स्वादिष्ट भोजन और महिलाओं की भूमिका

भारत अपने अन्दर अनेक विविधताएं समेंटे हुए है। अलग-अलग क्षेत्रों, राज्यों के लोगों के रहन-सहन, बोलचाल, वेषभूषा के साथ-साथ खान-पान व्यवस्था भी बहुरंगी है। सभी क्षेत्रों के भोजन में कुछ न कुछ खास है जो अलग अनूठा स्वाद रखता है। त्योहारों व अन्य विशेष अवसरों पर यह खास व्यंजन सभी को लुभाते है। बच्चे, बड़े सभी उन अवसरों का इंतजार करते हैं जिनमें उनके मनपसंद व्यंजनों का स्वाद उन्हें चखने को मिलता है। पूरी शुद्धता के साथ घर में निर्मित मसालों से बने भोजन की बात ही अलग हैहर व्यक्ति को सबसे ज्यादा सुरक्षा और अपनेपन का एहसास अपने घर से ही होता है। घर ही एक ऐसी जगह है जहां व्यक्ति दिन भर की भागदौड़ व थकान के बाद सुकून के पल पाता है, साथ ही घर का बना शुद्ध व स्वादिष्ट भोजन तन को मजबूती व मन को प्रसन्नता से भर देता है। अपने घर के भोजन का स्वाद हर किसी को अच्छा लगता है क्योंकि घर के बने भोजन में प्यार, स्नेह और ममत्व की संवेदना घुली-मिली होती हैं। महिलाएं भोजन बनाने में अपनी आंतरिक भावना और अपनों के प्रति संवेदना तो उड़ेलती ही हैं साथ ही घर के लोगों को क्या अच्छा लगता है इसके लिए भी हमेशा सजग रहती हैं।



आज के बदलते समय में दादी मां के हाथ के बनाएं जाने वाले पकवान और व्यंजन भले ही हमारी रसोई से उठ कर पांच सितारा होटल की शान बन गये हों या बाजार में सज-धज के साथ विशिष्ट रेसिपी के नाम से प्रसिद्धी पा गये हों पर वह बात कहां?


आजकल पर स-मक्के की सजधज की चकाचौंध में व्यंजनों की कीमत में तो उछाल अवश्य आया है पर स्वाद का पारा तो नीचे ही गिरा है। आजकल पुराने व्यंजन जैसे-मक्के की रोटी, सरसों दा साग या लिट्टी चोखा या फिर चिल्ला, जिसे मूंग के चिल्ले के नाम तरासा जा रहा है और तो और गन्ने के रस में पकाया जाने वाला भात भी 'रसराज' के नाम मार्डन डिस बन चुका है। यही नहीं विदेशों के सात सितारा होटलों में काम करने वाले बड़े-बड़े सैफ भी दादी मां के पुराने पकवानों का नवीनीकरण करके नई रेसिपी बताकर लाभान्वित हो रहे हैं पर वह असली स्वाद लाने में असमर्थ ही हैं।


हमारी सामाजिक व्यवस्था में खाना बनाने का उत्तरदायित्व महिलाओं के हाथों में ही रहा है महिलाएं ही घर परिवार के पालन- पोषण की धुरी रही हैं। महिलाएं अपने परिवार के भोजन बनाने खिलाने में आंतरिक सुख का अनुभव करती हैं इसलिए प्यार और अपनत्व की भावना से ओत प्रोत होकर ही भोजन बनाती हैं। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि वे भोजन के साथ अपने परिवार के लिए स्नेह भी परोसती हैं। इसीलिए परिवार के सदस्यों को घर का भोजन रुचिकर व स्वाद से भरपूर लगता है। महिलाओं द्वारा अपने परिवार के लिए भोजन तैयार करना न तो भार है और न कोई व्यावसायिक प्रक्रिया है बल्कि यह उनको सामान्य दिनचर्या से जुड़ी एक महत्त्वपूर्ण रचनात्मक गतिविधि ही लगती है। जिसका सीधा संबंध उनके अपने और परिवार के सदस्यों के भावनात्मक जीवन से जुड़ा होता है। हर परिवार में प्रत्येक सदस्य की अपनी अलग भोजन रुचि एवं आदतें होती हैं। ऐसे में महिलाएं अपनी पाक कुशलता एवं निपुणता से सभी की भोजन संबंधी रुचियों अपने इस उन का ध्यान रखती हैं। महिलाएं आदिकाल से अपने इस उत्तरदायित्व को निभाती आ रही हैं। आज भी तीव्र गति से विकसित और शिक्षित समाज में भी महिलाएं अपने घर के पोषण का दायित्व बखूवी निभाती हैं। घरेलू महिला हो या नौकरी पेशा दोनों ही भोजन बनाने की जिम्मेदारी पूरे मनोयोग से निभाती हैं। कितना भी कार्य भार बढ़ जाएँ, अचानक कितने भी लोग खाने पर बढ़ जाएं, ऐसे में भी महिलाएं न तो घबराती हैं, न हिचकिचाती हैं बल्कि और दृढ़तापूर्वक अपनी रसोई सभालती हैं। महिलाओं का यह दायित्व भले ही किसी को छोटा या निम्न लगे पर सच्चाई यही है कि इसी दायित्व की पूर्ति से परिवार स्वस्थ और संस्कारित बनता है, क्योंकि अन्न से मन और मन से संस्कार व संस्कार से संस्कृति का स्वरूप बनता है। महिलाओं के इस अदृश्य श्रम के कारण ही हमारे संस्कार और हमारी संस्कृति आज भी सुदृढ़ है।


हमारे समाज की संकीर्ण मानसिकता के कारण अधिकतर महिलाओं को भोजन बनाने तक ही सीमित रखा गया और उनके इस कार्य को कमतर ही आंका गया है परन्तु अब शिक्षित समाज ने यह स्वीकार लिया है कि घर गृहस्थी संभालना केवल महिलाओं की ही जिम्मेदारी नहीं है बल्कि सभी की साझेदारी है। घर के बने खाने का स्वाद तो सभी को अच्छा लगता है परन्तु यह सोचना भी सभी की जिम्मेदारी है कि इस स्वाद के लिए हमारी क्या हिस्सेदारी है। ऐसे में यह आवश्यक हो जाता है कि महिलाओं के इस विशिष्ट कार्य में घर परिवार के सभी लोग अपनी भागीदारी सुनिश्चित करें। वैसे आज विकसित होते समाज की परंपराओं में काफी लचीलापन आ गया है। महिलाओं की कार्यशैली में भी बदलाव हो गया है उनके लिए घर की चहारदीवारी के बंद दरवाजे खुलने लगे हैं। लेकिन शिक्षा व नौकरी के साथ उनकी चुनौतियां और भी बढ़ गयी हैं। फिर भी महिलाएं अपने घर के स्वाद को बनाये हुए हैं और पूरी तन्मयता के साथ खाने के स्वाद में अपनी ममता स्नेह और संवेदनाओं को लुटाने के लिए तत्पर हैं।