्टरों व वैज्ञानिकों के अधिवेशनों से यही निष्कर्ष निकलकर आते रहे हैं, कि मांस मानव का आहार नहीं है। आदमी इसे आसानी से नहीं पचा सकता। यह इसे खाएगा तो उसे अनेक बीमारियों हो सकती है। (जैसा ऊपर कहा जा चुका है।) आदमी को छोड़िए हाथी, घोड़ा, बैल, भैस, गाय, बकरी, भेड जैसे सीधे पशु भी मांस नहीं खाते। मांस शेर, चीता, भेड़िया आदि हिंसक पशुओं का आहार है। भारत में हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही मांस खाते हैं, पर जहाँ हिन्दू 30-40 प्रतिशत ही मांसाहारी हैं वहाँ मुस्लिम में 99 प्रतिशत लोग मांस खाते है।


भारत में मांसाहार से जुड़ी एक चिंता व निंदा की बात यह भी है कि यहाँ गाय का मांस (बीफ) अल्पसंख्य संप्रदाय के मांसाहार का पर्याय बन चुका है। अस्तु गाय के परिप्रेक्ष्य में यहाँ मांसाहार की कुछ चर्चा कर ली जाये, तो अनुचित न होगा। गाय महज एक पशु नहीं है। हिन्दु धर्मशास्त्रों के अनुसार गाय के शरीर में सभी देवताओं का निवास होता है। यदि किसी को 33 करोड़ देवताओं की पूजा कर ले। हिन्दुओं के सबसे बड़े होली और दिवाली, दोनों त्योहारों में हर हिन्दु के घर को गाय के गोबर से लीप कर पूजा की जाती है। (महनगरों में गाय का गोबर न मिले, यह अलग बात है।) लक्ष्मी का निवास गाय के गोबर में ही है। होलिकाग्नि से गाय के गोबर से बने बल्लों को प्रचण्ड करके गृह में नवाग्नि को प्रविष्ट किया जाता है तथा दीपावली के दूसरे दिन 'गोवर्धन' (गो के वर्धन) का त्योहार ही मनाया जाता है। इसमें गृहणियाँ गोमय से ही सीकों, रूई, आटा और चूना के सहयोग से गोवर्धन पर्वत, श्रीकृष्ण, गोप-गोपी तथा गोधन के चित्र बनाती है। गोदुग्ध को द्वितीय अमृत कहा जाता है। यक्ष ने युधिष्ठिर से पूछा था “कि अमृत?" धर्मराज का उत्तर था “गवाडमृत।" (याने गाय का दुग्ध ही अमृत है) गाय के दूध से अधिक गुणकारी दूसरे किसी प्राणी का दूध नहीं होता। (गाय का भक्षण करने वाले भी इसीलिए अपने नवजात शिशुओं की रक्षार्थ उन्हें गो दुग्ध ही पिलाते हैं।) इसलिए 'मातरः सर्व भूताना गायः सर्व सुख प्रदा' कहा गया है। माता एक-दो साल तक ही दूध पिलाती है, पर गोमाता जीवन भर अपना दूध पिलाती है। धान, तिलहन, गेहूँ के पौधे आदि से चावल, तेल, भूसा निकाल कर आदमी छिलका, भूसी खली, भूसा आदि जो बेकार की चीजें फेंक देता है, उन्हें तथा सुखी-हरी घास खाकर गोमाता मानव जाति को आजीवन अमृत पिलाती रहती है। गाय के पंचगव्य से 108 रोगों का सफल इलाज किया जाता है। पूज्या होने के कारण कृष्ण ने भगवान होकर गाये चरायी थी। भगवान राम के पूर्वज दिलीप ने भी गो पालन-गो चारण किया था। गाय की इतनी उपयोगिता के कारण सभी धर्म-संप्रदायों ने इसकी महिमा गायी है। सिखपंथ में कहा गया है, 'यही देव आज्ञा, तुर्क गाहे खपाऊँगउघाट का दोष जय सिख मिटाऊँ।।' कुरान के पारा-14 में लिखा है, 'अकरमुल बकर फाइनाहा सैयदूल बहाइसों।' (गाय का सम्मान करो। वह चौपायों की सम्राट है।) याद आ रहा है। 1982 में जब भारत में एशियाड खेल चल रहे थे, उस समय दुनिया का सबसे बड़ा गोमांस निर्यातक, भारत खिलाड़ियों को खिलाने के विदेशों से गोमांस मंगाता था। विनोवा भावे जी उस समय गोरक्षा को लेकर आमरण अनशन पर थे। मरणासन्न विनोवा को बचाने के लिए प्रधानमंत्री, इंदिरा गाँधी ने उन्हें दवा खिलानी चाही, पर उनने इंदिरा के द्वारा गोवध बंद न किए जाने की बात से आहत होकर दवा नहीं ली और गोमाता के लिए प्राण दे दिए। गाय अनेकानेक प्रकार से पूर्व ध्यान रखना चाहिए कि गाय की गणना मुर्गा-मुर्गी, बकरा-बकरी आदि के साथ नहीं की जा सकती। गाय की नहीं, किसी भी पशु-पक्षी का मांस नहीं खाना चाहिए। राम, कृष्ण, गौतम बुद्ध, महावीर, दयानन्द, बिरजानन्द, श्रृद्धानन्द, तिरूवल्लुवर, ज्ञानेश्वर, तुकाराम, नानक, तुलसी, कबीर, सूर, मीरा, महात्मा गाँधी (प्रारम्भिक चर्चा को छोड़कर) सरदार पटेल लाल बहादुर शास्त्री, अब्दुल कलाम, अरस्तु प्लेटो, सुकरात, लियोनादों दाविंची, पाइथागोरस, शेक्सपियर, वर्डसवर्थ, टीलस्टॉय, वरनार्ड शॉ, न्यूटन बैजामिन फ्रैंकलिन, डार्विन, चर्चिन, आइस्टीन इत्यादि अनेकानेक महापुरुष शाकाहारी रहे हैं। जो लोग मुर्गा, बकरा आदि को 'फालतू' कहकर इन्हें खाने की वकालत करते हैं वे अपने बच्चों को क्यों नहीं खा जाते? (कहते हैं इंसानी बच्चों का मांसा भी स्वादिष्ट होता है। ताइबानी लोग भ्रूणों का अचार बनाकर खाया करते हैं।) आज की बेशुमार बढ़ रही आबादी के जमाने में बहुतों की बहुत सी औलाद बेकार और फालतू घूम रही है। ये लोग सुअर क्यों नहीं खाते? वह कौन सा हल में जुतेगा? जहाँ तक सुअर के मैला खाने के बहाने की बात है, तो मछली और मुर्गी कौन सी पंडिताइन है? ये भी तो गंदगी ही खाती है। असलियत यह है, भारत का मुसलमान गाय को स्वाद के लिए कम हिन्दुओं को चिढ़ाने, उनकी भावनाओं को आहत करने तथा उन्हें उन्हीं के घर में अपमानित करने के लिए अधिक खाता है। वरना खाने के लिए कितने जानवर है। हिन्दुओं की विडम्बना की तब पराकाष्ठा हो जाती है, जब मुस्लिम विधायक और छात्र होटल और कालेज में गोमांस पार्टी का उत्सव मनाते हैं तथा हाफिज सईद जैसा अलगाववादी बकरीद पर कश्मीर के लालचौक पर सार्वजनिक रूप से गाय काटने की घोषण करता है। जम्मू-कश्मीर की सरकार ने बकरीद के समय 3 दिनों तक इंटरनेट के प्रयोग पर इसलिए प्रतिबंध रखा, ताकि हाफिज सईद की शैतानी को देखकर देश में बवाल न फैले। इसके बावजूद भारत के कोई भी धर्मनिरपेक्ष, साम्यवादी और मुस्लिम वोटों की खातिर कुछ मुख्यमंत्री तथा स्वयं को उदारमना व बुद्धिवादी सिद्ध करने के लिए कुछ विचारक यह फतवा जारी करते हैं कि 'कुछ भी खाना निजी स्वतंत्रता का अधिकार है।' कुछ भी खाने की आजादी किसी को तभी दी जा सकती है, जब तक इससे सामाजिक सदभाव को ठेस न लगे। यदि समाज के लोगों को आपित्त है, तो 'कुछ भी खाने' की स्वतंत्रता नहीं दी जा सकती। आज नहीं तो कल यह होना ही है। 'कुछ भी खाने की आजादी' पर यथाशीघ्र राष्ट्रीय बहस होनी चाहिए।


देश का दुर्भाग्य है कि यहाँ के नेता गोमाता के प्राणों की कीमत पर राजनीति करते हैं। यह राजनीति 28 सितम्बर, 2015 को घटित दादरी कांड के बाद से और भी अधिक तेज हुई जब उ.प्र. के मुख्यमंत्री, अखिलेश यादव ने गाय खाने वाले अखलाक के परिवार को विशेष विमान से लखनऊ बुलाया और उसे 45 लाख रू. तथा शहर में 4 प्लाट देने की घोषणा की, जबकि इससे पूर्व गोमाता की रक्षा में गोली खाने वाले जाबांज दारोगा, मनोज मिश्रा को उन्हीं मुख्यमंत्री ने मात्र 5 लाख रू. देने की घोषणा की थी। (अखिलेश और अखलाक के नामों में समानता का कैसा विचित्र संयोग है।) (जनता के धन को अन्याय पूर्वक लुटाने वाली घोषणाएँ भी अब अधिक दिनों तक चलने वाली नहीं है।)


सम्पूर्ण, समग्र और आत्यंतिक स्वास्थ्य के लिए गो-दुग्ध परमावश्यक एवं परमोपयोगी है। सो, गोवध के बजाय गोवृद्धि गोवर्धन की आवश्यकता है। गो खाना बंद कर 'डाक खाना' 'शिफा खाना' 'मुसाफिर खाना' की तर्ज पर 'गोखाना' (गोशाला) बनायें। यह कार्य मुस्लिम बंधु करें, तो स्वास्थ्य के साथ साम्प्रदायिक सद्भाव और राष्ट्रीय एकता में भी समृद्धि होगी। अच्छे स्वास्थ्य के लिए सभी प्रकार का मांस भक्षण बंद कर देना चाहिए, क्योंकि मांसाहार स्वास्थ्य के लिए नाशाहार से कम नहीं है।