कोटा संग्रहालय की अद्वितीय शैव मूर्तियाँ

नील प्रवालरूचिरं विलसत्रिनेत्रं


पाशारूणोत्पलकपाल त्रिशूलहस्तम्।


अर्धाम्बिकेशमनिशं प्रविभक्तभूषं


बालेन्दुबद्धमुकुटं प्रणमामि रूपम्।।


बालेन्दुबद्धमुकुटं प्रणमामि रूपम्।। श्री शंकरजी का शरीर नीलमणि और प्रवाल के समान सुन्दर (नीललोहित) है, उनके तीन नेत्र है, उनके चारों हाथों में पाश, लाल कमल, कपाल और शूल है। उनके आधे अंग में अम्बिकाजी और आधे में वे स्वयं है। दोनों अलग-अलग श्रृंगारों से सुशोभित है, ऐसे स्वरूप को नमस्कार है। राजस्थान के हाड़ौती क्षेत्र के कोटा जिले में प्राचीन शैव मंदिरों का आधिक्य शैव धर्म की लोकप्रियता को रेखांकित करता है। पूर्व मध्यकाल एवं कालान्तर में नटराज शिव भारतीयकला में लोकप्रिय अभिप्राय रहे हैअतः यहां के संग्रहालय की शैव मूर्ति दीर्घा में रामगढ़ की नटेश शिव प्रतिमा इसका प्रतिनिधित्व करती है। दीर्घा में स्थानक गौरी और चतुर्हस्त पार्वती की मूर्तियां शिल्प की दृष्टि से महत्व रखती हैं। यहां उपलब्ध शैव मूर्तियां निम्नानुसार है -



1. स्थानक शिव :- 10वीं ईस्वीं शती की यह मूर्ति "विलास" जिला बारां से प्राप्त हुई है। जिसमें शिव त्रिभंग मुद्रा (यह नृत्य की एक शारीरिक मुद्रा है। जिसमें एक पैर को मोड़ा जाता है और देह थोड़ी किन्तु विपरीत दिशा में कमर और गर्दन पर वक्र बनाया जाता है।) में खड़े हुए है। हाथों में त्रिशूल सर्प एवं जलपात्र दृष्टव्य है। शिव को आभूषण युक्त प्रदर्शित किया गया है। उनके कानों में कुण्डल व गले में हार, कमर में कणकती एवं हाथों में कड़े पहने है। मूर्ति के दोनों ओर मध्य में गज व नीचे पुरूष द्वारपाल सुशोभित हैं।



2. चतुर्हस्त शिव :- (संख्यांक नं. 332/28) 10वीं ई. शती विलास (बारां) से प्राप्त यह मूर्ति जिसका बायां हाथ सर्प से लिपटा हुआ है। उसकी वर्तमान स्थिति खण्डित है। मूर्ति के दोनों और मध्य में हाथी व नीचे कन्या द्वारपाल है। शिव मुकुट धारण किए हुए एवं कुण्डल पहने हुए हैं गले में 2 प्रकार के हार सुशोभित हैं। पैरों में कडोले धारण किए हुए हैं।



 3. चतुर्हस्त शिव :- (संख्यांक नं. 539/13) यह 10वीं ई. शती जग मन्दिर कोटा से प्राप्त मूर्ति है। इनके गले में आभूषण है। कमर में कणकती, बाजुओं में बाजूबन्द, कानों में कुण्डल एवं पांव भी आभूषणों से सज्जित हैं। मूर्ति के दोनों और दो महिलाएं द्वारपाल हैं जिनके हाथों में आयुध हैं। बांई ओर खड़ी गणेश मूर्ति है जो कड़ा धारण किए हुए है। ऊपरी भाग में नवग्रह एवं निम्न भाग में कल्पवृक्ष के दोनों तरफ आराधक खड़े है।


4. लकुलीश :- (सख्याक नं. 145/215) यह शैवों का सबसे प्राचीन सम्प्रदाय है। यह भगवान शिव के अवतार माने गए है। इन्होंने पाशुपत शैव धर्म की स्थापना की। 10वीं ई. शती “विलास" जिला बारां से प्राप्त यह प्रतिमा बुद्ध तथा तीर्थंकर मूर्तियों की समानता धारण किए हुए है। जिसमें शिव के शीश के केश महात्मा बुद्ध की तरह धुंघराले, कण लम्बे व स्कन्धों से सटे हुए एवं जनेऊ धारण किए है। यह चतुर्हस्त प्रतिमा है जिसमें 2 हस्त खण्डित है। प्रतिमा के निचले भाग में चार शिष्य हाथ जोड़े वन्दनाभाव से दृष्टिगोचर हो रहे हैं।


5. चतुर्हस्त अग्नि :- (सख्याक नं. 690) “अटरू" जिला बारां से प्राप्त 10वीं ई. शती की यह मूर्ति है, जिनके कानों में कुण्डल, बाजू आभूषण युक्त किन्तु खण्डित अवस्था में हैं। मुख भी खण्डित है। यह देव दक्षिण पूर्व दिशा का रक्षक है। इसे रूद्र का रूप माना जाता है। यही शिवा का तीसरा नेत्र भी है।


6. नटेश शिव :- (सख्याक नं. 204/297) रामगढ़ जिला बारां से प्राप्त 9वीं शती की यह मूर्ति है। जिसमें शिव के 6 हस्त नृत्यरत मुद्रा है। ऊपरी हाथों में सपार्कति, दोनों और करन्ड मुकुट धारण किए चंवर धारिणी शिव की दाई जंघा के नीचे की ओर नन्दी विराजमान है। नटेश शिव के बाई ओर अलंकृत स्तम्भ शोभायमान है।


7. स्थानक शिव पार्वती :- (सख्याक नं. 210/275) "रामगढ़" जिला बारां से 9वीं ई. शती की यह मूर्ति प्राप्त है। जिसमें शिव पार्वती ग्रीवा में हाथ डाले हुए है। मूर्ति के दोनों ओर अलंकृत स्तम्भ बने हुए है। स्तम्भ में दांई और 4 गज है जिनमें से एक खण्डित अवस्था में है। स्तम्भ के बांई और 4 हाथी पूर्णतया सुरक्षित हैं। शिव के दक्षिण हस्त में बिजोरा एवं पार्वतीजी के वाम हस्त में दर्पण उत्कीर्ण है।


8. उमा महेश्वर :- (सख्याक नं. 35/27) "विलास' जिला बारां से 10वीं ई. शती की यह मूर्ति है। जिसमें उमा महेश्वर नन्दी पर विराजमान है। महेश्वर की वाम जांघ पर उमा विराजमान है। महेश्वर चतुर्भुज रूप में दृष्टव्य है। जिसमें दाई ओर के एक हाथ में त्रिशूल व कमण्डल एवं वाम हस्त में सर्प एवं दूसरे हाथ में उमा को थामे हुए हैं। उमा के वाम हस्त में दर्पण दृष्टव्य है एवं नीचे के भाग में शिवगण उत्कीर्ण है।


9. उमा महेश्वर :- (सख्याक नं. 538/11) 0वीं ई. शती की कोटा के जगमन्दिर से प्राप्त यह मूर्ति जिसमें महेश्वर की वाम जंघा पर उमा विराजमान है और शीश पर आभा मण्डल उत्कीर्ण है। मूर्ति के नीचे की और गण नृत्य करते हुए उत्कीर्ण है। 10. शिव पार्वतीः- (सख्याक नं. 676) "काकोनी'' जिला बारां से प्राप्त 10वीं ई. शती की यह मूर्ति जिसमें शिवपार्वती पुष्पित पद्म पर बैठे हुए, द्यूत क्रीड़ा में लीन है। शिव की जंघा के पास स्तम्भ व दोनों तरफ नाग कन्याएं आभूषण युक्त सही अवस्था में दृष्टव्य है।


11. बटुक भैरव :- संख्यांक 386/82 “विलास' बारां से प्राप्त 10वीं ई. शती यह मूर्ति है जो शिव का ही स्वरूप है। नग्न भैरव के हाथों में 'खंजर, खप्पर एवं मानव मुण्ड तथा शार्दुल उत्कीर्ण है। भैरव मूलतः शिव के कोतवाल माने जाते है। उक्त मूर्तियों का शिल्प सौन्दर्य अद्वितीय दर्शनीय एवं प्रशंसनीय है। ये मूर्तियां अलग-अलग प्रकार के प्रस्तर खण्डों पर उकेरी गई है।