अजमेर के जैन मन्दिरों की मूर्तियों के अल्पज्ञात लेख

चौहानों के युग में अजमेर में जैन धर्म के प्रमुख आचार्य हरिभद्र सूरी थे। ये एक ऐसे जैनाचार्य थे जिन्होंने लगभग 1400 पुस्तकें लिखकर जैन धर्म के पाखण्ड को दूर करने हेतु क्रान्तिकारी आवाज उठाई। उनके शिष्य जिनबल्लभ सूरी ने अजमेर के बाहर नागौर तक अनेक जैन चैत्यों का निर्माण करवाया। पश्चात् में उनके शिष्य जिनदत्त सूरी ने अजमेर शासक अणोराज से मिलकर नये जैन मन्दिर के निर्माण हेतु भूमिदान प्राप्त किया था। इस क्रम में विग्रहराज चतुर्थ ने भी अजमेर में एक जैन विहार का निर्माण करवाया था।


जैन धर्म की राजस्थान के प्राचीन और मध्यकालीन इतिहास तथा संस्कृति के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इस धर्म को यहां शासक वर्ग के साथ ही सर्वसाधारण का भी व्यापक सहयोग प्राप्त हुआ था। इस क्रम में राजस्थान की मध्यमिका नगरी में जैन धर्म का प्रचार होना तीसरी सदी ईस्वी पूर्व के एक लेख से स्वीकार किया जाता है। पुराविद् गौरीशंकर हीराचन्द ओझा ने इस संभावना के समर्थन में उक्त स्थान से प्राप्त एक लेख (बड़ली लेख) की ओर ध्यान भी आकृष्ट किया है। चीनी यात्री युवान च्यांग के यात्रा विवरण तथा बसन्तगढ़ (सिरोही) से प्राप्त 687 ई. की तिथियुक्त आदिनाथ (ऋषभदेव) की मूर्ति से 7वीं सदी के राजस्थान प्रदेश में जैनधर्म की लोकप्रियता के स्पष्ट संकेत मिलते हैं। राजस्थान में प्रतिहार शासकों के समय जैनधर्म में आशातीत प्रगति हुई थी। प्रतिहार शासक वत्सराज के समय औसियां में महावीर स्वामी का प्रसिद्ध मन्दिर बना वहीं 11वीं सदी में इस प्रदेश के झालावाड़ जिले की झालरापाटन नगरी में शान्तिनाथ स्वामी का जैन मन्दिर परमार शासकों के समय का स्पष्ट प्रमाण है। इस क्रम में शाकम्भरी के चौहान नरेशों ने भी जैन धर्म के प्रति उदार नीति अपनाई। पृथ्वीराज प्रथम के पुत्र अजयराज ने अपनी राजधानी अजयमेः (अजमेर) में तो पाश्र्वनाथ जैन मन्दिर में स्वर्ण कलश चढ़ाकर अपनी धार्मिक उदारता का परिचय दिया था। इस क्रम में हरविलास शारदा की मान्यता है कि अजमेर नगर अरावली श्रृंखलाओं से आवृत है तथा यहां हिन्दू मन्दिर, जैन मन्दिर, छतरियां आदि जो स्थापत्यकला के नमूने है उनके सन्दर्भ में जैन छतरियों की पुरातन इतिहास में मान्यता अजमेर में छठी शताब्दी की ठहरती है। अजमेर अन्तर्गत आंतेड़ के निकट बनी जैन छतरियां है जिन पर अंकित शिलालेख 760 ई., 845 ई. तथा 871 ई. के है। इन लेखों से अजमेर में जैन धर्म की सांस्कृतिक महत्ता ज्ञापित होती है। मूलतः यह छतरियां जैन मुनियों और भट्टारकों की है। इनमें चबूतरों पर पगल्ये (चरण पादुकाएं) निर्मित है जिसमें भट्टारक रत्नकीर्ति के शिष्य पं. हेमराज की छतरी विशेष उल्लेखनीय है। अष्ट स्तम्भों पर निर्मित इस छतरी का शिखर कलावलंकृत है।



चौहानों के युग में अजमेर में जैन धर्म के प्रमुख आचार्य हरिभद्र सूरी थे। ये एक ऐसे जैनाचार्य थे जिन्होंने लगभग 1400 पुस्तकें लिखकर जैन धर्म के पाखण्ड को दूर करने हेतु क्रान्तिकारी आवाज उठाई। उनके शिष्य जिनबल्लभ सरी ने अजमेर के बाहर नागौर तक अनेक जैन चैत्यों का निर्माण करवाया। पश्चात् में उनके शिष्य जिनदत्त सूरी ने अजमेर शासक अणोर्राज से मिलकर नये जैन मन्दिर के निर्माण हेतु भूमिदान प्राप्त किया था। इस क्रम में विग्रहराज चतुर्थ ने भी अजमेर में एक जैन विहार का निर्माण करवाया था।


इस प्रकार अजमेर में 8वीं सदी से निरन्तर 20वीं सदी तक जैन धर्म का सांस्कृतिक विकास मन्दिर, स्थापत्य तथा मूर्तिकला के साथ होता रहा। अजमेर में ही इस क्रम में दो ऐसे मन्दिर क्रमशः तीर्थकर पाश्र्वनाथ (गौडीय पाश्र्वनाथ जैन मन्दिर) तथा तीर्थंकर संभवनाथ के है जो जैन शिलालेखीय दृष्टि से महत्वपूर्ण है। इनमें गौडीय पाश्र्वनाथ जैन मन्दिर संवत 1850 का तथा संभवनाथ जैन मन्दिर लगभग संवत 1800 का है। यद्यपि ये दोनों मन्दिर अब अजमेर शहर के लाखन कोटडी मोहल्ले में है परन्तु यह मोहल्ला अब इतना संकरा और व्यस्त हो गया कि यहां निवास करने वाले जैन धमार्नुयायियों ने यहां से अपने आवास खाली कर अन्य स्थानों पर निर्मित किये है और अब इन दोनों मन्दिरों में व्यवस्तता वश बड़ी ही मुश्किल से जाया जा सकता है। लेखिका स्वयं बड़ी ही मुश्किल से उक्त दोनों मन्दिरों में स्थापित जैन तीर्थंकर मूर्तियों के पादपीठ पर अंकित लेखों का सामुख्य अध्ययन करने गयी थी12 और प्रस्तुत लेख का यही प्रतिपाद्य है कि इन अल्पज्ञात लघु लेखों की जानकारी इतिहास के शोधार्थियों को हो सकें जो लगातार जलाभिषेक से क्षरित होते जा रहे है। यह लघु जैन अभिलेख 13वीं से 20वीं सदी तक के है। यद्यपि इनका संकलन पूरण चन्द नाहर ने भी किया था। परन्तु वह अब शोधार्थियों के लिए अल्पज्ञात ही है एवं उसमें मात्रादि की अनेकानेक त्रुटियां भी है। वहीं प्रस्तुत लेखों में खरतरगच्छ, तपागच्छ, पल्लिवालगच्छ, सरस्वतीगच्छ का जो वर्णन हैं वह निम्न प्रकार सामान्य रूप से समझा जा सकता है। खरतरगच्छ के बारे में वर्णन प्राप्त होता है कि 11वीं सदी में दुर्लभराज के दरबार में चैत्यवासियों को परास्त कर जिनेश्वरसूरी ने सन् 1017 ई. में (खरतर) विरूद्ध प्राप्त किया था जिसके फलस्वरूप उनका गच्छ (खरतरगच्छ) कहलाया।4 कालान्तर में इस गच्छ की विभिन्न शाखाओं के जैनाचार्यों ने राजस्थान के कई क्षेत्रों में मूर्ति प्रतिष्ठा का कार्य सम्पादित किया। इसी क्रम में तपागच्छ के बारे में ज्ञात होता है कि जगचन्द्र सूरि मेवाड़ के शासक जैत्रसिंह द्वारा सन् 1228 ई. में (तपा) विरूद से अलंकृत हुए थे, फलतः निर्ग्रन्थगच्छ का नाम (तपागच्छ) हुआ। पल्लिवाल गच्छ के नाम की उत्पत्ति पाली से हुई थी। इस क्रम में इस गच्छ का विवरण 15वीं सदी के अजमेर से प्राप्त अभिलेखों से पता चलता है।” सरस्वतीगच्छ पद्मनन्दि के चमत्कार से प्रचलित हुआ तथा इस गच्छ का सम्बन्ध 11वीं सदी में मूलसंध के अभिलेखों से ज्ञात होता है।18 उपकेशगच्छ का प्रादुर्भाव मारवाड़ के ओसियां से हुआ तथा वहां 1202 ई0 का इस गच्छ से सम्बन्धित शिलालेख भी मिला है। 13वीं से 16वीं सदी में इस गच्छ की लोकप्रियता मारवाड़, मेवाड़ व सिरोही से प्राप्त लेखों से प्राप्त होती है। इनके लेखों में अनेक गौत्रों का भी वर्णन रेखांकित है, वस्तुत वे विभिन्न जैन श्रेष्ठियों के गौत्र है जो अनेक शाखाओं में विभक्त रहे।



उक्त विवरण के क्रम में अजमेर नगर में स्थित उक्त दोनों विवेच्य जैन मन्दिरों में स्थापित जैन मूर्तियों के पादपीठ पर अंकित लेखों का वर्णन प्रस्तुत किया जा रहा है इनमें गौड़ीय पाश्र्वनाथ जैन मन्दिर को (पंचतीथी मन्दिर) भी कहा जाता है क्योंकि यहां पांच जैन मूर्तियों पर लेख अंकित होने से उन्हें इस संज्ञा से ज्ञापित किया गया है। इस मन्दिर में जैन तीर्थकर पाश्र्वनाथ, सुमितनाथ, संभवनाथ, शीतलनाथ, सुविधिनाथ, नेमिनाथ, धर्मनाथ, आदिनाथ तथा वासुपूज्य की मूर्तियां है, जिनकी बिम्ब प्रतिष्ठा का वर्णन संवत्, प्रतिष्ठाकारक गच्छ से सम्बन्धित मुनीजनों तथा प्रतिष्ठा कराने वाले जैन श्रेष्ठियों के नाम, गौत्र व उनके परिवारजनों का वर्णन निम्न प्रकार से लेखीय रूप में है। 1. संवत् 1242 आषाढ़ बदि-गुरौ श्री यश सूरि गच्छे श्रे. नागड सुत आसिग तत्पुत्र राल्हण थिरदेव मातृ सूहपादि पुत्रैः आसग श्रेयोर्थं पाश्र्वनाथ बिम्ब कारापिता।



2. संवत् 1495 वर्षे ज्येष्ठ सु. 13 उप. ज्ञातीय तातहड़ गौत्रे सा. वीकम भा. देवल दे पुत्र रेड़ा श्रा. हीमादे पुत्र सुहड़ा भा. सुहडादे पु. संसारचंद। सामंत सोभा स. श्री सुमतिनाथ बिम्ब श्री उपकेश गच्छे ककुंदाचार्य स. श्री सिंह सूरिभिः।


3. सं. 1507 वर्षे वैशाष वदि 3 गुरै श्री श्री माल ज्ञातीय श्रे. चांपा भा. चापलदे तयो सुता श्रे. ब्यघा वीघा विरा भार्या 'शीमा पूना भगिनी हर' एतेषां मध्ये पूनाकेन स्वमातृ पित श्रेयसे श्री संभवनाथ बिंब कारितं प्रतिष्ठित श्री सूरिभिः अष्टार वास्तव्यः।


4. सं. 1513 वै. सु. 2 सोमे उसवाल ज्ञातीय छाजहड़ गौत्रे माघाहः पु. रानपाल भा. कपूरी पुत्र हारलण भा. सारतादे माता डासाडा सहितेन श्री शीतलनाथ वि. प्र. श्री पल्लि गच्छे श्री यश सूरि।


5. सं. 1515 वर्षे फागुन सु. 9 रवौ ऊ. आईचणा गोत्रे सा. समदा भा. सवाही पुत्र दसूरकेन आत्मश्रेयसे सितलनाथ वि. का. - प्रति. श्री कक्क सूरिभिः।।


6. सं. 1521 वर्षे ज्ये. शु. 4 प्राग्वाट सा. जयपाल भा. वासू पुत्र्या सा. हीरा भ. भेरादे पुत्र सा. माउण भार्या रंगू नामा श्रेयसे श्री सुमतिनाथ बिम्ब का. प्र. तपापक्षे रत्न शेषर पट्टे श्री लक्ष्मी सागर सूरिभिः।


7. सं. 1521 वर्षे ज्येष्ठ सु. 13 गुरौ श्री राजपुर वास्तव्य श्री श्री मालज्ञातीय श्रे. रंग भार्या मवकू सुत लाईयाकेन भा. हीः सुत गाईया गुढ़ा प्रमुख कुटुम्बयुतेन भार्या असे श्री संभवनाथ बिम्ब कारितं प्रतिष्ठितं बृहनपा श्री उदय बल्लभ सुरिभिः।


8. संवत् 1525 वर्षे चैत्र वदि 9 शनौ प्राग्वाट ज्ञातीय श्रे. सीमा भा. सूहूला सुत सिवा भार्या सोभागिणि सुत् पद्मा भार्या पहती श्री सुविधिनाथ बिंब का. सद्गुरूप देशेन विधिना प्र. बिंब........छ।।।


9. सं. 1527 वर्षे पोष वदि 1 श्री. प्राग्वाट ज्ञा. म. हेमादे सु. बईजा स्वसाकला नाम्न्या श्री नेमिनाथ बिंब कारितं प्र. वृद्ध तपापक्षे भ. श्री जिन रत्न सूरिभिः।


10. सं. 1528 माह व. 5 बुधे श्री ओस वंशे धनेरीया गोत्रे साह भाहड़ पुत्र वीका भार्या वील्हणदे पुत्रैः साह कोहा केल्हा मोकलाख्यैः स्वश्रेयसे श्रीधर्मनाथ बिंब का. श्री पल्लिवाल गच्छे श्री नन्न सूरिभिः प्र.।


11. सं. 1570 वर्षे माघ बदि 13 बुधे श्री पत्तन वास्तव्य मोढ़ ज्ञातीय ठ. भोजा भार्या वाली सुत. ठ. रत्नाकेन भार्या रूपाई सुत ठ. जसायुतेन श्री आदिनाथ बिंब कारितं स्व श्रेयोर्थं श्रीवृद्धतपा पक्षे श्री रत्न सूरि संताने श्री उदय सूरिः।। श्री लक्ष्मी सागर सूरीणा पट्टे प्रतिष्ठितं श्री धन रत्न सूरिभिः श्री रस्तु।


12. सं. 1603 वर्षे आषाड़बदि 4 गुरौ भिन्न माल वास्तव्य म. देवसी भा. दाडिमदे पुत्र मानसिंघ भा. षेतसी युतेन स्वश्र यसे श्री वासुपूज्य बि. का. प्र. तपगच्छे भ. श्री 5 श्री विजयदेव सूरिभिः।


13. सं. 1683 वर्षे आषाड़ बदि 4 गुउसवाल ज्ञातीय वेद महता गोत्रे म. भयरव भा. भरमादे पुत्र मे. सुरताणख्येन श्री सुविधिनाथ बिंब का. प्र. तपा गच्छे भ. श्री विजयदेव सुरिभिः।।


14. संवत 1687 वषै ज्येष्ठ सुदि 13 गुरौ मेडता नागर वास्तव्य उसभ गौत्र को. जयता भार्या जसदे पुत्र को. दीपा धनाकेन श्रीपाश्र्व बि. का. प्र. तपा गच्छे भ. श्री विजय देव सूरिभिः एकपद स्थापित श्री विजयधर्म-सू ...।



संभवनाथ मंदिर के मूर्ति लेख 


गौडीय पाश्र्वनाथ जैन मन्दिर के पास ही जैन तीर्थंकर संभवनाथ का भी मन्दिर है। इसमें तीर्थंकर शान्तिनाथ, पद्मप्रभू, अजितनाथ, सुव्रतनाथ, विमलनाथ, अभिनन्दननाथ, श्रेयांसनाथ, आदिनाथ, नेमिनाथ, संभवनाथ, वासुपूज्य, पाश्र्वनाथ, सुमतिनाथ की मूर्तियों के साथ जिन मातृका पट्ट भी प्रतिष्ठित है। इन सभी के पादपीठ पर अंकित लेख निम्न प्रकार है -


1. सं. 1290 माह सुदि 10 क्षे. धवल सुत जैमल श्रेपीथं - कारितः।।


2. सं. 1379 वर्षे वै. वदि 5 गुरौ प्राग्वाट ज्ञातीय महं कंघा भार्या -- पुत्र माल्ह श्री शांतिनाथ बि. का. प्र. श्री महेंद्र सूरिभिः।


3. सं. 1481 माघ शु. 10 प्राग्वाट -- स्व श्रेयसे पद्मप्रभ बिंब का. श्री सोम सुन्दर सूरिभिः।


4. सं. 1481 वर्षे वैशाष सु. रवो रहूराली (?) गोत्रे सा. वीजल भार्या विजय श्री पु.रावा -- श्रेयोर्थं श्री अजितनाथ बि. प्र. श्री धम श्रीपद्म शेषर सूरिभिः।


5. सं. 1485 वर्षे माघ सुदि 14 बुधे लिगा गोत्रे सा. माला सागू युतेन सा. जील्हा केन निज पित्रोः श्रेयोथं श्री सुमतिनाथ बिंब कारितं प्रतिष्ठितं तपा गच्छे श्री हेम हंस सूरिभिः।


6. ।। ऊं।। सं. 1486 वर्षे माघ सु. 11 शनौ श्री षंडेरकीय गच्छे उपकेश ज्ञा. गूगलीया गोत्रे सा. महूण पु. षोना पु. नेमा पु. नूनाकेन भा. लषी पु. करमा नाल्हा सहितेन स्वेश्रेयसे श्रीमुनि सुव्रत बिंब का. प्रतिष्ठितं श्री शांति सूरिभिः शुभं भूयात् ।। श्री।।


 7. सं. 1488 वर्षे पोष सु. 3 शनौ उकेश ज्ञातौ तीवट गोत्रे वेसटान्वये सया. दादू भा. अणुपदे पु. सचवीर भा. सेत्त पु. देवा श्री वंताभ्यां पित्रो श्रेयसे श्री विमलनाथ बिंब का. प्रा. श्री उकेश गच्दे ककुदाचार्य संताने श्री सिद्ध सुरिभिः।


8. सं. 1490 वै. सु. शनौ श्री मूलसंघे नंदिसंघे बलात्कार गणे सरस्वती गच्छे श्री कुंद कुदाचार्यन्वये भट्टारक श्री पद्मनंदि देवाः तत्पट्टे श्री सकल कीति देवाः। उत्तरे


9. श्रख्योभि (?) हं. ज्ञातीय व. आसपाल भा. जाणी सु. आजाकेन भा. मघूसुत विरूआ भातृ वीजा भा. वानू सुत समधरादि कुटुंव युतेन श्री पद्म प्रभ चतुर्विशति पट्ट कारितः तंच सदा प्रणमति सुकुटुंबः।


10. सं. 1492 वर्षे मार्गशिर वदी 4 गुरूवारे श्री उपकेश वंशे लूसड़ गोत्रे सा. देव राज भार्या हेमश्रिया पुत्र सा. वाहडेन आत्मा कुटुंब श्रेयोर्थं श्री विमलनाथ बिंब कारापितं प्रतिष्ठितं श्री धर्म घोष गच्छे भ. श्री पद्मशेखर सूरिभिः।


11. सं. 1499 माघ सु. 5 प्राग्वाट व्य. धीरा धीरलदे पुय व्य. भीमा भावल दे सुतव्य. वेला पत्नया वीरणि नाम्न्या श्री संभव बिंब का. प्र. तपा श्री सोम सुन्दर सूरिभिः ।। श्री।।


12. सं. 1516 वर्षे वैशाख बदि 12 शुक्र श्री श्रीमाल ज्ञातीय पितृ सं. रामा मातृ शाणी श्रेयो) सुत सागाकेन श्री श्री अभिनन्दन नाथ बिंब कारितं श्री पूर्णिमा पक्षे श्री साधुरत्न सुरिणामुपदेशेन प्रतिष्ठितं विधिना श्री संघेन गोरईया वास्तव्य।।


13. ।। 1516 आषाड़ सु. 5 ओष्ठे गोत्रे तीवा भार्या रूपा पु. तोल्हा तेजा पद्मावति प्रणमति।


14. सं. 1517 वर्षे फागुन सदि 2 उकेश वंशे बुहरा गोत्रे सा. सोढा भा. शाणी पु. नगाकेन भा. नायक दे पुत्र नापा गोपा प्र. परिवार सहितेन स्वपितृ सा. सोढा पुणार्थ श्री श्रेयांस बिंब का. श्री खरतर गच्छे श्री जिन भद्र सूरि पट्टे श्री जिनचन्द्र सूरिभिः प्रतिष्ठितं।


15.सं. 1517 वर्षे माघ सु. 5 शुक्रे प्राग्वाट ज्ञा. श्रे. डउढ़ा भा. हरप सु. श्रे नागा भा. आजी सुत श्रे. जिनदासेन स्त्र श्रेयसे श्रीधर्मनाथ बिंब आगम मच्छे श्रीदेवरत्न सुरि गुरूपदेशेन कारितं प्रतिष्ठित।


16. सं. 1519 वर्षे ज्येष्ठ बदि 11 शुक्र उपकेश ज्ञातीय चोरवेडिया गोत्रे उएस (?) गच्छे सा. सोढ़ा सा. -- पु. साधू सुहागढे सुत ईसा सहितेन स्वश्रेयसे श्री सुमति नाथ बिंब काकतं प्रतिष्ठितं श्रीकक्क सूरिभिः।। सीणोरा वास्तव्यः।।


17. सं. 1520 वर्षे बै. सुदि 5 भौमे श्री ज्ञातीय श्री पल्हयउ गोत्रे सा. भीषात्मज सा. घेल्हा तत्पुत्र सा. सांगा --प्रभृतिभिः स्वपितृ पुण्यार्थं श्री आदिनाथ बिंब कारितं। वृदगच्छे श्रीरत्नप्रभ सूरि पट्टे प्रतिष्ठितं श्री महेंद्र सूरिभिः।


18. सं. 1524 आषाड़ शु. 10 शुक्रे उकेश वंशे - भा. संपूरा पु. जेसाकेन भा. धर्मिणि पु. माईआ पौत्र इसा वीसालादि कुटुंब युतेन पु. माइया श्रेयसे श्री नमि (नाथ)बिंब का. प्र. तपा श्रीसोमसुंदर सूरि संतान श्री लक्ष्मी सागर सूरिभिः।


19.सं. 1532 वर्षे चैत्र वदि 2 गुरौ श्री श्रीमाल ज्ञा. सं. जोगा भा. जीवाणि सगोला भा. कर्मी पु. नरवदेन श्री श्रेयांसनाथबिंब कारितं श्री पूर्णिमा पक्षीय श्री साधु सुन्दर सूरीणामुपदेशेन प्रतिष्ठितं विधिना वलहरा।


20. सं. 1535 वर्षे फागुण सुदि 3 दिने श्री उकेशवंश भ. गोत्रे सा. नीवा भार्या पूजी सा. पूना श्रावकेण भातृ सजेहण मा. अंवा परिवार युतेन श्री संभवनाथ बिंब कारितं प्रतिष्ठित श्री खरतर गच्छे श्रीजिन भद्र सूरि पट्टे श्री जिनचंद्र सूरिभिः ।।


21. संवत 1547 वर्षे मा. वदि 8 दिने प्राग्वाट ज्ञातीय व्य. रूपा भा. देपू पुः मेरा भा. हीरू श्रेयोर्थं श्री वासुपूज्य बिंब प्रतिष्ठितं श्री सूरिभिः।


22. || संवत 1557 वर्षे वैशाख सुदि 3 दिने मंगलवासरे उ. ज्ञातीय वेंछाच गोत्र मा. षीमा पु. जाल नारिगदे अगस --श्रेयोर्थं श्रीशांतिनाथ बिंब का. प्र. श्रीसंडेरग (?) गच्छे श्रीशांति सूरिभिः तत्प -श्रीर-सुरिभिः।


23. सं. 1559 (?) वर्षे आषाड सु. 10 सूराणा गोत्रे स. शिवराज भा. सीतादे पुत्र सं. हेमराज भार्या हेमसिरी पु. पूजा काजा नरदेव श्री पाश्र्वनाथ बिंब कारितं प्र. श्रीधर्म घोष गच्छे भ. श्रीपद्मनंद सूरि पट्टे नंदिवर्द्धन सूरिभिः।


24. सं. 1559 वर्षे आषाढ़ सुदि 10 आईचणाग गोत्रे तेजाणी शाषायां सा. सुरजन भा. सूहवदे पु. सहस मल्लेन भा. शीतादे पु. पाडा ठाकुर भा. द्रोपदी पौ. कसा पीघा श्रीवंत युवेनात्मपुण्यार्थ श्रीसुमतिनाथ बिंब कारितं प्र. श्रीउपकेशगच्छे भ. श्री देवगुप्त सुरिभिः।। श्रीः।।


25. सं. 1567 वर्षे श्री माह सुदि 5 बुधे गोठि गोत्रे सा. -- तत्पु. पहराज तत्पुत्र राठा--त्यादि परिवार युतेन सुविधि नाथ बिंब का. प्र. खरतरगच्छे श्रीजनचन्द्र सूरिभिः।


26. संवत् 1579 वर्षे आषाढ़ सुदि 13 दिने रबिवारे श्री फसला गोत्रे मं. सधारण पुत्र रत्न मं. माणिक भार्या माणिकदे पुत्र मूलाकेन पुत्रपौत्रादि परिवृतेन श्री पाश्र्वनाथ बिंब कारितं प्र. श्री खरतरगच्छे श्रीजिनहंस सूरिभिः श्रीपत्तन महानगरे।


27. सं. 1904 वर्षे पौष मासे शुक्र पक्षे पर्णिमायां तिथौ श्री अजमेर पूर्यां श्री चतुविंशति जिनमातृका पट्ट लुनिया गोत्रेन सा. पृथिराजेन का. प्र. श्रीवृह्तू खरतरगच्छाधीश्वर जंगमयुगप्रधान भ. श्रीजिन सौभाग्य सूरिभिः विजयराज्ये।



दादाबाड़ी एवं पाश्वनाथ मन्दिर के लेख


अजमेर नगर में बीसलसर के पूर्वी छोर पर जिनदत्त सूरी (जैनाचार्य) का समाधि स्थल (दादाबाड़ी) या दादाजी का बाग के नाम से जाना जाता है। पुरातत्वविद् अगरचन्द नाहटा के अनुसार 21 जैन धर्म के खरतरगच्छ सम्प्रदाय में जिनबल्लभ सूरी के शिष्य जिनदत्त सूरी हुए। उनका निधन अजमेर में आषाढ़ शुक्ला एकादशी वि.स. 1211 (सन् 1154 ई.) को हुआ था और यहीं दादाबाड़ी में उनका दाह संस्कार किया गया था। इसी स्थल के निकट एक जैन मन्दिर तीर्थंकर पाश्र्वनाथ का है। यहां के एक लेख में तीर्थंकर शांतिनाथ के बिम्ब की प्रतिष्ठा कराने का संवत 1535 का लेख निम्न प्रकार है।22 1. सं. 1535 वर्षे आषाढ़ सुदि 6 शुक्र बड़नगर वास्तव्य उकेशज्ञातीय सा. साजण मार्या साः पुत्र सा. लबाकेन भार्या लीलादे प्रमुख कुटुम्बयुतेन स्वश्रेयसे श्रीशांतिनाथ बिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्री तपागच्छनायक श्री लक्ष्मीसागर सूरिभिः।। पं. पुण्यनन्दन गणीनामुपदेशेनउक्त


मन्दिर के ही परिसर में कुछ चबूतरे व छतरियां निर्मित है। इनमें संवत् 1871 (ई. सन् 1814) से संवत् 1916 (ई. सन् 1859) के लेख पठन में आते है।


सारतः प्रस्तुत लेख का अभिप्राय अजमेर के विवेच्य उक्त दो जैन मन्दिरों में स्थापित जैन मूर्तियों के पादपीठादि पर अंकित उन लेखों को शोध की दृष्टि से प्रकाश में लाना है जो क्षरित होने की स्थिति में है। उत्तम होगा कि जैन संस्कृति के विद्वान इन लेखो की सुवाच्य प्रतियां तैयार कर विभिन्न जैन शोध संस्थानों तथा स्थानीय स्थानाय


संग्रहालय में प्रदर्शित करे तो इनके बारे में जैन संस्कृति पर शोध करने वालों को एक दिशा बोध प्राप्त हो सकता है। प्रस्तुत लेख यद्यपि परिचयात्मक रूप में ही माना जाना वांछित होगा क्योंकि अजमेर के अनेक जैन स्थलों, मूर्तियों पर अभी तक पृथक से कोई समग्र ग्रन्थ का लेखन कार्य नहीं हो पाया है।


संदभः


1. ओझा गौरीशंकर हीराचन्द-भारतीय प्राचीन लिपिमाला, पृ. 2-3


2. थामस वाटर्स -आन युवान च्वांग टेज्वल्स इन इण्डिया, पृ. 249-300


3. मुनि जिनविजय (सं.) अबुर्दाचल प्रदषिणा जैन लेख, समादोह, सं. 365


4. (1) आर्कियालाजीकल सर्वे ऑफ इण्डिया, 1908-09 ई., पृ. 108 (2) आर्कियालाजीकल सर्वे ऑफ इण्डिया (वेस्टर्न सर्कल) 1906-07 ई., पृ. 15


5. (1) जैन के.सी. - जैनिज्म इन राजस्थान, पृ. 123


(2) शर्मा ललित -झालावाड़ इतिहाससंस्कृति और पर्यटन, (झालरापाटन अध्याय) पृ. 266


6. शर्मा दशरथ - राजस्थान श्रू द ऐजेज, पृ. 420


7. शारदा हरविलास - स्पीचेज एण्ड राइटिग्स, पृ. 204 (1941 ई.)


8. अग्रवाल रतनचन्द्र - जर्नल ऑफ इण्डियन हिस्ट्री, 1957 ई., पृ. 203


9. लोक तत्व निर्णय (जैन) देखिये श्लोक सं. 32-33


10.सी.वी. वैद्य - हिस्ट्री ऑफ मिडाइवल हिन्दू ऑफ इण्डिका, भाग-3, पृ. 411


राज 11. भानावत नरेन्द्र (सं.) - जैन संस्कृति और राजस्थान (जिनवाणी विशेषांक) 1975 ई. पृ. 199


12.लेखिका स्वयं अजमेर निवासी है, उसने विवेच्य मन्दिरों तथा उनमें स्थापित जैन मूर्तियों व लेखों का सामुख्य अध्ययन किया है।


13. नाहर पूरणचन्द्र (संकलनकर्ता) जैन लेख संग्रह, 1918 ई. प्रथम खण्ड, पृ. 124 से 133


14. इण्डियन एन्टीक्वेरी, वाल्यूम-9, (प), पृ. 248


15. भानावत नरेन्द्र - पूर्वोक्त, पृ. 154


16. श्रमण भगवान महावीर, जिल्द-5, भाग2, स्थविरावली, पृ. 75


17. नाहर पूरणचन्द्र - पूर्वोक्त, छै 533 व


18. भानावत नरेन्द्र - पूर्वोक्त, पृ. 150 (मूल संघ अध्याय)


19.नाहर पूरणचन्द्र - पूर्वोक्त, पृ. 791, प्लेट सं. 1


20. उक्त ग्रन्थ के पृ. 124 से 133 का अनुशीलन तथा लेखिका के सामुख्य अध्ययन एवं चित्रो पर आधारित लेखन।


21. नाहटा अगरचन्द, लेख युग प्रधान (जिनचन्द्र सूरी) खतरगच्छ पट्टावली, पृ. 28-30


22. नाहर पूरणचन्द्र - पूर्वोक्त, पृ. 133