राइटिंगथैरेपी- अभिव्यक्ति ही नहीं उपचार का भी सशक्त साधन है लेखन

कई व्यक्ति रात को सोने से पूर्व जरूरी पत्रादि लिखते हैं और कुछ डायरी इत्यादि लिखते हैं। डायरी लिखने का अर्थ है दिनभर की या पिछली घटनाओं का चिंतन और विश्लेषण प्रस्तुत करना। तकनीकी भाषा में इसे रेट्रोस्पेक्शन कह सकते हैं। यह मौखिक हो या लिखित इसमें ध्यान के तत्त्व समाहित होते हैं। ध्यान व्यक्ति को आराम देता है, उसे स्वस्थ करता है, तनाव को कम करता है। सारे दिन के काम के बाद यदि नींद आने में बाधा आ रही हो तो सोने से पूर्व इस विधि अर्थात् रेट्रोस्पेक्शन से उपचार किया जा सकता है



जिस प्रकार गायन-वादन, नृत्य-अभिनय, चित्रकला, मूर्तिकला तथा अन्य ललित कलाओं और लोक कलाओं के अभ्यास से एकाग्रता का विकास होता है उसी तरह लेखन से भी एकाग्रता तथा ध्यान के लाभ प्राप्त किये जा सकते हैं। काव्य का स्थान तो ललित कलाओं में है ही अतः गद्य अथवा अन्य प्रकार के लेखन को भी कला मानने में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। इस प्रकार कला की दृष्टि से लेखन एक उपचार पद्धति या थैरेपी से कम नहीं है। इसे हम राइटिंगथैरेपी के अंतर्गत रख सकते हैं।


लेखन क्या है।


लेखन से तात्पर्य मौलिक सृजन से है। लेखन दरअसल हमारे मन में समाए हुए विचारों की लिखित अभिव्यक्ति ही तो है। हमारे मन में अनेक प्रकार के विचार समाए होते हैं। कुछ विचार अच्छे तो कुछ बुरे। कुछ सकारात्मक तो कुछ नकारात्मक। कभी हम आशावादी होते हैं तो कभी निराशावादी। इन परस्पर विरोधी विचारों में संघर्ष चलता रहता है और ये घनीभूत होकर मन पर बोझ बन जाते हैं। यदि इस बोझ को हल्का नहीं करेंगे तो विभिन्न प्रकार के तनावों का शिकार हो जाएँगे। लेखन के माध्यम से मन में बोझ बने विचारों को प्रकट कर हम मुक्त हो जाते हैं। लेखन अभिव्यक्ति के माध्यम के साथ- साथ तनाव मुक्ति का साधन भी है।


लेखन एक उपचार पद्धति कैसे है।


लेखन क्योंकि तनावमुक्ति का माध्यम है अतः यह रोगों से भी रक्षा करता है। जब हम लंबे समय तक तनावग्रस्त रहते हैं तो उससे अनेक साइकोसोमेटिक बीमारियों से ग्रस्त हो जाते हैं। तनावमुक्त रहकर हम इन मनोदैहिक व्याधियों से मुक्ति पा लेते हैं। लेखन स्वयं में एक उपचार पद्धति है। लेखन के दौरान हम अत्यंत शांत-स्थिर अवस्था में हाते हैं जो एक प्रकार से ध्यान की अवस्था ही है। ऐसी अवस्था में हमें ध्यान अथवा मेडिटेशन के लाभ स्वतः ही प्राप्त हो जाते हैं और ध्यान अथवा मेडिटेशन तो स्वयं एक उपचार पद्धति अथवा तकनीक है।


क्या लेखन को नियंत्रित करके उपचार में मदद ली जा सकती है।


जैसे मलिन जल के स्थिर हो जाने पर जल धीरे-धीरे स्वच्छ हो जाता है उसी प्रकार शांत स्थिर चित्त भी धीरे-धीरे प्रसन्न हो जाता है और यहाँ मनुष्य अपने मूल स्वरूप में लौट आता है। मनुष्य का मूल स्वरूप या स्वभाव है आनंद। यहाँ यदि हमें लगता है कि हमारे मन में विकारों का संग्रह हो गया है तो लेखन द्वारा न केवल उन्हें बाहर निकाला जा सकता है अपितु सकारात्मक लेखन द्वारा विकारों को संस्कारों में परिवर्तित किया जा सकता है। कैसे। समस्याओं या विकारों का उपचार क्या है। विकारों का रूपांतरण करके हम न केवल सकारात्मक लेखन करते हैं अपितु इन सकारात्मक विचारों या सुझावों की संस्कार के रूप में हमारे मन में कंडीशनिंग भी हो जाती है जो हमारे रूपांतरण और उन्नति का सबसे अच्छा मार्ग और उपाय है। यहाँ लेखन द्वारा सकारात्मक विचारों की रीकंडीशनिंग की जा सकती है।


क्या लेखन द्वारा दूसरों के उपचार में मदद ली जा सकती है।


किसी व्यक्ति की दमित भावनाओं अथवा उसके मन में दबे हुए विचारों को अच्छी प्रकार समझने के लिए लेखन की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। कोई रोगी या दुखी व्यक्ति जब अपने मनोभावों को कागज पर उतारता है तो कुछ तो इस प्रयास में ही वह मुक्त अनुभव करता है और उसके मनोभावों का विश्लेषण कर चिकित्सक या मनोचिकित्सक भी उसे उचित परामर्श दे सकता है। जो व्यक्ति अपने मनोभावों को व्यक्त नहीं कर सकता या करना नहीं जानता वह सबसे बड़ा रोगी है और उसका निदान (डायग्नोसिस) और उपचार (ट्रीटमेंट) दोनों ही मुश्किल हैं।


मनोभावों की अभिव्यक्ति तो मौखिक रूप से भी की जा सकती है फिर. लिखित अभिव्यक्ति पर ही जोर क्यों ।


लेखन मौखिक अभिव्यक्ति से अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि लिखने में व्यक्ति को पर्याप्त चिंतन का समय मिलता है। इस  समय व्यक्ति सेल्फ-रियलाइजेशन का प्रयास करता है और इससे अच्छी तो कोई उपचार पद्धति हो ही नहीं सकती। आत्मनिरीक्षण या आत्मावलोकन के उपरांत व्यक्ति स्वयं को बिल्कुल यथार्थ स्थिति में प्रस्तुत करता है अतः निदान और उपचार दोनों सरलता से किये जा सकते हैं।


क्या हर व्यक्ति एक लेखक की तरह स्वय का सही-सही अभिव्यक्त कर सकता है ।


हर व्यक्ति एक अच्छा लेखक नहीं हो सकता लेकिन प्रयास करने पर और पर्याप्त अभ्यास के बाद हर व्यक्ति स्वयं को व्यक्त करने में सक्षम हो जाता है। कई बार जीवन में ऐसी घटनाएं हो जाती हैं जिन्हें हम दूसरों को बता नहीं पाते। स्थान और पात्र बदल कर यदि हम उस घटना को लेखन यथा कहानी, लघुकथा आदि का रूप दे दें तो निश्चित रूप से उस घटना के दुष्प्रभाव से मुक्त हो जाते हैं।


लेखन के किन-किन रूपों या विद्याओं से उपचार में मदद मिलती है ।


उपन्यास, कहानी, नाटक, एकांकी, संस्मरण, रेखाचित्र (शब्दचित्र या व्यक्तिचित्र), जीवनी, आत्मकथा, लघुकथा अथवा अन्य कोई भी विधा क्यों न हो यदि प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से आप लेखन से जुड़े हैं तो हर प्रकार का लेखन आपको उपचार के लाभ देगा ही। मौलिक लेखन के अलावा पुस्तक का नाट्यांतरण हो अथवा लिप्यंतरण या भाषांतरण हो कार्य के साथ-साथ आपका उपचार करने में भी सक्षम हैं। इससे न केवल लिखने वाले की एकाग्रता का विकास होता है अपितु सर्जनात्मकता का आनंद भी मिलता है। इससे आपके तनाव और चिंता के स्तर में कमी आती है जिससे आपकी रोगावरोधक क्षमता विकसित होकर आपको स्वस्थ बनाए रखने में सहायक होती है।


कई व्यक्ति रात को सोने से पूर्व जरूरी पत्रादि लिखते हैं और कुछ डायरी इत्यादि लिखते हैं। डायरी लिखने का अर्थ है दिनभर की या पिछली घटनाओं का चिंतन और विश्लेषण प्रस्तुत करना। तकनीकी भाषा में इसे रेट्रोस्पेक्शन कह सकते हैं। यह मौखिक हो या लिखित इसमें ध्यान के तत्त्व समाहित होते हैं। ध्यान व्यक्ति को आराम देता है, उसे स्वस्थ करता है, तनाव को कम करता है। सारे दिन के काम के बाद यदि नींद आने में बाधा आ रही हो तो सोने से पूर्व इस विधि अर्थात् रेट्रोस्पेक्शन से उपचार किया जा सकता है। ये सब लेखन के ही विविध रूप हैं। इन विभिन्न विधियों द्वारा स्वयं को तनावमुक्त कर उत्तम स्वास्थ्य और दीघार्यु प्राप्त करना अत्यंत सहज व सरल है।