राजस्थान के शिलालेख एवं उनकी उपयोगिता

हम यहां पर शिलालेखों की उपयोगिता का वर्णन कर रहे हैं जो अभिलेखों के ही अंग हैं। सर्वप्रथम अभिलेखों का अर्थजानना आवश्यक है। वह लेख या जानकारी जो विभिन्न माध्यमों जैसे, पाषाण शिलाओं, पट्टिकाएं, ताम्रपत्रों, मूर्तियों, स्तम्भों इत्यादि पर खुदी हुई हो जिसे पढ़ा जा सके अभिलेख कहलाते हैं। यह जानकारी प्रारंभ में संस्कृत भाषा में होती है किंतु मध्यकाल में इसकी भाषा संस्कृत, फारसी, उर्दू, राजस्थानी आदि रही है।



सुनहरे भविष्य की रचना के लिए अनुसंधानकताओं का अत्यधिक महत्व है क्योंकि वें ऐतिहासिक स्रोतों से महत्वपूर्ण सूचनाएं एवं जानकारियां प्राप्त करने से लेकर नई खोज जैसे अमूल्य कार्य करते हैं। इसके लिए यह आवश्यक है कि उनके द्वारा जो आंकड़ें एकत्रित किए जाएं वह विश्वसनीय हों। इसलिए आज के वर्तमान को, कल का भविष्य कहा जाता है।


हम यहां पर शिलालेखों की उपयोगिता का वर्णन कर रहे हैं जो अभिलेखों के ही अंग हैं। सर्वप्रथम अभिलेखों का अर्थ जानना आवश्यक है। वह लेख या जानकारी जो विभिन्न माध्यमों जैसे, पाषाण शिलाओं, पट्टिकाएं, ताम्रपत्रों, मूर्तियों, स्तम्भों इत्यादि पर खुदी हुई हो जिसे पढ़ा जा सके अभिलेख कहलाते हैं। यह जानकारी प्रारंभ में संस्कृत भाषा में होती है किंतु मध्यकाल में इसकी भाषा संस्कृत, फारसी, उर्दू, राजस्थानी आदि रही है।


अभिलेख ऐतिहासिक स्रोतों से प्राप्त जानकारी निम्न हैं:


शिलालेखः


ऐतिहासिक स्रोत


पुरातात्विक सामग्री


साहित्यिक सामग्री


खंडहर 


मुद्राएं


अभिलेख


भूगर्भ


भूतल


पट्टिकाएं


स्तम्भ


ताम्रपत्र


मूर्तियां


शिलालेखों से जो पाषाण से बना होता है जैसे, शिलाएं, मूर्तियां, स्तम्भ इत्यादि अर्थात वह ऐतिहासिक सूचनाएं जो शिलाओं या अन्य पाषाण निर्मित वस्तुओं पर खुदी भाषा हो वह शिलालेख कहलाते हैं। यह अभिलेखों के पुरातत्व स्रोतों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्रोत माना जाता है। इसका कारण इसमें सूचनाओं के समय, काल, तिथि का अंकन होना है। इसलिए इन्हें अधिक प्रमाणिक स्रोत कहा जा सकता है।



शिलालेखों में उपाधियों, उस काल के लोगों द्वारा प्राप्त उपलब्धियां, साहसी व्यक्तियों का योगदान, विजय गाथाएं, पूर्वजों से आरंभ किया हुआ वंशक्रम, समय काल की जानकारी के साथ ही महान पुरुषों तथा स्त्रियों की महिमा गाथाएं पाई जाती हैं।


प्रशस्ति- ये वो शिलालेख हैं जिन पर शासकों की विजय यात्राओं व उनकी प्रतिष्ठा के बारे में लिखे जाते हैं।


शिलालेखों से प्राप्त सूचना सामान्यतया दूसरे स्रोतों की तुलना में अधिक प्रमाणिक होती है इसके लिए उपयोगिता का महत्व अधिक है।



राजस्थान की अभिलेखिय सामग्री के संरक्षण व अध्ययन के कार्य में कई विद्वानों का योगदान रहा है मुख्यतः डॉ. टेस्सीटोरी जिन्होने जोधपुर एवं उसके उत्तरी हिस्से के मरुस्थली भागों में अभिलेखों की खोज का कार्य किया। डॉ. टेस्सीटोरी के अलावा नानूराम भट्ट, विश्वनाथ सिंह राव, पंडित रामकर्ण, पंडित विश्वेश्वरनाथ, मंशी देवी प्रसाद आदि ने इस कार्य क्षेत्र में योगदान दिया है।


इस महत्वपूर्ण सामग्री में डॉ. कीलहॉर्न को सर्वप्रथम संदर्भिका निमार्ता का श्रेय दिया जाता है जिसके अंतर्गत उपलब्ध अभिलेखों को उन्होंने सूचीबद्ध किया तथा जिसका हिंदी अनुवाद बाबू श्याम सुंदर दास ने कियाराजस्थान पुरातत्व संग्रहालय द्वारा एक संदर्भिका हाल ही में प्रकाशित की गई, जिसे डॉ. जेड.ए. देसाई ने राजस्थान में उपलब्ध अरबी, फारसी के अभिलेखों से तैयार की थी शोध की दृष्टि से इन संदर्भिकाओं का अत्यंत महत्व है।


राजस्थान में शिलालेखों की उपयोगिता


ऐतिहासिक सामग्री में शिलालेख अत्यंत महत्वपूर्ण माने जाते हैं। राजस्थान में भी इनका प्राप्त होना ऐतिहासिक द्वार की कुंजी के समान है। इसका कारण यह है कि शिलालेख द्वारा अधिक प्रमाणिक तत्वों की प्राप्ति होने के अलावा ये अन्य साधनों के प्राथमिकता की कसौटी के आधार भी होते हैं। अतः इसकी उपयोगिता का वर्णन निम्न प्रकार से है


1. तिथि क्रम निर्धारण में सहायक- शिलालेखों में घटनाओं का वर्णन तिथि युक्त होता है। इसमें वंशावली, उपाधियों, शासकों की उपलब्धियां आदि का विवरण क्रमानुसार पाया जाता है। ये सारे बिन्दु इन जानकारियों को तिथिबद्ध कर क्रमानुसार वर्णन का आधार बनते हैं।


2. अधिक प्रमाणिकता- शिलालेखों से पाए जाने वाले आंकड़े तिथियुक्त होने के कारण अधिक प्रमाणिक व विश्वसनीय माने जाते हैं। इतिहासकारों ने भी उपलब्ध शिलालेखों के तत्वों का परीक्षण कर पाया कि इसमें प्राप्त जानकारियों की शुद्धता अधिक है। इसके फलस्वरुप शिलालेखों को ऐतिहासिक स्रोतों का महत्वपूर्ण और विश्वसनीय साधन माना जाता है।


3. अन्य सूत्रों स्रोत की विश्वसनीयता की कसौटी का आधार- शिलालेखों से प्राप्त जानकारी में समय, काल, तिथि आदि का वर्णन होने के कारण अन्य स्रोतों से जब इसकी तुलना की जाती है तो इन्हें पैमाना मान कर अन्य स्रोतों का परीक्षण किया जाता है। इस प्रकार के अन्य स्रोतों के शुद्ध एवं सत्य या अशुद्ध एवं असत्य की कसौटी के रुप में काम आते हैं।


4. प्रशस्ति का दर्पण- समय-समय पर विभिन्न शासन कालक्रम में शासकों के नाम, अर्जित उपलब्धियां, उनकी महानता की गाथाओं का वर्णन जिसमें पाया जाए उसे प्रशस्ति कहा जाता है। ये प्रशस्तियां इन अभिलेखों से ही बनती हैं जिनका जन्मदाता शिलालेखों को कहा जाता है। राजस्थान के प्रख्यात कीर्ति स्तम्भ इस बात के प्रमाण हैं। रणकपुर प्रशस्ति, चित्तौड़गढ़ का कीर्ति स्तम्भ तथा रायसिंह की प्रशस्ति इनके मुख्य उदाहरणों मेंसे हैं।


5. माननीय विचारधाराओं का परिचय- राजस्थान मानवीय दृष्टि से अत्यंत संपन्न रहा है। यहां के शिलालेखों से यह स्पष्ट होता है कि मानवीय उपलब्धियां कितनी महत्वपूर्ण हैं इनमें मानवीय समाज की सुरक्षा व्यवस्था सौहार्दपूर्ण संबंधों तथा रीति-रिवाजों के उल्लेख भी मिलते हैं। उस काल की प्रथाओं जैसे, सती प्रथा, बहुपत्नी प्रथा, नारी अस्तित्व प्रथा आदि से संबंधित सामग्रियां भी मिलती हैं। राजस्थान एक शुष्क प्रदेश है अतः यहां की भौगोलिक परिस्थितियों का मानवीय विचारधाराओं पर पड़ने वाले प्रभाव की जानकारी भी स्पष्ट रूप से सामने आती है।


6. वास्तुकला का परिज्ञान- शिलालेखों की प्राप्ति हेतु खंडहरों और मूर्तियों, प्रशस्तियों, भवनों तथा मंदिरों आदि पर खुदे हुए तथ्यों व जानकारियों के विश्लेषण से यह स्पष्ट विदित होता है कि वास्तुकला ज्ञान के विभिन्न स्तरों से संबंधित है। राजस्थान में पाए जाने वाले कई विख्यात मंदिर, भवन तथा शिलाओं को देखने मात्र से प्रतीत होता है कि ये वास्तुकला के अद्भुत उदाहरण हैं।


7. जन-जीवन में आपसी संबंधों की जानकारी- किसी भी काल के जनजीवन के आधार निम्नलिखित प्रकार से पाए जाते हैं:


1. राजनैतिक 2. सामाजिक 3. आर्थिक 4. धार्मिक


राजनैतिक इतिहास के निर्माण में शिलालेखों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है क्योंकि ये वो आधार हैं जिनसे हमें राजवंशों की उत्पत्ति, प्रशस्ति (कीर्ति गाथा), वंशावली, प्रशासनिक व्यवस्थाओं की सूचनाएं इत्यादि उपलब्ध होती हैं। राजस्थान केघटियाला लेख, रावत जगमाल का नगर अभिलेख जैसे कई उदाहरण हैं।


सामाजिक जीवन में राजस्थान के मुख्य वर्ण एवं जाति का अस्तित्व रीति रिवाज, परंपराओं एवं प्रथाओं की जानकारी उल्लिखित है उदाहरणार्थ नाडोल से प्राप्त अभिलेख, उदयपुर के चिरवेगांव से प्राप्त अभिलेख, चित्तौड़ के चालुक्य-कुमार पाल का अभिलेख सामाजिक सुचनाओं से संबंधित हैं।


आर्थिक जीवन की सामग्री की उपलब्धि के स्रोतों में अभिलेखों को अनदेखा नहीं कर सकते। राजस्थान विभिन्न व्यापारिक केंद्रों के बारे में शिलालेखों से सूचनाएं प्राप्त होती हैं। जूना के आदिनाथ मंदिर, सारणेश्वर प्रशस्तिपटनारायण अभिलेख इसके उदाहरण हैं।


धार्मिक जीवन की पर्याप्त अभिव्यक्ति शिलालेखों में देखी जा सकती है। धार्मिक संस्थान संस्कार, दान, धर्म व्यवस्थाएं, पूजा हेतु स्थान निर्माण, परोपकारी भावनाएं इत्यादि की जानकारी प्राप्त होती है। मुख्यतः शिलाओं से निर्मित मूर्तियां अपने आप में धर्म का साक्ष्य हैं।


राजस्थान में शिलालेखों से जैन धर्म की मान्यताओं से संबंधित कई सूचनाएं पाई गई हैं। बौद्ध धर्म के तथ्यों व जानकारी की इस माध्यम में अनुपस्थिति है, किंतु हिंदू धर्म, शिव शक्ति, सूर्य पूजा, वैदिक यज्ञ द्वारा ये सारी सूचनाएं स्पष्ट रूप से सामने आती हैं।


8. इतिहास अनुसंधान/लेखन में सर्वाधिक महत्व-शिलालेख इतिहास की घटनाओं व सूचनाओं का वह प्रमाण है जिसके नष्ट होने की संभावनाएं अन्य स्रोतों की तुलना में कम है। इसका मुख्य कारण पाषाण की प्रकृति प्रदत्त सुदृढ़ता है। इसके अलावा लेखन में तिथि, समय आदि का अंकन होने के कारण सत्यता, शुद्धता अधिक होती है। प्रशस्ति भी इसका एक भाग है जिनके द्वारा शासन क्रम तथा उनकी उपलब्धियों का विवरण ज्यों का त्यों जानने को मिलता है। राजस्थान में कई ऐतिहासिक घटनाएं जैसे सती होना, वंशावली, वीरों की यशोगाथाएं आदि शिलालेखों में अधिक प्रमाणिक रूप में प्राप्त हुई। अनुसंधान के लिए आवश्यक आंकड़े विश्वसनीय होने के कारण ऐतिहासिक अनुसंधान के लिए इन्हें सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्रोत कहा जा सकता है। ऐतिहासिक अनुसंधान, देश की भावी सफलताओं का मुख्य आधार है, किंतु इस सफलता के लिए आवश्यक है कि प्राप्त की गई सूचनाएं व आंकड़े विश्वसनीय तथा प्रमाणिक हों। इस विश्वसनीयता की अपेक्षा शिलालेखों व अभिलेखों से की जाती है। हालांकि राजस्थान में आज भी कुछ ऐतिहासिक तथ्यों के बारे में शिलालेख पूर्णतः मौन हैं, किंतु अनेक अमूल्य जानकारियों के प्राप्त होने से कारण ये अतीत के सच्चे दर्पण हैं। समाज और देश को समृद्ध करने हेतु इनका विश्लेषण करना तथा इसकी उपयोगिता समझना अति आवश्यक है। विश्वास है कि दी गई उपरोक्त जानकारियों का विवरण अनुसंधानकताओं और जिज्ञासाओं के लिए लाभकारी सिद्ध होगा