महादेव मन्दिर बैजनाथ

वर्तमान भारत के इतिहास में जहां एक ओर आपसी विद्वेष फैलता जा रहा है, वहीं यह बात हर किसी को आश्यर्चचकित कर देने के लिये पर्याप्त होगी कि अब से एक सौ पैतीस वर्षों पूर्व एक अंग्रेज, ईसाई फौजी-कर्नल ने अपनी अर्धांगनी की शिव-भक्ति की शक्ति के आगे नतमस्तक हो एक भव्य शिव-मंदिर का निर्माण करवाया था। इतना ही नहीं, उसने आसपास के प्रभावी लोगों से मंदिर के नवीनीकरण के लिए चंदा इकठ्ठा कर मंदिर के (उद्घाटन) समारोह में भी पूरी आस्था के साथ अपनी सेवायें अर्पित की थी।



यह भव्य शिव-मंदिर आज भी उस अंग्रेज की आस्था की जीवन्त गाथा कहता हुआ साम्प्रदायिक समन्वय का प्रतीक है। यह इन्दौर-जयपुर बस मार्ग पर मध्यप्रदेश के शाजापुर जिले में आगर-मालवा तहसील मुख्यालय से लगभग सात कि.मी. दूर स्थित है। यह आज हजारों दर्शकों और विदेशी पर्यटकों, शोधार्थियों के आकर्षण का जीवन्त केन्द्र है। इतिहास के अनुसार - आगर को विक्रम की दसवीं शताब्दी में आगरिया नामक एक भील सरदार ने बस्ती के रूप में बसाया था। समुद्र तल से 1750 फीट ऊँचे मालवा के पठार पर स्थित आगर 1493 ई. में मालवा के राजपूतों की राजधानी के रूप में प्रसिद्ध रहा। 1867 ई. में ग्वालियर नरेश महाराजा जीवाजीराव के शासन में आगर जिला बना रहा। लेकिन वर्तमान में यह मध्यप्रदेश के शाजापुर जिले का तहसील मुख्यालय होकर आगर- मालवा के नाम से प्रसिद्ध है। उज्जैन से यह स्थान 60 कि.मी. बस मार्ग पर उत्तर की ओर स्थित है।



 आगर के इस मंदिर के निर्माण आदि के बारे में यहाँ लगे शिलापट्ट व पुराने ग्रंथों से पता चलता है कि 19वीं सदी के आठवें दशक में समूचे भारत पर अंग्रेजी राज की हुकुमत चल रही थी। उस समय भारत का गर्वनर जनरल लार्ड लिटन था, जो भारत की गली-गली में अंग्रेजी राज का विस्तार करना चाहता था। उसने जहां एक ओर अनेक एक्ट बनाकर भारत पर दमन चक्र चलाये, वहीं अब उसकी आँखें अफगानिस्तान पर भी अंग्रेजी राज के झंडे गाड़ने की थीं। सन् 1879 में द्वितीय अफगान युद्ध छिड़ा। जिसमें आगर स्थित अंग्रेजी फौजी छावनी के कर्नल मार्टिन को भी लार्ड लिटन के आदेश के तहत अपनी सेना के साथ अफगान-युद्ध में (काबुल में) जाना पड़ा। लेकिन इधर आगर में उसकी पत्नी एकदम अकेली पड़ गयी। युद्ध के दौरान काफी समय तक अपने पति की कोई खबर न आने से उदासी और भय के कारण वह गहरी चिन्ता में डूब गयी।


एक दिन मन बहलाने के लिये वह आगर के जंगल में घुडसवारी के लिये निकली। थोड़ी ही दूर जाने पर जंगल में से अचानक मंत्रोच्चार की ध्वनि सुनाई दी। वह ठिठक कर रूक गयी। उसने ध्वनि वाले स्थान पर जाकर देखा तो वहां एक पुराना शिव मंदिर था और कुछ पुरोहित शिव-मंत्र के जाप के उच्चारण में तल्लीन थे। अपने कद्दावर सेवकों से श्रीमती मार्टिन ने इस दृश्य की जानकारी ली, तो यह जानकर उसकी आँखों में चमक आ गयी कि भगवान की पूजा-पाठ की शक्ति से मन में वांछित हर कार्य सिद्ध हो सकता है। श्रीमती मार्टिन ने तुरन्त पुरोहितों से पूछा - "क्या यहीं पूजा करने से हमारा हसबैण्ड मार्टिन युद्ध भूमि से सकुशल वापस हमारे पास आ सकता है?" पुरोहितों के हाँ कहने पर श्रीमती मार्टिन ने यहां ग्यारह दिनों तक रोजाना प्रातःकाल बाण गंगा नदी के जल से स्नान कर पूरी आस्था से मंदिर बैजनाथ महादेव की शिवलिंग मूर्ति का रुद्राभिषेक करवाया और उसी की समाप्ति पर मनौती मांगी कि "मेरे पति मार्टिन काबुल की युद्ध-भूमि से सकुशल वापस लौट आयें, तो मैं इस शिव-पूजा को चमत्कार मानूंगी।" 


अचानक हवा ने तेजी से रूख पलटा। काबुल की युद्ध-भूमि से कर्नल मार्टिन के पत्र आने लगे, जिसमें विजय और आत्मविश्वास के भाव निहित थे। कुछ समय पश्चात् कर्नल मार्टिन विजय होकर आगर सकुशल आया तो उसकी पत्नी ने उससे शिव-पूजा और मनौती की बातें बतायी। पहले तो कर्नल ने इसे अंध-विश्वास माना। लेकिन श्रीमती मार्टिन उसे बैजनाथ महादेव के मंदिर पर ले गयी तो कर्नल यह देखकर चकित रह गया कि यहीं पर मंगलनाथ नाम के एक बूढ़े पुजारी बाबा थे। कर्नल को युद्ध की एक-एक बात याद आ गयी। उसने बताया कि-यह सच है कि युद्ध-भूमि में उसे निशाना बनाकर चलायी गयी गोली कहीं दूसरी ओर जाकर लगती थी। जब भी उसे लगता कि वह खत्म हो जायेगा, तभी पलक झपकते एक बैल पर बैठे बूढे. बाबा उसके समक्ष आते और उसकी रक्षार्थ खड़े हो जाते। मंदिर में बैठे यही वे बाबा थे। वस्तुतः भगवान शिव ने इन्हीं बाबा का रूप धरकर कर्नल मार्टिन की युद्ध-भूमि में प्राण-रक्षा की थी। कर्नल मार्टिन भगवान बैजनाथ महादेव की शक्ति और चमत्कार तथा अपनी पत्नी की शिवभक्ति की आस्था से प्रसन्न हो वहीं नतमस्तक हो गया और फिर दोनों की गहरी आस्था बैजनाथ महादेव में हो गयी।


उन्होंने तुरन्त सन् 1882 में स्वयं के तथा कुछ सहयोग से ग्यारह हजार रुपये एकत्रित कर इस मंदिर का नवनिर्माण करवा कर भव्य उद्घाटन समारोह किया। मंदिर का यह निर्माण कार्य 25 माह में पूर्ण हुआ। इस प्रकार एक विधर्मी अंग्रेज ईसाई महिला की शिव-भक्ति की सच्ची आस्था और उससे हुए चमत्कार की यह गाथा इस मंदिर में आज भी जीवित है, जो उनकी आस्था के आगे किसी को भी यहां नतमस्तक करने को मजबूर कर देती है।


बैजनाथ महोदव का यह भव्य मंदिर आगर की प्राचीन बाण गंगा नदी के तट पर 51 फीट की ऊँचाई लिये है। मंदिर शिखर के अग्र भाग पर 5 फीट ऊँचा स्वर्ण- कलश है। जिस पर लगा शिव का धर्मध्वजदण्ड नील गगन से झाँकते देवी- देवताओं को आमंत्रित करता जान पड़ता है। मंदिर का शिखर उत्तर भारतीय तथा द्रविण स्थापत्य कला का सुन्दर नमूना है। मंदिर का मूल गर्भ-गृह 11७11 फुट का है। जिसके मध्य मे आग्नेय चट्टानों की 9 इंच ऊँची व 53 इंच गोलाई लिये भगवान बैजनाथ महादेव की शान्त लिंग मूर्ति राजा नलकालीन है। जनश्रुति है कि राजा नल कुष्ठ रोग से पीड़ित थे तथा निकट के ही कमल-कुण्ड के जल स्नान करने पर वे कुष्ठ मुक्त हो गये थे। 1528 ई. से यहीं मंदिर का निर्माण कार्य आरम्भ होकर 1536 ई. में पूर्ण हुआ। पूर्व में यह मंदिर एक मठ रूप में था तथा इसमें अखण्ड दीप प्रज्जवलन की परम्परा भी थी। बाद में कर्नल मार्टिन ने इसका नवीनीकरण करवाया जो वर्तमान में है। मंदिर गर्भगृह के पूर्वी भाग में 27 इंच ऊँची उमा-महेश की नंदी पर सवार कलात्मक मूर्ति है, जिसकी शिल्पकला दसवीं शती की है। दक्षिण भाग में 28 इंच ऊँची पार्वती की मूर्ति स्थापित है। मंदिर की दीवारों पर ढाई- ढाई फीट ऊपर शिव महादेव की जनहितकारी कार्य महिमा के आठ नयनाभिराम तेल चित्र है। शिखर के ब्राह्य और मध्य भाग में ब्रह्मा, विष्णु और शिव की सुन्दर शिल्प युक्त मूर्तियें है। शिखरान्त में आमलक व मुण्डमाला अत्यन्त चिताकर्षक है।


मंदिर के बाहर एक विशाल सभा- मण्डप है, जिसमें चौदह द्वार है। मण्डप का अन्तर गृह 27315 फीट का है। जिसमें 3 फीट लम्बी 2 फीट ऊँची शिव वाहन नन्दी की मूर्ति प्रतिष्ठित है। मंदिर के पृष्ठ भाग में 27952 फीट व 17 फीट गहरा कमल कुण्ड है। कर्नल मार्टिन ने इस कुण्ड में भी बड़ी आस्था से कमल रोपण किया था। तब से लगभग 80 वर्षों तब लगातार इसमें काफी मात्रा में कमल खिलते थे। 1884 ई. वैशाख शुक्ल तृतीया से यहां मालवी नस्ल के मवेशियों का बड़ा मेला प्रारम्भ हुआ था जो 1898 ई. में बन्द हो गया। 1918 ई. चैत्र मास की पूर्णिमा से यहां पुनः मेला आयोजित होने लगा। अब यहां कार्तिक शुक्ल पंचमी से कार्तिक पूर्णिमा तक विशाल मेला आयोजित होता है।


बाण गंगा नदी के तट पर स्थित बैजनाथ महादेव मंदिर के आसपास की गंध-पवन में भक्ति और आस्था की खुशबू सहज ही हर जाने वाले पर्यटक दर्शनार्थी को आज भी महसूस होती है। यहां प्रकृति ने भी अपनी अनुपम छटा बिखेरी है। आम, इमली, जामुन, कदम्ब तथा वट के वृक्षों की बहुतायत से यह स्थल अत्यन्त मनोरम बन गया है। यहां सघन वन, हरियाली, झरना, गोमुख कुण्ड, कमल कुण्ड, स्नानघर इसकी मनोहारी आभा में द्विगुणी अभिवृद्धि करते है। बारहों मास विशाल मालवा अंचल सहित उ.प्र., म.प्र., राजस्थान, पंजाब, दिल्ली, हरियाणा, बिहार से सैकड़ों धर्मप्राण नागरिक व विदेशी श्रद्धालु, शोधार्थी इस बैजनाथ महादेव के मंदिर में दर्शनार्थ आते हैं। विशेषकर श्रावणी सोमवार, महाशिवरात्रि, मकर-संक्रान्ति, ग्रहण पर्व, सोमवती व शनिचरी अमावस्या तथा कार्तिक पूर्णिमा को यहां काफी भीड़ रहती है। लोक आस्था है कि यहां दान, स्नान, धर्म-कर्म करने से मुक्ति मिलती है तथा पापों का प्रक्षालन होता है।


मंदिर के निकट ही धर्मशालाएं, कमरे व अनेक दुकाने हैं, जहां पूजा, प्रसाद व भोजन की सामग्री मिलती है। आगर बस स्टेण्ड से यहां आने के लिए हर समय वाहन उपलब्ध रहते हैं। इस मंदिर के आस-पास हनुमान, वराह, गणेश, के दर्शनीय मंदिर हैं, जिनकी अपनी कथायें हैं। आगर में भी ठहरने के लिये आधुनिक सुविधायुक्त होटल हैं।