प्राचीन एवं पुष्टिवर्धक है: राजस्थानी करंभ (राबड़ी)

इतिहास में वर्णित है कि सिन्धु घाटी के निवासी खाने-पीने के शौकीन थे। सम्भवतः वे शाकाहरी एवं मांसाहारी दोनों थे। पुरातत्व प्रमाणों के आधार पर उल्लेख मिलता है कि गेंहू, जौ, खजूर, तरबूज, मटर, राई, सरसों, तिल, चावल, रागी, ज्वार एवं बाजरा खाद्यान्न के रूप में उपयोग में लाया जाता था। हड़प्पा से प्राप्त साक्ष्य से ज्ञात होता है कि अनाज की कुटाई, पिसाई कर उनका उपभोग किया जाता था।



वैदिक संस्कृति में भोजन में दूध, दही, घृत का विशेष महत्त्व था। दूध में यव (जौ) डालकर क्षीरपकौदन तैयार किया जाता था। जौ के सत्तू को दही/छाछ में डालकर 'करंभ' नामक भोज्य पदार्थ (पेय) तैयार किया जाता था। ये एक अमृत माना जाता था जो स्वास्थ्यवर्धक होने के साथ सुलभ भी था।


बाजरे का मूल स्थान अफ्रीका को माना जाता है परन्तु भारतीय उपमहाद्वीप में प्रागैतिहासिक काल से यह खाद्यान्न के रूप में उपयोग में रहा है। यह राजस्थान का मुख्य खाद्यान्न है, भोजन में इसका सेवन बलवर्धक एवं पुष्टिकारक माना गया है। इसकी उपयोगिता के सम्बन्ध में एक लोकोक्ति बड़ी प्रसिद्ध है, दृश्बलिहारी तू बाजरा तेरे लम्बे पान, घोड़े के पर लग गये, बूढ़े भए जवान'। राबड़ी राजस्थान का प्रमुख पेय खाद्यान्न है जो लोकप्रिय होने के साथ सुलभ एवं सस्ता भी है। ये पेय खाद्यान्न प. राजस्थान के क्षेत्रों (जोधपुर, जैसलमेर, बाड़मेर, बीकानेर, चुरू, सीकर नागौर) के लिए जहां ग्रीष्मकालीन तापमान 50 डिग्री तक पहुँच जाता है, वहां ये पेय खाद्यान्न अमृत तुल्य है। शीत ऋतू में इस पेय खाद्यान्न को गरम-गरम उपभोग मे लिया जाता है। ग्रीष्म ऋतू में ठण्डी राबड़ी में छाछ या दही में जीरा, पोदीना मिला कर लू से बचा जा सकता है। राजस्थान में राबड़ी के विभिन्न प्रकार एवं बनाने की भी विभिन्नताएं है जो उसके स्वाद को बेहतरीन बना देती है। राबड़ी बनाने के लिए विशेष कौशल एवं दक्षता की आवश्यकता है। ग्राम रियांबड़ी (जिला नागौर) निवासी श्रीमती कान्ता देवी एवं श्रीमती भगवती देवी से प्राप्त जानकारी के अनुसार-राजस्थानी राबड़ी के विभिन्न प्रकार-


डूआ राबड़ी- इस पेय खाद्यान्न को बनाने के लिए बाजरे के आटे के साथ मोठ (राजस्थान का दलहन) का आटा लगभग 3:4 के माप में मिलाया जाता है उसे मिश्रित पाउडर को छाछ में मिलाकर मिट्टी की हांडी में कुछ मिनिट फेंटा जाता है आवश्कतानुसार पानी मिला कर तैयार घोल को धूप में खमीर उठने के लिए रख दिया जाता है। खमीर आ जाने पर राब का पानी महीन मलमल के कपड़े से छान लिया जाता है और नीचे जमा आटा पृथक कर छने पानी को धीमी आंच पर पकाया जाता है। स्वादानुसार नमक मिला शेष रखे आटे को उबले खमीर युक्त पानी में मिलाया जाता है। इस मिश्रण को उबाल आने तक चाटू या चम्मच की सहायता से लगातार हिलाते रहना पड़ता है ताकि मिश्रण में एकरसता बनी रहे। पकने पर अपने पसंद एवं मौसम के अनुसार इस पेय खाद्यान्न का लुफ्त लिया जा सकता है।


कुटी राबड़ी- इस खाद्यान्न के लिए बाजरे को 4-5 घंटे पानी में भिगोया जाता है, पानी निथार कर बाजरे को ओखली में मूसल से कुटा जाता है हल्के दाब से कूटने से बाजरे की भूसी पृथक हो जाती है और बाजरे की रंगत में निखार आ जाता है। जब बाजरा आधा कूट जाता तब उस में छाछ मिश्रित कर मिट्टी की हांडी में मध्यम आंच पर पकाया जाता है स्वादानुसार नमक मिलाया जा सकता है। ये पेय खाद्यान्न शीत एवं ग्रीष्म ऋतू दोनों में उपयोगी है।


बाजरे के आटे में घृत (घी) एवं गुड़ मिलाकर विशेष व्यंजन 'कुलेर' भी बनाया जाता है। राजस्थान के लोक देवता गोगाजी महाराज को कुलेर नैवेद्य के रूप में अर्पित किया जाता है।


बाजरे के दलिए को घी के साथ धीमी आंच पर हल्का भूरा होने तक भून कर उसमें गुड़ का पानी बनाकर छान कर आवश्यकता एवं माप के अनुसार पानी मिलाया जाता है। पकने पर इलायची एवं सूखे मेवे मिश्रित किये जाते हैं।


ये खाद्यान्न शरीर के विजातीय एवं विषैले तत्वों को निकाल कर रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में सहायक है। बाजरा पोटेशियम एवं मैग्नीशियम का अच्छा स्रोत माना गया है जो ब्लडप्रेशर को नियन्त्रण में रखने में मददगार है। बाजरे में फाइबर की पर्याप्त मात्रा होने से यह आँतों का रक्षक भी है। आप भी इस शीत ऋतु में इस राजस्थानी व्यंजन का अपने स्वादानुसार लुफ्त उठाएँ।