शिव एक नाम अनेक यद द्वय क्षरम

शिव जिसके मुख से निकल जाए उस मनुष्य के समस्त पाप तत्काल नष्ट हो जाते हैं। वही शिव मृत्युंजय, आशुतोष ज्ञाना तीर्थ, रूद्र एकपूर गौर, त्रिशूलधारी रुंड मुंड धारी और न जाने कितने नामों को धारण करता है। शिव का प्रत्येक नाम गहन अर्थ धारण कर भक्तों को अपनी अनंत शक्तियों से साक्षात्कार करवाता है। 'ओम नमः शिवाय' इन तीन अक्षर के मंत्र में स्थित शिव का अर्थ कल्याण करने वाला है। समस्त ब्रह्मांड को सुख शांति देने वाले शिव रूद्र कहलाते हैं। 'शूद्र' शब्द 'शूद' धातु से बना है जिसका अर्थ है रोना शिव दीन दुखियों को दुख देने वाले आत ताईयों को रुलाते हैं। कर्पूरगौरं शिव का गौर वर्ण दोष रहित एसत्व गुण और स्वच्छ प्रकाश का प्रतीक है। त्रिशूल धारी बनकर शिव पापियों को आध्यात्मिक, अधिभौतिक और अधि देविक शूल पीड़ा देकर मोक्ष प्रदान करते हैं। नंदी शिव का वाहन है, अतः वे वृषारूढ़ा कहलाए। वृष का अर्थ धर्म है। धर्म आत्माओं के हृदय में निवास कर शिव वृषारूढ़ बन गए। सभी भूतों-प्राणियों के स्वामी शिव प्रेत पति या भूतेश्वर कहलाए क्योंकि संसार के जितने भी लूलेलंगड़े, काने-अंधे जो भी उनकी भक्ति करते हैं, उन सबको प्रेत पति ही अपने हृदय में स्थान देते हैं। हमारे जीवन में नित्य नएनए विष, ईर्ष्या, द्वेष कलह आदि उत्पन्न होकर मन को अशांत करते हैं, इसी कारण शिव ने कालकूट विष पिया और नीलकंठ कहलाकर अपने भक्तों को बचाने का प्रयास किया। पुराणों में भगवान शिव को विद्या का प्रधान देवता कहा गया है। अतः वे विद्या तीर्थ कहलाए और ज्ञान, इच्छा और क्रिया का अक्षय स्रोत बन गए। कालजई शिव के त्रिनेत्र भूत, भविष्य और वर्तमान अर्थात तीनों कालों के द्योतक है। शिव का मुंड माला धारण करना, शरीर पर भस्म लगाना तथा श्मशान में निवास करना मनुष्य को निरंतर इस सत्य का आभास कराता है कि यह संसार और मानव शरीर नश्वर है। मनुष्य को मृत्यु से भयभीत होने के स्थान पर इस शाश्वत सत्य को स्वीकारते हुए नित्य कर्म करना चाहिए । यही सत्य मनुष्य को दुष्कर्म से विमुख कर सत्कर्म के लिए प्रेरित करता है। गले में धारण कालसर्प यह बताता है कि जो मृत्यु को अपना मित्र या भूषण बना लेता है वह स्वयं महाकाल बन जाता है। सांसारिक भोग विलास से परे रहकर आक धतूरा को अपना खाद्य बनाकर शिव आशुतोष कहलाए और सादगी मय जीवन को अपनाने का संदेश समस्त ब्रह्मांड को दिया। आज के युग में शिव का आशुतोष नाम प्रासंगिक है। समस्त विश्व जिस भौतिकता की ओर बढ़कर मन में अशांति का प्रचार कर रहा है, वही आशुतोष शिव हमें सिखा रहे कि हमें अपनी आवश्यकताओं को सीमित कर सुख की नींद सोना चाहिए। शिव की भांति त्याग में ही सुख व आनंद की अनुभूति कर ज्ञान-विज्ञान तथा आध्यात्मिक विषयों के चिंतन में हमें अपना समय लगाना चाहिए। सभी के कल्याण का भाव आत्मसात कर सर्व मंगल की कामना ही शिव को शिवमय बनाती है।